Last Updated on 6 months by Sandip wankhade
शिरिषकुमार मेहता भी भारत के सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानी है। जिन्होंने महज 16 साल की उम्र में अपनी शहादत दी।
स्वतंत्रता सेनानी शिरिषकुमार का जन्म 28 दिसम्बर 1926 को महाराष्ट्र के नंदुरबार नगर में हुआ। वर्तमान में नंदुरबार महाराष्ट्र के खानदेश क्षेत्र का एक प्रमुख जिले के तौर पर विकसित हुआ है। नंदुरबार को महाराष्ट्र गुजरात के सीमा पर बसा एक व्यापारी नगर भी कहा जाता है। इसी नगर में एक गुजराती व्यापारी पुष्पेंद्र मेहता के घर बाल स्वतंत्रता सेनानी शिरिषकुमार का जन्म हुआ। शिरिषकुमार अपने माता पिता की यानी माता सविता मेहता और पिता पुष्पेंद्र मेहता की एकलौती संतान थे।
शिरिषकुमार का परिवार एक व्यापारी परिवार होने पर भी उनके घर का माहौल देशभक्ति से भरा हुआ था। बचपन से ही शिरिषकुमार अपने माता पिता से देशभक्ति से जुड़ी स्वतंत्रता सेनानीयो की कहानियाँ सुनते थे। कहा जाता है कि, अच्छे संस्कार में पले बढ़े शिरिषकुमार पर आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चन्द्र बोस जी का काफी प्रभाव था। वे सुभाष चन्द्र बोस जी के कार्य से काफी प्रभावित थे। देशभक्ति का जुनून शिरिषकुमार मे इस कदर भरा हुआ था कि, वे बचपन से ही अपने दादाजी के संग आंदोलन में शामिल होने के लिए जाया करते थे।
शिरिषकुमार के शहादत की घटना तब घटित हुई थी, जब पूरे भारत में 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। 1942 के दौर में लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरकर अंग्रेजों का खुलकर विरोध कर रहे थे। इस 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गाववासी भी पीछे नहीं थे। लोग अपने गाव में भी रास्तों पर उतरकर अंग्रेजों का विरोध कर रहे थे।
कहा जाता है कि, 1942 का यह वह दौर था। जिसमें अंग्रेजों ने अपने अत्याचारों की सीमा लांघ दी थी। इस 1942 के दौर में अगर कोई भी “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम्” जैसे नारे अगर लगाते हुए पाया जाता था। तो उसे अंग्रेज पुलिस पकड़कर अनियमित काल के लिए जेल में डाल देती थी और उसे जेल में काफी प्रताड़ित भी किया जाता था।
8 अगस्त 1942 से शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन के ठीक एक महीने बाद यानी 9 सितंबर 1942 को बाकी जगहों की तरह ही नंदुरबार मे भी एक बड़े रैली का आयोजन किया गया। इस दिन यह रैली नंदुरबार के मुख्य रास्ते से निकाली गई थी। इस रैली में बड़ी संख्या में लोग अंग्रेजों का विरोध करने के लिए जुटे थे।
इसी रैली में देशभक्त शिरिषकुमार अपने कुछ साथियों के साथ तिरंगा हाथ में लिए शामिल हुए। जब शिरिषकुमार इस रैली में शामिल हुए थे, तब उनकी उम्र महज 16 साल थी और वे एक स्कूली छात्र थे।
छोटे बालक शिरिषकुमार और उनके साथी रैली में तिरंगा लेकर शामिल होने के बाद “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम्” जैसी घोषणाए जोर जोर से दे देने लगे थे। उनकी उन घोषणाओ से प्रेरित होकर रैली में शामिल बाकी लोग भी जोर जोर से “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम्” घोषणाएं देने लगे थे।
ऐसा कहा जाता है कि, “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम्” इन घोषणाओं की गूंज पूरे नंदुरबार मे गूंज रही थी। इन घोषणाओं की आवाज पूरे नंदुरबार मे गूंजने से अंग्रेजों को पता चल जाता है कि, लोगों ने एक बड़ी रैली अंग्रेजों के खिलाफ निकाली है। जैसे ही अंग्रेजों को यह पता चलता है। उसके बाद वे तुरंत रैली के तरफ अपने सभी पुलिसकर्मीयों संग निकल पड़ते है। ताकि रैली को जल्द से जल्द रोका जा सके।
