मानव इतिहास की सबसे भयावह घटना। रवांडा का वह 100 दिन का नरसंहार जिसने रवांडा के एक समुदाय को लगभग खत्म ही कर दिया था। अनुमानित 8 लाख लोगों को उतारा गया था मौत के घाट।
“एक दिन मैने अपने बेटी को बेडरूम मे बुलाया और उससे कहा कि, तुम जानती हो ना? उस नरसंहार में लाखों लोग मारे गए थे। सेकड़ो औरतों के साथ बलात्कार हुआ था। तुने ये भी ये सुना होगा कि, उन बलात्कारों की वजह से कई सारे बच्चे पैदा हुए थे। मै तुम्हें ये बताना चाहती हूँ कि, इस नरसंहार के दौरान मेरे साथ भी बलात्कार हुआ था। उसी से तुम्हारा जन्म हुआ। बलात्कार करने वाले कई सारे लोग थे। इसलिए मुझे नहीं पता कि, तुम्हारे पिता कौन है।”
ये आपबीती है एक माँ जस्टिन और उसके बेटी की। जो उसने अपने साथ हुए उस घटना को न्यूयॉर्क टाइम्स से शेअर किया। ये उस नरसंहार की एक छोटीसी दासता थी ।
आइए जानते है रवांडा के उस नरसंहार के बारे में जिसने 100 दिन में अनुमानित आठ लाख लोगों को मौत की नींद सुला दिया।
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कहा स्थित है रवांडा?
रवांडा मध्य पूर्व आफ्रिका मे स्थित एक छोटासा देश है। क्षेत्रफल के हिसाब से यह भारत के केरल राज्य के बराबर आता है।
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इस देश में जो प्रमुख समुदाय बसते है। वो है तुस्ती और हुतू। संख्या के हिसाब से देखे तो हुतू समुदाय बहुसंख्यक है और तुस्ती समुदाय अल्पसंख्यक।
यह एक कृषिप्रधान देश है। खेती और पशुपालन यहाँ का प्रमुख व्यवसाय। हुतू समुदाय का प्रमुख काम खेती और खेती से संबंधित था। वही तुस्ती समुदाय का प्रमुख काम पशुपालन (मवेशी) था। उस वक्त रवांडा में पशुपालन (मवेशी) संप्पन्नता की निशानी होती थी। इनको समाज में ज्यादा इज्जत मिलती थी। इसी कारण तुस्ती समुदाय अल्पसंख्यक होकर भी रवांडा मे प्रभावशाली समुदाय माना जाता था। जबकी हुतू समुदाय बहुसंख्यक होकर भी प्रभावी नहीं था।
तुस्ती राजशाही
तुस्ती समुदाय अल्पसंख्यक होकर भी रवांडा मे प्रभावशाली समुदाय था। इसका परिणाम ये हुआ था कि, 17 वी सदी में तुस्ती राजशाही का रवांडा मे उदय हुआ। अल्पसंख्यक तुस्ती बहुसंख्यक हुतूओं पर अपना शासन करने लगे थे। जबकी हुतू समुदाय बहुसंख्यक होकर भी सत्ता से दूर था।
“तुस्ती अल्पसंख्यक होकर भी उनका देश पर अधिपत्य और हम बहुसंख्यक होकर भी सत्ता से दूर हमारी कोई भागीदारी नही।” ये वहा पर नस्लीय भेदभाव के उदय के लिए पहला अस्वस्थता का कारण बना।
साम्राज्यवाद के दौरान नस्ल भेद को और बढ़ावा।
जैसे कि, हमारे देश में अंग्रेज शासनकाल के दौरान अंग्रेजों ने “फुट डालो और राज करो” की नीति को अपनाया था। जिसका परिमाण ये हुआ था कि, देश के दो मुख्य समुदाय हिंदू और मुस्लिम दो धाराओं में बट गए। जिससे अंग्रेज हमारे देश पर लंबे समय तक शासन करने में कामयाब हुए और जब हम स्वतंत्र हुए, तब हमारे देश का विभाजन भी हुआ। अर्थात पाकिस्तान की निर्मिती।
