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वीर गाथा 13 साल के नायक ध्रुव कुंडू की जिसे तिरंगा फहराने के दौरान अंग्रेजों ने गोली मारी।

वीर गाथा 13 साल के नायक ध्रुव कुंडू की जिसे तिरंगा फहराने के दौरान लगी थी गोली
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Last Updated on 6 months by Sandip wankhade

ध्रुव कुंडू भी भारत के उन तमाम स्वतंत्रता सेनानीयो मे से एक है। जिन्होंने सबसे कम उम्र में अपनी शहादत दी। यह भी एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुए है जिन्होंने महज 13 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।

बाल स्वतंत्रता सेनानी तथा शहीद ध्रुव कुंडू का जन्म भारत के एक प्रमुख राज्य बिहार के कठीहार जिले में सन् 1929 में हुआ था। वर्तमान में निर्मित कठीहार जिला पूर्व में पूर्णिया जिले का ही एक भाग था। ध्रुव कुंडू के पिताजी का नाम डॉ किशोरी लाल कुंडू था। जो कठीहार के एक प्रख्यात चिकित्सक थे। कठीहार के लोग उनका काफी आदर सम्मान किया करते थे।

ध्रुव कुंडू के पिता एक प्रख्यात चिकित्सक होने के कारण उनके यहाँ लोगों का हमेशा आना जाना रहता था। कुछ लोग चिकित्सा के लिए आते थे, तो वही कुछ लोग वैसे ही उन्हे मिलने आया करते थे और अलग अलग विषयों पर चर्चा किया करते थे। ध्रुव कुंडू के पिता एक देशभक्त भी थे। मिलने आने वाले लोगों मे और ध्रुव कुंडू के पिता किशोरी लाल कुंडू मे बहुत बार अंग्रेजों के जुल्मो को लेकर और भारत माँ के आजादी को लेकर कई बार चर्चा होती थी।

घर में देशभक्ति का वातावरण होने से और और पिताजी से मिलने आने वाले लोगों मे अंग्रेजों के जुल्मो को लेकर होने वाली चर्चा से ध्रुव कुंडू बचपन में ही देशभक्ति से प्रेरित हो गए थे। बचपन से ही अंग्रेजों के जुल्मो की बातें सुनकर और बाद में खुद अपनी आँखों से जुल्म को देखने के बाद ध्रुव कुंडू अंग्रेजों से काफी नफरत करने लगे थे। इन सारे घटनाओ का ध्रुव कुंडू पर बचपन में ही प्रभाव पड़ने के कारण वे महज 13 साल की उम्र में ही अपने स्कूली शिक्षा के दौरान एक क्रांतिकारी बनकर उभरे।

ध्रुव कुंडू के शहादत की घटना तब की है, जब भारत में 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए शहरवासियों से लेकर गाववासियों तक ने इस आंदोलन में अपना अपना योगदान दिया। इसी आंदोलन में पूर्णिया के लोगों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। जिसमें नौजवानों ने अपनी अहम भूमिका निभाई थी।

पूर्णिया मे लोग अलग अलग स्थानों पर इकठ्ठा हो कर आंदोलन कर रहे थे, सभाएं ले रहे थे। ताकि भारत छोड़ो आंदोलन को असरदार बनाया जा सके।