लेकिन अंग्रेज पुलिस के रैली के पास पहुँचने तक रैली ने एक बड़ा रूप ले लिया था और वह शहर के बीचोबीच आकर रुक गई थी। रैली शहर के बिचोबिच आने के बाद अंग्रेज पुलिस भी वहा पहुची और वहा पहुँचते ही अंग्रेज पुलिस ने रैली में शामिल सभी लोगों को चुपचाप वापस लौटने के लिए कहा। लेकिन कोई भी वापस लौटने को तयार नहीं था। अंग्रेज पुलिस के चेतावनी देने पर भी रैली में शामिल लोगों का हौसला कम ना हो। इसलिए लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए शिरिषकुमार रैली में सबसे आगे आए और रैली का नेतृत्व करने लगे। 16 साल के शिरिषकुमार का हौसला देखकर अंग्रेज अफसर काफी हैरान हुआ। वह अफसर मन ही मन सोचने लगा कि, “इतना सा लड़का इतने बड़े रैली का नेतृत्व कर रहा है।”
शिरिषकुमार की देशभक्ति और उसका हौसला देखकर अंग्रेज अफसर उंची आवाज में शिरिषकुमार को कहता है “हे लड़के तूने सुना नही क्या मैंने क्या कहा” अंग्रेज अफसर की बात सुनकर भी शिरिषकुमार उसके बात को अनसुना कर देता है और रैली का नेतृत्व करने के लिए आगे डटे रहता है और जोर जोर से से “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम्” के नारे लगाता रहता है। शिरिषकुमार के इस हरकत के बाद अंग्रेज अफसर को काफी गुस्सा आ जाता है। वह अंग्रेज अफसर दुबारा लोगो को चेतावनी देता है। लेकिन कोई भी रैली को नही छोड़ता है। जिसके बाद अंग्रेज अफसर अपने सभी पुलिसकर्मीयों को लाठीचार्ज करने का आदेश दे देता है।
आदेश मिलते ही अंग्रेज पुलिस रैली में शामिल लोगों पर लाठीचार्ज शुरू कर देती है। लेकिन पुलिस की लाठी भी आंदोलनकारियों की आवाज को नही दबा पाती। पुलिस की आंदोलनकारियों पर लाठीया पड़ने पर भी शिरिषकुमार और उनके साथी आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ाने के लिए रैली के सामने बिना डरे डटे रहे और जोर जोर से “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम्” का जयघोष करते रहे। शिरिषकुमार के हौसले को देखकर बाकी आंदोलनकारी भी रैली में डटे रहे और जोर जोर से नारे लगाते रहे।
आंदोलनकारियों पर लाठीया बरसाने के बाद भी नंदुरबारवासीयों का अपने देशप्रेम के खातिर रैली में डटे रहना और जोर शोर से “भारत माता की जय”, “वन्दे मातरम्” नारों का जयघोष करना अंग्रेज अफसर को काफी नागवार गुजरा। आंदोलनकारियों के इस हरकत से उसे और गुस्सा आया।
इसके बाद गुस्से से लाल हुए अंग्रेज अफसर ने आखिरकार अपना रौब जमाने के लिए और सभी आंदोलन कर रहे लोगों को भगाने के लिए वह अपनी बंदूक को एक आंदोलनकारी पर तान देता है और सबको पीछे हटाने की कोशिश करता है। लेकिन तभी शिरिषकुमार उस आंदोलनकारी के सामने खड़े हो जाता है जिसके उपर अंग्रेज अफसर ने बंदूक तानी हुई थी। इसके बाद शिरिषकुमार उस अंग्रेज अफसर को बड़े गुस्से में आँखें दिखाकर और बड़े ऊँचे आवाज में कहता है कि, “अगर तुम्हे गोली मारनी है, तो सबसे पहले मुझे मारो। मै तुमसे नहीं डरता। ऐसा कहकर शिरिषकुमार राष्ट्रध्वज तिरंगे को हाथ में लेकर उसे हवा में लहराते है और उस अंग्रेज अफसर के मुह पर जोर जोर से अपनी मातृभाषा गुजराती में घोषणा देते है। “नही शमसे’ नही शमसे’ निशान भुमि भारतभुनी’, ‘वन्दे मातरम्’, ‘भारत माता की जय”। शिरिषकुमार के इस तरह के हरकत के कारण अंग्रेज अफसर की सभी लोगों के सामने फजीहत होतीं हैं। अपनी फजीहत होते देख गुस्से में अंग्रेज अफसर आगबबुला हो जाता है और उसके बाद वह अपने बंदूक से शिरिषकुमार के सीने में एक के बाद एक चार गोलियां मार देता है। गोलियां लगने से शिरिषकुमार नीचे गिर जाते है। लेकिन गिरने से पहले शिरिषकुमार तिरंगे को अपने साथी के पास थमा देते है और घटना स्थल पर ही (9 सितंबर 1942) अपने वतन के खातिर शहीद हो जाते है।
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अंग्रेज अफसर शिरिषकुमार के अलावा उनके चार साथी लालदास शाहा, धनसुखलाल वाणी, शशिधर केतकर और घनश्यामदास को भी गोली मारता है। अंग्रेज अफसर के गोली मारने से शिरिषकुमार के साथ साथ उनके ये चार साथी भी घटना स्थल पर शहीद हो जाते है।
वर्तमान में शिरिषकुमार और उनके चार साथियों के याद मे नंदुरबार मे स्मारक का निर्माण किया हुआ है। जहा हर साल लोग उन्हें उनके बलिदान दिवस पर श्रद्धांजली अर्पित करते है।
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