इसी नीति का शिकार रवांडा भी हुआ। बेल्जियम ने अपने स्वार्थ और फायदे के लिए रवांडा मे नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा दिया।
बेल्जियम ने रवांडा में एक पहचान पत्र का सिस्टम लागू किया। इस सिस्टम पर पूरी तरह से अमल करने के लिए रवांडा के तुस्ती शासको ने भी उनकी मदत की। इस पहचान पत्र पर प्रत्येक नागरिक के नाम के साथ उसके समुदाय का भी उल्लेख किया गया। पहचान पत्र पर समुदाय का उल्लेख होने से नस्लीय भेदभाव को और बढ़ावा मिला। बेल्जियम ये सब अपने फायदे के लिए कर रहा था। इस पहचान पत्र के कारण बेल्जियम को मालूम होता था कि, कौन खेती करने वाले लोग है और कौन नही। हम पहले ही बता चुके है कि, हुतु समुदाय के लोग खेती करते थे। इसके पीछे बेल्जियम का मकसद था, ज्यादा से ज्यादा कॉफि का उत्पादन करना। बेल्जियम के समर्थक तुस्ती शासक भी हुतू समुदाय पर अधिक से अधिक कॉफि की खेती करने के लिए दबाव डालते थे। इस कॉफि के उत्पादन से सबसे ज्यादा फायदा बेल्जियम को होता था। कुछ फायदा बेल्जियम रवांडा के तुस्ती समुदाय को और उनके नेताओं को भी दिया करता था। पर कॉफि की खेती करने वाले हुतू समुदाय को इससे कुछ भी फायदा नही होता था। ये हमेशा इससे वंचित थे और हमेशा इनका ही शोषण होता रहा। पहचान पत्र, बेल्जियम की नीति और तुस्ती समुदाय इन सभी के शोषण के कारण दोनों समुदाय मे नफरत फैलने में काफी मदत मिली।
सत्तांतर और अब हुतूओं के हाथ में सत्ता की चाबी
दुनिया से द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के साथ साथ दुनिया के कई सारे देशों में आजादी की मांगे तेज हो गई। उनमें से एक रवांडा भी था। सालों से अपने हक और दर्जे से पीड़ित रहे हुतू समुदाय के लोग अब अपने हक और स्वतंत्रता की बात करने लगे। अपनी मांगे पूरी करने के लिए हुतू लोग तुस्ती लोगों को निशाना बनाने लगे। बहुसंख्यक हुतू समुदाय के उठाव के कारण रवांडा का राजकीय समीकरण एकाएक बदल गया। हुतू बहुसंख्यक होने के कारण इनका पगडा तुस्ती लोगों पर भारी पड़ने लगा। परिणाम यह हुआ कि, तुस्ती राजवंश के साथ साथ बेल्जियम की सत्ता समाप्त हो गई और रवांडा 1 जुलाई 1962 को आजाद हो गया।
हुतू बहुसंख्यक होने के कारण रवांडा की सत्ता अब उनके हाथ में आ गई थी। अब हुतू भी उनके साथ हुए दुर्व्यवहार का बदला लेने तुस्तियो को निशाना बनाने लगे। इस बदले की आग में कई सारे तुस्ती मारे गए। कुछ देश छोड़कर भागे। इन हमलों के बाद तुस्ती समुदाय मे कई सारे विद्रोही गुट बने। जो हुतूओं को निशाना बनाया करते थे। इन विद्रोही गुटो को कुचलने के लिए रवांडा की सत्ता में बैठी हुतू सरकार कई सारे कड़क कदम उठाती थी। लेकिन सरकार के इस रवैये के कारण खास तौर पर आम तुस्ती आबादी ही निशाना बनती थी। इन सारी घटनाओ के चलते रवांडा मे गृहयुद्ध जैसे गंभीर हालात पैदा हुए।
