एक ऐसा मंदिर, जहा राजा अपने ही देश के मंदिर में दर्शन करने नही जा सकता। क्यो डरता है राजा भगवान के दर्शन करने मे? आइए जानते है पूरी कहानी। Story of Budhanilkantha Temple

Rate this post

           दुनिया भर में कई सारे अद्भुत, आकर्षक और रहस्यमयी मंदिर है। इन मंदिरों के भव्य निर्माण शैली के चलते यह मंदिरें आकर्षण का केंद्र हमेशा बनी हुई रहती है। ऐसा ही एक अद्भुत मंदिर नेपाल में भी स्थित है। वैसे तो नेपाल में कई सारे मंदिरे स्थित है। जिनकी अपनी-अपनी अलग-अलग कहानियाँ है। पर हम जिस मंदिर की जानकारी देने जा रहे है। वह इन बाकी मंदिरों से काफी अलग कहानी बया करता है। एक ऐसा मंदिर, जहा अपने ही देश का राजा अपने ही देश के मंदिर में दर्शन करने नही जा सकता। जी हा एक ऐसा मंदिर, जहा राज परिवार का कोई भी व्यक्ती दर्शन नहीं कर सकता। आखिर ऐसी क्या वजह है? क्यों नहीं जाता राजपरिवार का कोई भी सदस्य दर्शन करने? क्यो डरता है राजपरिवार भगवान के दर्शन करने मे? आइए जानते है पूरी कहानी। 

       जिहा दोस्तों, यह मंदिर नेपाल में स्थित है। नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 10 KM दूर शिवपुरी पहाड़ी मे स्थित “तलहटी” इस गाव मे है। यह मंदिर भगवान विष्णु जी का है। इस मंदिर नाम का “बुढानीलकंठ” मंदिर है। वैसे तो इस मंदिर में भगवान विष्णु जी की प्रतिमा दिखाई देती है। पर लोगों का मानना है कि, इस मंदिर में अप्रत्यक्ष रूप से देवो के देव महादेव भी रहते है।

 मंदिर स्थापना से जुड़ी धारणाए

        बुढानीलकंठ मंदिर से जुड़ी दो प्रकार की धारणाए स्थानिक लेवल पर प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि, इस मंदिर का निर्माण लिच्छवियों के अधीनस्थ विष्णु गुप्त ने वर्तमान में जिस स्थान पर यह मंदिर है। उस स्थान पर नही किया था। इस मंदिर की निर्माण किसी ओर स्थान पर किया हुआ था। बाद में 7 वी शताब्दी में इस स्थान पर इस मंदिर को स्थापित किया गया। 

         और एक धारणा ऐसी है कि, एक बार एक किसान इस स्थान पर हल चला रहा था। तब उस किसान के हल मे एक काला पत्थर आ गया। हल इस पत्थर को लगने से इस पत्थर से खून निकलने लगा। जब यह बात स्थानिय लोगों को पता चली, तब उन्होंने यहाँ खोदकाम किया। तो यहाँ से एक मूर्ति निकली। जिसके बाद लोगो ने यहाँ इस मूर्ती की स्थापना की। जिसे बुढानीलकंठ नाम दिया गया। 

शेषनागपर निद्रावस्था मे भगवान विष्णु

          बुढानीलकंठ मंदिर का निर्माण एक प्राकृतिक तालाब मे किया गया है। इस तालाब की लम्बाई लगभग 13 मीटर है। माना जाता है कि, यह तालाब ब्रम्हांड के समुद्र का प्रतिनिधित्व करता है। इसी तालाब में बेसाल्ट खड़क से भगवान विष्णु जी की 5 मीटर लंबी प्रतिमा, निद्रावस्था मे बनाई गई है।


जो यहाँ आने वाले हर श्रद्धालु को अपनी ओर आकर्षित करती है। भगवान विष्णु ग्यारह शेषनागों के बनाए हुए कुंडली पर निद्रावस्था मे विराजमान है। निद्रावस्था मे भगवान विष्णु जी के दोनों पैर एक दूसरे पर रखे हुए दिखाई देते है। ग्यारह शेषनागों का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि, उन्हे देखने पर ऐसा लगता है कि, वे भगवान विष्णु जी के छत्र के समान रूप है। प्रतिमा मे भगवान विष्णु जी को चार हाथ है। जो उनके दिव्य शक्ति को दर्शाते है। भगवान विष्णु जी के इस प्रतिमा को, मूर्ती निर्माण का एक उत्कृष्ट नमुना माना जाता है। 