भारत छोड़ो आंदोलन में अपना योगदान देने के लिए पूर्णिया में एक ऐसे ही सभा का आयोजन 10 अगस्त 1942 को किया गया। इस सभा का आयोजन पूर्णिया जिले में बने कांग्रेस के आश्रम टिकापट्टी में हो रहा था। इस सभा में मौजूद सभी नेता पूर्णिया में किए जाने वाले आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे थे। पहले ही भारत छोड़ो आंदोलन से पूरे देश में परेशान हो रहे अंग्रेजों को जब यह पता चला कि, कांग्रेस के टिकापट्टी आश्रम में आंदोलन को लेकर बैठक हो रही है, तब पूर्णिया में मौजूद अंग्रेजों के सभी आला अधिकारी अंदर से हिल गए। टिकापट्टी आश्रम में शहर के लोगों की बैठक होना पूर्णिया में तैनात अंग्रेजों के आला अफसरों और पुलिसकर्मीयों को परेशान करने वाली खबर थी। जैसे ही अंग्रेजों को कांग्रेस आश्रम टिकापट्टी मे चल रहे बैठक के बारे में पता चला, वैसे ही फौरन बाद वहा अंग्रेज पुलिस की एक टीम पहुची। अंग्रेज पुलिस ने वहा पहुँचते ही ना केवल बैठक को रोक दिया, बल्कि बैठक में शामिल सभी लोगों को गिरफ्तार भी किया। इतना करने पर भी अंग्रेज पुलिस नही रुकी। उन्होंने उस पूरे आश्रम को भी सिल लगा दिया। पहले से ही  अंग्रेजों के अत्याचारों से परेशान पूर्णिया जिले के वासीयों को जब यह पता चला कि, कुछ क्रांतिकारीयों को अंग्रेज पुलिस ने जबरन हिरासत में ले लिया है, तो वे ओर ज्यादा उग्र हो गए।

इसके बाद अगले ही दिन यानी 11 अगस्त को कुछ क्रांतिकारीयों ने अंग्रेजों के एक रजिस्ट्री ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। इस आग में रजिस्ट्री ऑफिस में रखे अंग्रेजों के सारे दस्तावेज जल कर राख हो गए। इस घटना की खबर पूरे पूर्णिया के अलावा बाहर भी फैल गई।

रजिस्ट्री ऑफिस को आग लगाने के घटना को अंजाम देने के बाद क्रांतिकारीयों ने दूसरे दिन यानी 12 अगस्त को जिले के झौआ सहित बाकी अन्य स्थानों पर रेलवे लाइन और टेलीग्राफ का तोडफोड किया। इन रेलवे लाइन और टेलीग्राफ के तोडफोड करने के पीछे की असल वजह क्रांतिकारीयों की यह थी कि, अंग्रेजों को क्रांतिकारीयों के गतिविदियों से बेखबर रखना और घटना स्थल पर पहुँचने से रोकना था। ऐसा प्रतीत होता है। यह सिलसिला तब तक जारी रहा, जब तक अंग्रेजों को पता नहीं चलता।बाद में आखिरकार वह तारीख आ ही गई जिस तारीख को ध्रुव कुंडू को गोली लगने से उनकी मौत हो गई थी। वह तारीख थी 13 अगस्त 1942 की। इस दिन कई सारे क्रांतिकारी 13 वर्षीय बालक ध्रुव कुंडू के नेतृत्व में इकट्ठा हुए और उन्होंने शहर में स्थित सारे सरकारी दफ्तरों पर अंग्रेजों का ध्वज यूनियन जैक को हटाकर वहा भारत का तिरंगा ध्वज फहराने लगे।

ध्रुव कुंडू के नेतृत्व मे क्रांतिकारी अपना तिरंगा फहराने के लिए मुंसफ कोर्ट के उपर भी चढ़े और उन्होंने उपर चढ़ने के बाद कोर्ट पर लगे अंग्रेजों के यूनियन जैक को उखाडकर नीचे फ़ेंक दिया और वहा भारत का अपना तिरंगा ध्वज फहराया।