गृह युद्ध की शुरुआत
1960 से लेकर 1970 तक रवांडा मे सामुदायिक हिंसा की घटनाए काफी होती थी। लेकिन 1970 तक आते आते हालत सामान्य बने। अब बहुत कम हिंसा की घटनाए होती थी। कट्टरपंथी गुटों का भी प्रभाव कम हो चुका था। पर 1990 के दशक में दुबारा से कट्टरपंथी गुट सक्रिय हुए। कहा जाता है कि, इन गुटों मे ज्यादातर पड़ोसी देशों के शरणार्थी शामिल थे। अब जो खास विद्रोही गुट उभर कर सामने आया था। उसका नाम “रवांडन पेट्रिअटिक फ्रंट” था। अर्थात RPF. यह एक प्रशिक्षित, हथियारबंद गुट था। इनका मकसद रवांडा की सत्ता हासिल करना था।
शांति समझौता केवल नाम से शांत था।
1990 से 1993 तक, इन तीन सालों में रवांडा सरकार और RPF में कई छोटी बड़ी झड़पे होतीं रहती थी। लेकिन इंटरनैशनल दबाव के चलते रवांडा सरकार को RPF के साथ एक समझौता करना पड़ा। इस समझौते को शांति समझौता भी कहा जाता है। इस समझौते के तहत RPF को सत्ता में भागीदारी देना था। आपको बता दे कि, रवांडा सरकार ने इस समझौते पर कभी अंमल नही किया। सरकार को डर था कि, कही तुस्ती दुबारा सत्ता में ना आ जाए। अगर ऐसा होता है, तो हमारा दुबारा से शोषण किया जाएगा। इस डर के कारण सरकार ने उस शांति समझौते पर कभी अंमल नही किया। यही नही हुतूओं के दिल और दिमाग में भी सरकार ने यह डर बिठाया कि, अगर तुस्ती सत्ता में आते है, तो वो हुतूओ को गुलाम बनाएंगे।
प्लेन क्रैश में राष्ट्रपति की मौत।
तारीख थी 6 अप्रैल 1994। शाम का वक्त था। रवांडा के राष्ट्रपति जुवेनाल हाबियारीनामा अपने सेना के हवाई जहाज से अफ्रीकी लिडरान के एक सम्मेलन से वापस लौट रहे थे। तभी अचानक से रवांडा के राजधानी के बाहर उनका प्लेन क्रैश हो गया। जिसमें उनकी मौत हो गई। उनके साथ प्लेन में बुरांड़ी के राष्ट्रपति भी थे। दोनों भी इस प्लेन क्रैश मे मारे गए।
राष्ट्रपति के मौत के बाद शुरू हुआ नरसंहार।
ये हमला किसने किया? ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है। इस हमले को लेकर कई प्रकार के मत सामने आए। कुछ भी हो, लेकिन इस घटना के बाद पूरे रवांडा मे जिस तरह से दंगे शुरू हुए और उनमें जिस तरह से नरसंहार हुआ। वो काफी दिल दहला देने वाला था।
रवांडा की राजधानी कागाली को सेना ने अपने कब्जे में लिया। वहा जगह जगह पर बैरेकेडिंग की गई। लग रहा था जैसे ये हिंसा को रोकने के लिए की गई हो। लेकिन नही। ये बैरेकेडिंग तुस्ती समुदाय को घेरने के लिए की गई हो ऐसा लग रहा था।
क्युकी जिस दिन यह प्लेन क्रैश की घटना हुई। उसी दिन रेडियो पर एक मेसेज हुतू समुदाय को दिया गया। यह मेसेज था। “तीलचट्टो को साफ करो” इसका मतलब, “तुस्ती लोगों को मारो”.