भगवान शिव जी भी जुड़े हैं इस मंदिर से 

         इस मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन चल रहा था। उस समय समुद्र से अमृत के साथ-साथ विष भी निकला था। इस विष से सृष्ठि का विनाश निच्छित था। इस विनाश को रोकने के लिए भगवान शिव जी ने विष को अपने कंठ मे धारण कर लिया था। विष को अपने कंठ मे धारण कर लेने से उनका कंठ नीला पड़ गया था। तभी से भगवान शिव जी को “नीलकंठ” के नाम से भी जाना जाता है। 

         इस कथा के अनुसार, विष को अपने कंठ मे धारण करने से भगवान शिव जी के कंठ मे जलन होने लगती है। इस जलन को कम करने के लिए, भगवान शिव उत्तर दिशा की ओर जाते है और एक पर्वत पर अपने त्रिशूल से जोरदार प्रहार करते है। इस प्रहार के कारण उस पर्वत पर एक झील का निर्माण होता है। मान्यता है, अपने कंठ मे होने वाले जलन को कम करने के लिए भगवान शिव जी ने इस झील का पानी पिया था। 

         वर्तमान में इस झील को “गोसाईकुंड” के नाम से जाना जाता है। यह झील 436 मीटर ऊंचाई पर स्थित है।   बुढानीलकंठ मंदिर के तालाब में इसी झील से जल आता है। 

अप्रत्यक्ष रूप में विराजमान है भगवान शिव 


           बुढानीलकंठ मंदिर का एक वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव अगस्त महिने में आता है। यहाँ रहने वाले लोगों का और श्रद्धालुओं का ऐसा दावा है कि, इस उत्सव के दौरान, मंदिर के तालाब में भगवान शिव जी की प्रतिमा दिखाई देती है। इस उत्सव के दौरान भारत और नेपाल सहित दुनिया भर से लोग यहाँ दर्शन करने आते है। 

Varadaraja perumal temple kamchipuram, 40 साल में एकबार होते है यहाँ भगवान के दर्शन, 40 साल में एकबार जल समाधि से बाहर आते है भगवान अत्ति वरदराज

इस डर के कारण राजपरिवार नही जाता दर्शन करने। 

        नेपाल के प्रसिद्ध और रहस्यमयी मंदिरों में से एक यह ऐसा मंदिर है। जहा दुनिया भर के लोग, यहाँ तक की अपने देश नेपाल के आम नागरिक भी दर्शन करने तो जा सकते है। पर राजपरिवार नही जा सकता। इसके पीछे एक दिलचप्स कहानी है। आइए जानते हैं। 

        12 वी और 13 वी शताब्दी के दौरान नेपाल में मल्ल साम्राज्य था। और इस दौर के जो राजा थे। वे वैष्णव धर्म के अनुयायी थे। जिसके कारण वे शिव जी की उपासना करते थे। 

        माना जाता है कि, 14 वी शताब्दी में मल्ल साम्राज्य के राजा ‘जय’ ने शिव उपासना छोड़कर, विष्णु जी की उपासना करना प्रारंभ कर दिया। और घमंड मे आकर खुद को विष्णु जी का अवतार घोषित कर दिया। 

         यह अवतार की परंपरा 16 वी शताब्दी मे मल्ल राजा ‘प्रताप’ के शासनकाल में भी जारी रखी गई थी। 

        एक दिन हुआ ये था कि, मल्ल साम्राज्य के राजा ‘प्रताप’ को एक स्वप्न आया। स्वप्न में उन्होंने देखा की, अगर कोई राजा, या फिर राजपरिवार का कोई भी सदस्य अगर बुढानीलकंठ के दर्शन करता है, तो उसकी मृत्यु हो जाएंगी। 

        माना जाता है कि, इस स्वप्न के पश्चात राजा ‘प्रताप’ ने मृत्यु भय के डर से आगे कभी भी बुढानीलकंठ के दर्शन नही किये। उनके साथ ही साथ राजपरिवार के अन्य किसी भी सदस्य ने दर्शन नही किये।   

      माना जाता है कि, आगे भी किसी भी राजा ने बुढानीलकंठ मंदिर में जाकर भगवान विष्णु जी के दर्शन नहीं करे। यह परंपरा आज भी जारी है।

        यह जानकारी आपको कैसी लगी हमें जरूर बताए।

Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: प्रिय पाठक ऐसे कॉपी ना करें डायरेक्ट शेयर करें नीचे सोशल मीडिया आइकॉन दिए हैं