मुंसफ कोर्ट पर तिरंगा ध्वज फहराने के बाद ध्रुव कुंडू और बाकी सारे क्रांतिकारी जिसे वर्तमान में शहीद चौक कहा जाता है वहा के समीप बने कोतवाली थाने पर तिरंगा ध्वज फहराने के लिए निकल पड़े। लेकिन जैसे ही यह खबर अंग्रेज पुलिस को पता चली कि, कुछ क्रांतिकारी कोतवाली थाने पर तिरंगा ध्वज फहराने वाले है। वे जल्द ही अपने पुलिसकर्मीयों को लेकर वहा पहुचे। अंग्रेज पुलिस के वहा पहुँचते ही उन्होंने सभी क्रांतिकारीयों को वापस जाने को कहा। लेकिन पुलिस के चेतावनी के बाद भी कोई भी क्रांतिकारी वापस लौटने को तैयार नहीं हुआ। सभी वही रुककर नारेबाजी करने लगे। इसी दौरान अपने छोटे छोटे हाथ में तिरंगा ध्वज लिए ध्रुव कुंडू आगे बढे। 13 साल के ध्रुव कुंडू को तिरंगा ध्वज हाथ में लिए आगे बढ़ते देख अंग्रेज पुलिस काफी हैरान हो गई। 13 साल के ध्रुव कुंडू की देशभक्ति, बहादुरी और उनके चेहरे से झलकती निडरता को देखकर अंग्रेज पुलिस का आगबबुला होना स्वभाविक था। चेतावनी देने के बाद भी इस छोटे बच्चे को आगे बढ़ते देख अंग्रेज पुलिस के अफसर ने अपने सभी पुलिसकर्मीयों को आखिरकार गोली चलाने का आदेश दे दिया। आदेश मिलते ही पुलिसकर्मी क्रांतिकारीयों पर गोली चलाने लगे। इसी गोलीबारी में अंग्रेजों के पुलिस की एक गोली तिरंगा ध्वज हाथ में लिए आगे बढ़ रहे ध्रुव कुंडू की जांघ लग जाती है। ध्रुव कुंडू को जांघ मे गोली लगने से वे वही नीचे गिर जाते है। इस गोलीबारी का शिकार ध्रुव कुंडू के अलावा बाकी भी क्रांतिकारी होते है।

ध्रुव कुंडू को गोली लगने के बाद खून से लथपथ हुए ध्रुव कुंडू को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया जाता है। लेकिन इलाज के दौरान ध्रुव कुंडू अपने सभी साथियों के अलावा सभी देशवासियों को अलविदा कह देते है।

ध्रुव कुंडू के शहीद होने की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। उनकी शहादत ने  लोगों के अंदर के देशभक्ति की आग को और बढ़ा दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि, लोग और ज्यादा अंग्रेजों का विरोध करने लगे।

ध्रुव कुंडू के शहादत के बाद उनके पिता किशोरी लाल कुंडू और बाकी क्रांतिकारी नेताओं ने मिलकर एक ध्रुवदल संघटना का गठन किया। इस ध्रुवदल के नेतृत्व में तत्कालीन कटिहार तथा पूर्व में पूर्णिया कहे जाने वाले जिले के कई हिस्सों में आंदोलने चलाई गई।

शहर के जिस स्थल पर बाल स्वतंत्रता सेनानी एवंम शहीद ध्रुव कुंडू को गोली लगी थी। उस स्थल को वर्तमान में शहीद चौक के नाम से जाना जाता है। इसी तरह वर्तमान में शहीद ध्रुव कुंडू और बाकी क्रांतिकारीयों के याद मे कई स्मारकों का तथा वाटिकाओं का निर्माण किया जा रहा है।

सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात तो यह है कि, आजादी के 75 साल पूरे होने है। लेकिन अभी तक हम इन स्मारकों का जो उनकी याद मे हम बना रहे है उनका सौंदर्यीकरण पुरा नही कर पाए है।

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13 अगस्त 1942 को ध्रुव कुंडू के अलावा रामाशिष सिह, रामाधार सिंह, बिहारी साह, भुसि साह, कलानंद मंडल, दामोदर साह, रमचू यादव, फु लो मोदी, नटाय परिहार, झबरू मंडल, लालजी मंडल आदि क्रांतिकारीयों ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपनी शहादत दी।

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