जिन प्रमुख तुस्ती लोगों को खासकर सबसे पहले मारा जाना था। कहते है कि, उनके नमो की घोषणा भी रेडियो पर की गई थी। उनके नाम और पते का पुरा बौरा विद्रोहियों को दिया गया था।
यह नरसंहार 6/7 अप्रैल से 15 जुलाई तक यानी लगभग 100 दिन तक चला और इसमें अनुमानित 8 लाख तुस्ती समुदाय के लोगों की और उनसे हमदर्दी रखने वाले हुतूओं की जान गई। यह आबादी 1994 में रवांडा की 20 प्रतिशत आबादी थी, जो मारी गई। शायद ये रवांडा का सबसे बड़ा नरसंहार था। जो आज भी लोगों मे भय पैदा करता है।
न्यामता नरसंहार स्मारक में रखे लोगों के अवशेष, रवांडा
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समान्य दिखने वाले हुतू लोग अचानक से इतने खुंखार हो उठे कि, उन्होंने अपने घर में रखे हुए कुल्हाड़ी और चाकू जैसे हत्यार लेकर सड़क पर उतरे और उन्होंने तुस्तीयो को काटना शुरू किया।
जान बचाने के लिए तुस्ती इधर उधर भागने और छिपने लगे। जो कुछ भी तुस्ती लोग जिनमें महिला और बच्चे भी शामिल होते थे। घरों में या इमारतों में छिपते थे उनको पेट्रोल या केरोसिन डालकर जला दिया जाता था।
इन हत्यारों मे चर्च के पादरी भी शामिल होने का दावा कई विशेषज्ञ करते है। कहा जाता है कि, जब तुस्ती लोग अपनी जान बचाने के लिए चर्चों मे छिपे, तब इन पादरियों ने भी भीड़ के साथ मिलकर उनपर बुल्डोजर चलाने का दावा किया जाता है। कहा जाता है कि, इस तरह से घटना को अंजाम देकर हजारों लोगों को मौत के घाट उतारा गया।
इस नरसंहार की आपबीती सुनाने वाले लोग बताते हैं कि, यह नरसंहार इतना भयानक था कि, दोस्त ने दोस्त को भी नही बक्शा। वैसा ही कुछ पड़ोसियों के साथ भी हुआ। जिनके पड़ोसी तुस्ती हुआ करते थे उनको उनके ही पड़ोसियों ने काट डाला। इस नरसंहार का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते है कि, जिन हुतू पतियों की पत्नियाँ तुस्ती थी। उन्हे उनके ही पतियों ने मार डाला। इसके पीछे एक रीजन ये बताया जाता है कि, डर के कारण उन्हे ये करना पड़ा।
इस नरसंहार का मंजर जिन्होंने देखा है। वे सब बताते है कि, जब वे अपनी जान बचाने के लिए तंजानिया भाग रहे थे। तब रवांडा और तंजानिया के सीमा पर बहने वाली कागेरा नदी में उन्होंने हजारों तैरती लाशे देखी। नदी पर बने पुल के पास सीमा पार करने के लिए रुके हजारों लोगों की भीड़ देखी। जो अपनी जान बचाने के लिए तंजानिया भाग रहे थे।
रवांडा नरसंहार के दौरान देश छोड़ रहे लोग
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बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि, इस नरसंहार के दौरान कई तुस्ती महिलाओ को सेक्स स्लेव बनाकर रखा गया। हजारों निर्दोष महिलाओ के साथ गैगरेप हुआ।
इन गैगरेप के कारण कई सारे बच्चे पैदा हुए। बहुत सी महिलाओ ने अपने बच्चों को ये नही बताया कि उनका जन्म गैगरेप के कारण हुआ है। कई रेप से पीड़ित महिलाओं ने अपने पतियों को नही बताया कि, उनके साथ दुष्कर्म हुआ है। क्युकी उनको भय है कि, कही ये सब सुनकर उनके पति उन्हे छोड़ ना दे।
ऐसी ही एक आपबीती है एक माँ जस्टिन और उसके बेटी की। जो उसने अपने साथ हुए उस घटना को न्यूयॉर्क टाइम्स से शेअर किया। उसने बताया कि,
“एक दिन मैने अपने बेटी को बेडरूम मे बुलाया और उससे कहा कि, तुम जानती हो ना? उस नरसंहार में लाखों लोग मारे गए थे। सेकड़ो औरतों के साथ बलात्कार हुआ था। तुने ये भी सुना होगा कि, उन बलात्कारों की वजह से कई सारे बच्चे पैदा हुए थे। मै तुम्हें ये बताना चाहती हूँ कि, इस नरसंहार के दौरान मेरे साथ भी बलात्कार हुआ था। उसी से तुम्हारा जन्म हुआ। बलात्कार करने वाले कई सारे लोग थे। इसलिए मुझे नहीं पता कि, तुम्हारे पिता कौन है।”
ऐसी कई सारी घटनाए है। जो आज तक दुनिया के सामने नही आई।
शोधकर्ताओं का कहना है कि, बलात्कार की घटनाओं को बहुत सोच समझकर अंजाम दिया गया। तुस्ती समुदाय के नस्ल को समाप्त करने के लिए हजारों निर्दोष महिलाओं के साथ हुतू विद्रोहियों ने रेप किया।
दुनिया की पोल खोलकर रखने वाला साबित हुआ यह नरसंहार।
रवांडा के नरसंहार ने दुनिया को शर्मसार करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी। जब रवांडा मे लगातार 100 दिनों तक नरसंहार होता रहा, तब दुनिया पूरी तरह से गुंगी बहरी बनकर देखती रही। कोई कुछ भी नही बोला। दुनिया के मुह पर ये सबसे बड़ा तमाशा था।
अमेरिका ने क्या किया?
