Last Updated on 6 months by Sandip wankhade
बिशन सिंह कूका| bishan singh kuka| कूका आंदोलन| कूका आंदोलन कब हुआ था| कूका आंदोलन कहा हुआ| कूका आंदोलन के नेता| कूका विद्रोह|कूका आंदोलन के संस्थापक|
वर्तमान में बाल स्वतंत्रता सेनानी एवम् शहीद बिशन सिंह के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन बिशन सिंह के शहादत से जुड़ी घटना है। जो कुछ इस प्रकार है।
आज भलेही गोहत्या को रोकने के लिए सरकार ने कानून बनाया हो। लेकिन जब भारत पर अंग्रेजी हुकूमत थी तब अंग्रेजों ने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए, लोगों को धर्म के नाम पर लड़ाने के उद्देश से जगह जगह कत्तलखाने खोलकर गोहत्या के लिए लोगों को प्रेरित करने लगे। लेकिन अंग्रेजों द्वारा गोहत्या को बढ़ावा देने के विरोध में पंजाब के कूका सिख संप्रदाय ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया। इस विद्रोह की व्याप्ति पूरे पंजाब प्रांत में फैली हुई थी। कूका संप्रदाय के इस विद्रोह को इतिहास में कूका विद्रोह नाम से जाना जाता है। इस विद्रोह मे क्रांतिकारीयों की संख्या साथ लाख के उपर थी। जिन्होंने इस विद्रोह के मध्यम से पूरे पंजाब प्रांत पर अपना अधिपत्य स्थापन किया था। लेकिन इस विद्रोह की तयारी ठीक से ना होने के कारण अंग्रेजों ने इस विद्रोह को बड़े ही चतुराई के साथ दफन कर दिया।
इस कूका विद्रोह मे कई सारे वीर शहीद हुए तो वही कई को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया। कहा जाता है कि, बाद में उन बंदी बनाए गए कूका वीरो को अंग्रेजों ने फासी पर लटका दिया।
इसके बाद 15 जनवरी 1872 को हीरा सिंह और लहिना सिंह के गुट ने पंजाब के ही मलेरकोटला पर अचानक से हमला किया। पर यह नाकाम हुआ और अंग्रेजों ने इस गुट के कूका लड़ाकों को बंदी बना लिया।
इस पूरे कूका विद्रोह मे अंग्रेजों ने कुल 50 कूका लड़ाकों को बंदी बनाया और उन्हें तोफ से उडाने की सजा निर्धारित की। बाद में इन सभी 50 कूका लड़ाकों को तोफ से उडाने के लिए मलेरकोटला के परेड ग्राउंड पर लाया गया। इन सभी 50 कूका लड़ाकों को परेड ग्राउंड में सरेआम तोफ से उडाने के पीछे की अंग्रेजों की यह मंशा थी कि, बाकी लोगो मे डर पैदा किया जा सके।

कूका क्रांतिकारी
जब कूका लड़ाकों को परेड ग्राउंड पर लाया गया। तब परेड ग्राउंड पर लुधियाना के डिप्टी कमिश्नर कावन भी मौजूद थे। उन्ही के आदेशों पर ये सब हो रहा था। डिप्टी कमिश्नर कावन ने देसी रियासतो से नौ तोफे परेड ग्राउंड पर मंगवाई और एक एक करके सभी कूका लड़ाकों को तोफ के सामने खड़ा करके उड़ा दिया जाने लगा। कहा जाता है कि, इन नौ तोफों में से साथ तोफे साथ बार चलाई गई और 49 कूका लड़ाकों के चिथडे उड़ा दिए गए। लेकिन जब बारी 50 वे कूका लड़ाके की आई, तब सबके दिल दहल उठे। क्युकी 50 वा लड़ाका महज 12 से 13 वर्ष का था। जिसका नाम बिशन सिंह था। जैसे ही बिशन सिंह को तोफ के सामने ले जाया जा रहा था। तब बिशन सिंह ने बहुत ही कसकर डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढ़ी पकड़ी और अपने दोनों हाथो से कावन के दाढ़ी को खीचने लगे। बिशन सिंह द्वारा दाढ़ी खीचने से डिप्टी कमिश्नर कावन दर्द से कराहने लगे। जिसके बाद वहा मौजूद सिपाही फौरन तलवार लेके कावन के पास पहुचे और बिशन सिंह के पकड़ से डिप्टी कमिश्नर कावन को छुड़ाने लगे। पर बिशन सिंह की पकड़ इतनी मजबूत थी कि, सिपाही कावन को उनके पकड़ से नही छुड़ा पाती। जिसके बाद वे सैनिक तलवार से बिशन सिंह के दोनों हाथ काट देते है। जैसे ही बिशन सिंह के हाथ कट जाते है, वैसे ही कावन उनके पकड़ से छुट जाते है। डिप्टी कमिश्नर कावन जैसे ही छुट जाते है, वैसे ही कावन तलवार से बिशन सिंह का सिर धड़ से अलग कर देते है। जिससे बिशन सिंह शहीद हो जाते है। इस प्रकार बिशन सिंह और उनके बाकी साथी वतन के लिए शहीद हुए।

बाल स्वतंत्रता सेनानी बिशन सिंह
इन 50 कूका वीरो की याद मे मलेरकोटला मे एक समारोह का आयोजन उन्हे श्रद्धांजलि देने के लिए प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। जहा उन्हे श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग यहा आते है।
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