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क्या ईवीएम के जरिए वोटों की चोरी की जा सकती है? क्या ईवीएम को हैक किया जा सकता है? क्या ईवीएम बैलेट पेपर से बेहतर है या फिर बैलेट पेपर ईवीएम से बेहतर है? इस प्रकार के कई सारे सवाल आजकल लोगों के जेहन में आ रहे हैं। इन सवालों के पिछे की वजह भी काफी तार्किक नजर आती है। क्युकी वर्तमान में ईवीएम में धांधली की कई सारी खबरें सामने आई है। जिस कारण ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
इस लेख में हम ईवीएम मशीन के भरोसे को लेकर वो 10 कारण जानेंगे। जो ईवीएम मशीन को भरोसे लायक है या नहीं यह बताते है।
1) ईवीएम में पारदर्शिता की कमी :-
जब हम बैलेट पेपर से वोटिंग करते हैं, तो मतदाता को मालूम होता है कि, उसने किस उम्मीदवार को वोट दिया है। क्युकी बैलेट पेपर में मतदाता खुद अपने हाथों से अपने मनपसंद उम्मीदवार के निशान पर मोहर लगाता है और उस बैलेट पेपर को वह खुद अपने हाथों से मोड़कर बैलेट पेपर बॉक्स में सभी अधिकारियों और प्रत्याशियों के सामने डालता है।
जबकि ईवीएम के मामले में यह प्रक्रिया संदेहास्पद रहती है। क्योंकि मतदाता जिस निशान के आगे का बटन दबाता है, तब वह यह तय नहीं कर पाता की, उसका मत उसी उम्मीदवार को ही गया है की नही। लेकिन बाद में इस कमी को पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ईवीएम मशीन के साथ साथ वीवीपीएटी मशीन भी लगाई गई। जिससे कागज की एक पर्ची निकलती है। जिसे मतदाता देख भी सकता है और यह तय कर पाता है कि, उसका वोट किसे गया है।
लेकिन जब वोटो की गिनती होती हैं, तब सभी ईवीएम मशीनो के वीवीपीएटी को नहीं गिना जाता। केवल कुछ ही ईवीएम मशीनों के वीवीपीएटी को गिना जाता है और देखा जाता है कि, ईवीएम में पड़े वोट और वीवीपीएटी में दिखे वोट सेम है या नहीं। मतलब हम कह सकते हैं कि, यह प्रक्रिया सभी ईवीएम मशीनों के साथ नही की जाती है। अर्थात यह प्रक्रिया 100 फीसदी नही की जाती है।
2) ईवीएम से एक ही बार मतगणना संभव है :-
जब हम ईवीएम मशीन पर वोटिंग करते है, तब ईवीएम में डाला गया वोट एक डिजिटल नंबर में तब्दील हो जाता है। जिनको एक बार ही गिना जाता है। मतलब हम कह सकते हैं कि, ईवीएम मशीन में दुबारा मतगणना संभव नहीं है। जबकि बैलेट पेपर द्वारा डाले गए वोटों की गिनती हम जितनी बार चाहे कर सकते हैं और वह संभव भी है।
3) कई विकसित देशों में ईवीएम से मतदान नही होता है :-
वैसे देखा जाए तो ईवीएम से मतदान कराने की टेक्नोलॉजी दुनिया में काफी लंबे समय से मौजुद है। लेकिन फिर भी हम देख पाते हैं कि, दुनिया के लगभग सभी देश ( कुछ चुनिंदा देशों को छोड़ा जाए तो) आज भी बैलेट पेपर से ही अपने यहां चुनाव कराते हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान जैसे आदि देश जिनकी टेक्नोलॉजी का लोहा पूरी दुनिया मानती है। लेकिन फिर भी ये सभी देश इतने विकसित होने के बावजूद भी अपने यहां आज भी बैलेट पेपर से ही चुनाव कराते हैं।
आपको बता दें कि, कुछ देशों ने अपने यहां ईवीएम मशीन का चुनाव में इस्तेमाल किया। लेकिन वे दुबारा बैलेट पेपर ही लौट आए। मिसाल के तौर पर जर्मनी ने अपने यहां ईवीएम का इस्तेमाल कराने का फैसला जब लिया, तब कुछ लोगों ने सरकार के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट ने भी ईवीएम के खिलाफ़ अपना फैसला दीया। जिसके बाद जर्मनी में बैलेट पेपर से ही चुनाव होने लगे।
जर्मनी के अलावा नेदरलैंड ने भी अपने यहां चुनाव में ईवीएम मशीन का इस्तेमाल किया। लेकिन जब लोगों को ईवीएम में धांधली होने की आशंका नज़र आई। तो वहा की जनता ईवीएम के खिलाफ़ रास्तों पर उतरकर आंदोलने करने लगीं। जिस कारण वहा के सरकार को अपना ईवीएम वाला फैसला बदलना पड़ा और आज वहा 2007 से पूरे देश में ईवीएम से नही बल्कि बैलेट पेपर से वोटिंग होती हैं।