इस नरसंहार ने मनवधिकार की बात करने वाले देशों की पोल खोलकर रख दी। खास तौर पर अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों की।
अमेरिका की गुप्तचर संस्था CIA को पता था। रवांडा मे स्थित अमेरिका के दुतावास को भी सब पता था कि, रवांडा मे सांप्रदायिक तनाव अपने चरम पर है। यहाँ कभी भी हिंसा का विस्फोट हो सकता है। पर अमेरिका ने कुछ भी नही किया। दुनिया का नेतृत्व करने वाला अमेरिका खामोश रहा।
फ्रीडम ऑफ इंफोर्मेशन एक्ट के जरिए सार्वजनिक हुए दस्तावेज बताते है कि, कैसे अमेरिका का क्लिंटन प्रशासन, सब खबर होने के बावजूद भी चुप बैठा। बाद में अमेरिका ने अफसोस जताते हुए कहा कि, “अगर अमेरिका हस्तक्षेप करता तो इस नरसंहार को रोक सकता था। नरसंहार मे मारे गए निरपराध एक तिहाई लोगों को बचाया जाया सकता था।”
फ्रांस ने क्या किया?
इस नरसंहार में फ्रांस की भूमिका पर भी कई सवाल उठे। फ्रांस सरकार रवांडा मे स्थापित हुतू सरकार की समर्थक थी।
जो कुछ भी तुस्ती महिलाए इस नरसंहार से बचने में कामयाब हुई। उन्होंने बताया कि, कैसे फ्रांसीसी सैनिक उनके आँखों के सामने उनपर हो रहे बलात्कार को देखती रही। जब यह नरसंहार हो रहा था, तब फ्रांस की एक टुकड़ी वहा शांति स्थापित करने के लिए गई थी। लेकिन उन्होंने कोई हस्तक्षेप नही किया। लेकिन फ्रांस ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया।
UN ने क्या किया?
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इस नरसंहार के बाद UN को भी अपनी आलोचना का सामना करना पड़ा। UN की निष्क्रियता भी इस नरसंहार के बाद उजागर हुई। UN भी यहाँ शांति स्थापित करने मे नाकाम रहा।
संक्षिप्त शब्दों में कहे तो, मानवाधिकार की वकालत करने वाले प्रभावी पश्चिमी देश। इस पूरे घटनाक्रम को खामोशी से देखते रहे। आधुनिक शोध खासकर इस नरसंहार के लिए यूरोपीय देशों को ही जिम्मेदार मानते है।
इस नरसंहार का अंत कैसे हुआ?
युगांडा के समर्थन से RPF ने धीरे धीरे रवांडा के कई इलाकों पर अपना कब्जा करना शुरू किया और अंततः RPF को राजधानी कगाली पर 4 जुलाई 1994 नियंत्रण मिला।
RPF का राजधानी पर कब्जा होते ही, बदले की डर से लाखों हुतू नागरिको ने रवांडा छोड़ना शुरू किया।
मानवधिकार संस्थाओं का आरोप है कि, RPF ने अपना नियंत्रण स्थापित करने के बाद। इन्होंने भी हजारों हुतू नागरिकों की हत्या की। लेकिन RPF इन आरोपों को हमेंशा से खारिज करता आया है।
6/7 अप्रैल 1994 से शुरू हुआ ये नरसंहार 15 जुलाई 1994 को समाप्त हुआ। अतः 100 दिनों तक चले इस नरसंहार के जख्म आज भी ताजा है।
क्या सभी हुतू दोषी और हत्यारे थे?
इस नफरत भरी दुनिया में हमें आज भी कुछ लोग इंसान बने मिलते है। इस नरसंहार मे सभी हुतू हत्यारे नही थे। इस नरसंहार मे केवल तुस्ती ही नहीं मारे गए बल्कि हुतू भी मारे गए। खासकर वो हुतू मारे गए, जिन्होंने तुस्तीयो की मदत का प्रयास किया।
एक गर्भवती तुस्ती महिला डेनिस की कहानी। “नरसंहार शुरू हुए दस दिन हो चुके थे। डेनिस एक तुस्ती गर्भवती महिला थी। वो कहती है कि, कुछ हत्यारे उनके घर में घुसे और उन्होंने घर के सभी सदस्यों को काट डाला। वह एक बिस्तर के नीचे छिपी थी। जिसके कारण वह बच गई। उसके साथ उसका बड़ा बेटा भी जीवित बचा। उसने आगे कहा कि, उनके पड़ोसियों ने उनको और उनके बेटे को संरक्षण दिया। जो हुतू थे। उन्होंने उनकी डिलेवरी भी की। अस्पताल में भर्ती करने के बाद, उनका ख्याल जानपर खेलकर रखा। CNN को डेनिस ने बताया कि,
“हर हुतू हत्यारा नही है। मेरा और मेरे बेटे का भी कत्ल हो जाता। अगर हमारे हुतू पड़ोसी हमारी सहायता ना करते तो। वो ईश्वर के भेजे फरिश्ते थे।”
डेनिस का बड़ा बेटा अब युवा बन चुका है। जिसका नाम चार्ल्स है। वो कहता है कि, उसने अपने पिता को आखरी बार 5 अप्रैल 1994 को देखा था जब वे उसकी माँ को I LOVE YOU कहकर बाहर चले गए थे। तबसे वे कभी घर नही लौटे। शायद उनकी भी हत्या हुई होगी।
वर्तमान में रवांडा के हालात कैसे है?
फिलहाल रवांडा मे तुस्ती समुदाय के नेता और RPF के सदस्य और समर्थक पॉल कागामे सत्ता में है।
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Paul Kagame
रवांडा को दुबारा से पटरी पर लाने का श्रेय राष्ट्रपति पॉल कागामे को दिया जाता है। रवांडा मे हुए इस नरसंहार को, अब वहा पर एक अति संवेदनशील मुद्दा माना जाता है। इस पर बहस करना रवांडा मे गैर कानूनी घोषित किया हुआ है। वहा के सरकार का इस बारे में कहना है कि, ये फैसला लोगों के भलाई के लिए लिया गया है।
पॉल कागामे पर भी आये दिन ये आरोप लगता है कि, उन्होंने रवांडा मे लोकशाही को समाप्त कर हुकूमशाही को स्थापित किया है। कागामे के विरोधियों का रहस्यमयी ढंग से गायब होना, उनकी मृत्यु होना इन आरोपों को और मजबूती प्रदान करते है। 2007 मे हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में उन्हे 98.63 प्रतिशत वोट मिला था।
आंतरराष्ट्रीय समुदाय रवांडा को लेकर हमेशा से गलती करता रहा है। पहले गलती से रवांडा मे नरसंहार हुआ। तो अभी के गलती के कारण वहा हुकूमशाही मजबूत बन रही है।
दोस्तों ये थी। रवांडा के नरसंहार की पूरी जानकारी जो काफी दिल दहला देने वाली है। यह जानकारी कई अन्य लेखों से प्रेरित है। हमारा मकसद केवल आपको इस घटना से अच्छे से अवगत कराने का था। इसमें कोई गलती हो, तो हमें सहायता करे। धन्यवाद!!