इन देशों के अलावा आयरलैंड और इटली ये भी वो देश है। जिन्होंने अपने यहां पहले ईवीएम का इस्तेमाल किया और बाद में ये देश भी बैलेट पेपर लौट आए। आज इन सभी देशों में ईवीएम को पूरी तरह से बैन कर दिया है।
दुनिया में ज्यादातर देश ऐसे है जिन्होंने अपने यहां ईवीएम का इस्तेमाल कभी किया ही नहीं है। ईवीएम से चुनाव पूरी दुनिया में केवल भारत, वेनेजुएला और भूटान में ही होता है और इन सभी देशों में भी यह हमेशा विवादों में ही रहता है।
4) ईवीएम का आविष्कार किया वो भी बैलेट पेपर से ही अपने यहां चुनाव कराते हैं :-
ईवीएम भरोसे लायक ना होने की चौथी वजह यह है कि, जिन देशों ने इस ईवीएम को बनाया है। या हम यू कहे तो जिन देशों ने इस ईवीएम मशीन का आविष्कार किया है। वे देश भी खुद इसपर भरोसा नहीं करते है। उन्हे अपने द्वारा निर्मित आविष्कार पर ही भरोसा नहीं है। वे देश अपने लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखने के लिए ईवीएम पर नही बल्कि बैलेट पेपर पर अपने यहा चुनाव कराते हैं। अर्थात हम कह सकते हैं कि, ईवीएम बैलेट पेपर से कुछ ज्यादा सुरक्षित है, इसका कोई ठोस आधार नहीं है।
5) मशीन के साथ छेड़छाड़ संभव :-
ईवीएम मशीन भरोसे लायक ना होने कि, पांचवी वजह यह भी है कि, जो मशीन इन्सान द्वारा ठीक की जा सकती है उसे खराब भी किया जा सकता है। इसलिए ईवीएम में कोई खराबी नही है और उससे छेड़छाड़ संभव नहीं है। ऐसा कहना ना केवल अवैज्ञानिक है, बल्की बेवकूफी भी है।
6) कई पार्टियों ने ईवीएम पर संदेह किया :-
ईवीएम से जुड़ी छटी वजह तो बहुत ही आश्चर्यजनक है। आपको जानकर हैरानी होगी कि, हर वह पार्टी जबतक सत्ता से बाहर रहती है, तबतक तो ईवीएम का विरोध करती है। लेकिन सत्ता में आने के बाद समर्थन करती है। ईवीएम पर सबसे पहले ऐतराज BJP ने जताया था। जो आज सत्ता में आने पर ईवीएम का समर्थन कर रही है। BJP ने अपना सबसे पहला ऐतराज ईवीएम मशीन पर 2009 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद दिखाया था। इस चुनाव के बाद बकायदा BJP ने ईवीएम के खिलाफ़ एक मुहिम भी चलाई थी। इतना ही नहीं BJP के एक नेता जी. व्ही. एल. नरसिम्हा राव ने अपनी एक ईवीएम से जुड़ी किताब “डेमोक्रेसी एट रिक्स – कॅन वी ट्रस्ट अवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन?” भी पब्लिश की। जिसमें उन्होंने बताया है कि, किस प्रकार से ईवीएम मशीन के कारण लोकतंत्र खतरे में पड़ा है।
सुब्रमण्यम स्वामी को कौन नहीं जानता, इन्होंने ने भी ईवीएम के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया था।
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस से लेकर बीजेपी, बीएसपी, एसपी, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस आदी पार्टियों ने भी ईवीएम पर कभी ना कभी ऐतराज ज़रूर जताया हुआ है। इसके अलावा इन पार्टियों ने चुनाव आयोग को लिखकर भी सुचित किया कि, वह ईवीएम की बजाए बैलेट पेपर से देश में चुनाव करे।
याने कि हम कह सकते हैं कि, भारतीय राजनीती से जुडे सभी दलों और संघटनाओ ने भी कभी ना कभी ईवीएम पर सवाल खड़े किए हुए है।
7) बैलेट पेपर के चुनाव का बेहतर जवाब नहीं है ईवीएम :-
जो धोखाधडिया बैलेट पेपर से चुनाव कराते वक्त की जाती थी। जैसे बोगस मतदान कराना, बूथों पर कब्जा करके दुसरे के वोट डाल देना आदी। यह आज भी ईवीएम के राज में भी जारी है। लिहाजा हम कह सकते हैं कि, इन चीजों पर ईवीएम आने के बाद भी कोई रोक नहीं लग पाई है। जो काम बैलेट पेपर पर किया जाता था। वहीं काम ईवीएम पर भी होता दिखाई देता है।
8) ईवीएम से चुनाव का समय नहीं बचता :-
अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि, ईवीएम से समय की बचत होती हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। हम सब ने देखा होगा कि, 2021 के अंत में जो चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों की घोषणा की, तब इन राज्यों के चुनावों को पूरा करने के लिए चुनाव आयोग को 66 दिनों का समय लगा। जबकी 1984 का लोकसभा चुनाव केवल 4 दिनों में पुरा हुआ था। गौर करने वाली बात तो यह है कि, यह चुनाव बैलेट पेपर पर हुआ था। जो 24 दिसंबर से 27 दिसंबर के बिच पुरा हुआ। इसके अलावा 1989 में जब देश में दुबारा लोकसभा का चुनाव हुआ, तब वो भी बैलेट पेपर पर हुआ था और वह महज पांच दिनों में ही निपट गया था। इतने कम समय में बैलेट पेपर पर चुनाव तब हुए, जब देश में ढंग की सड़के तक नहीं थी। देश में कई स्थान तो ऐसे थे। जहा पर आसानी से पहुंचा तक नहीं जाता था।
लेकिन आज के समय में देश की सड़के पहले के मुक़ाबले काफी बेहतर है और हर दुर्गम इलाकों में भी बनी हुई हैं। लेकिन वर्तमान में हुए पांच राज्यों के चुनाव हमे यह दिखाते हैं कि, अच्छी सड़के और अच्छी कैनेक्टिवीटी होने के बावजूद और ईवीएम से चुनाव कराने के बावजूद भी केवल कुछ राज्यों का चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को 66 दिनों का समय लग रहा है।
लेकिन एक अच्छे और एक मजबूत लोकतंत्र में अगर चुनाव में थोड़ा ज्यादा वक्त लगता है तो इसमें क्या बुराई है।
ईवीएम की सुरक्षा सचमुच कितनी चाकचौबंध हैं और चुनाव से पहले ईवीएम कहा रखी होती हैं पढ़े पूरी जानकारी :- कैसे होती है EVM की सुरक्षा? क्या EVM की सुरक्षा पर संदेह करना सही है?
9) ईवीएम में धांधली हो नही सकती :-
ईवीएम के बारे में ऐसा कहा जाता है कि, इसे हैक नही किया जाता और उसके साथ छेड़छाड़ संभव नहीं है। लेकिन ऐसा दावा करना एक अवैज्ञानिक तर्क है। हो सकता है कि, ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। लेकिन छेड़छाड़ संभव ही नहीं है, ऐसा कहना विज्ञान की भाषा नही है।
हा यह सच है कि, ईवीएम को चलाने के लिए बाहरी कैनेक्टिविटी जैसे इंटरनेट, वाईफाई, ब्लूटूथ की जरूरत नहीं होती है। जिसके कारण इसे हैक करना असंभव है।
लेकिन टेम्परिंग (Tampering) तो की जा सकती है। जिसे चुनाव आयोग नकारता है। अब आप सोच रहे होंगे कि, ये टेम्परिंग क्या चीज़ है, हमने तो केवल हैकिंग का नाम सुना था। तो चलिए जानते हैं, टेम्परिंग असल में है क्या?
टेम्परिंग (Tampering) का मतलब मशीन के अंदर ही कुछ ऐसे बदलाब कर देना, जिसके चलते वह मशीन आपके मनमुताबिक चले। याने की ईवीएम मशीन में टेम्परिंग करके ईवीएम द्वारा आने वाले नतीजे आपके मनमुताबिक किए जा सकते हैं।
आसान भाषा में समझे तो, EVM एक केलकुलेटर की तरह है,जिस तरह केलकुलेटर में प्रोग्राम सेट होता है कि 2+2=4 होते है। यदि केलुकुलेटर बनानी वाली कंपनी केलुकुलेटर में 2+2=5 का प्रोग्राम सेट करती तो केलुकुलेटर वैसा ही व्यवहार करता जैसा उसे बनानी वाली कंपनी या इंजीनियर ने आदेशित किया है।
ठीक उसी प्रकार EVM को बनाने वाले इंजीनियर EVM में प्रोग्राम सेट करके निश्चित पार्टी को जीतवा सकते है।
वैसे भी ईवीएम का निर्माण तो इंसान ने ही किया है। मतलब जो ईवीएम को बना सकता वही उसे ठीक भी कर सकता है और बिगाड भी सकता है। ईवीएम में लगी चिप की प्रोग्रामिंग इंसान ही तो करता है। इंसान ही तो मशीन में उम्मीदवारों के नाम और उनके चुनाव चिन्ह डालते हैं। इसलिए यह कहना कि, ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। यह बात बिलकुल बेवकूफी भरी है। बाकी कुछ नहीं।
10) लोगों के शंकाओं का निवारण करने के लिए बैलेट पेपर पर चुनाव जरूरी है :-
राजनीतिक दलों के अलावा, राजनीतिक विशेषज्ञ और जनता को भी ईवीएम पर संदेह है और ये सभी कभी ना कभी ईवीएम का विरोध कर चुके हैं। इसलिए लोकतंत्र पर लोगों का भरोसा बनाए रखने के लिए बैलेट पेपर से चुनाव होना ईवीएम से ज्यादा बेहतर है।
दोस्तों यह थीं ईवीएम भरोसे लायक ना होने की 10 बड़ी वजह। यह लेख आपको कैसा लगा हमें ज़रूर बताएं।
यह लेख दिलीप मंडल के लेख पर और तर्को पर आधारित हैं।