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बालामणि अम्मा (Balamani Amma) जिसे मलयालम साहित्य की दादी कहा जाता है

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Last Updated on 2 months by Sandip wankhade

मलयालम साहित्य में कवि नलपत बालामणि अम्मा का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रसिद्ध हिंदी कवि महादेवी वर्मा की समकालीन अम्मा ने पाँच सौ से अधिक कविताएँ लिखीं। वह एक पारंपरिक, तरल कवि हैं। नारी का मातृ रूप, उसके हृदय की भावनाओं को उनकी कविताओं में बहुत ही सरल, सीधे शब्दों में व्यक्त किया गया है। उनके भजन, बाल साहित्य और अनुवाद भी उल्लेखनीय हैं। उनके काव्य में सौन्दर्य, भावुकता और दर्शन का कलात्मक संगम है। ममतामयी हृदय की जो दृष्टि उनकी कविता से निकलती है, वह असाधारण है और यही कारण है कि इस पारंपरिक कवयित्री को ‘मलयालम साहित्य की जननी’ माना जाता है। आइए जानते है इस लेख में कवि बालमणि अम्मा की जीवन गाथा।

बालामणि अम्मा का जन्म :-

नालापत बालामणि अम्मा भारत की एक प्रसिद्ध कवि, जिसे मलयालम साहित्य की दादी भी कहा जाता है। इनका जन्म आज ही के दिन यानी 19 जुलाई 1909 को केरल के त्रिशूर जिले में स्थित पुन्नयुरकुलम में उनके पैतृक घर नालापत में हुआ था। उनके माता का कोचुअम्मा था और पिता का नाम चित्तन्नूर कुंजुन्नी राजा था। बालामणि अम्मा अपनी कविताओ के लिए अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित कवी है, जिनमें सरस्वती सम्मान जो देश का सबसे सम्मानित साहित्यिक पुरस्कार है। इसके अतिरिक्त पद्म विभूषण जिसे भारत गणराज्य का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार कहा जाता है, वह भी शामिल हैं।

बालामणि अम्मा ने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की :-

आपको बता दें कि, अम्मा ने कभी कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, बल्कि उन्हें उनके मामा ने जिनका नाम नलप्पट नारायण मेनन था, जो एक लोकप्रिय मलयाली कवि थे, उन्होंने ने ही बालामणि अम्मा को घर पर ही शिक्षा दी। अपने मामा के पुस्तकों के संग्रह के संरक्षण ने ही, उन्हें भी एक कवि बनने में मदद की। कहा जाता है कि, वह नलपत नारायण मेनन और कवि वल्लथोल नारायण मेनन से प्रभावित थीं। उनके मामा ही उनके प्रथम गुरु प्रतीत होते है।

बालामणि अम्मा की वीएम नायर से शादी :-

1928 में 19 साल की उम्र में, अम्मा ने वीएम नायर से शादी कर ली, जो व्यापक रूप से प्रसारित मलयालम अखबार मातृभूमि के प्रबंध निदेशक थे। जो बाद में प्रबंध संपादक बने और कुछ समय बाद वे एक ऑटोमोबाइल कंपनी में एक कार्यकारी भी बने। जानकारी के मुताबिक़, बालामणि अम्मा शादी के बाद अपने पति के साथ रहने के लिए कोलकाता चली गई, जो ब्रिटिश भारत का एक प्रमुख शहर था।

प्रतिभाशाली कवि के रूप में पहचान :-

शादी के दो साल बाद मतलब 1930 में, केवल 21 साल की उम्र में ही अम्मा ने अपनी पहली कविता कोप्पुकाई नाम के शीर्षक से प्रकाशित की। जिससे उन्हें एक प्रतिभाशाली कवि के रूप में पहचान मिली। प्रतिभाशाली कवि के रूप में उनको पहली अधिकृत पहचान कोचीन साम्राज्य के पूर्व शासक परीक्षित थंपुरन के हाथो से साहित्य निपुण पुरस्कार मिलने मिली।

मातृत्व की कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध :-

भारतीय पौराणिक कथाओं के एक उत्साही पाठक के रूप में, अम्मा की कविता ने महिला पात्रों की पारंपरिक समझ पर एक स्पिन डालने का प्रयास किया। उनकी शुरुआती कविताओं ने मातृत्व को एक नई रोशनी से गौरवान्वित किया। जिससे उन्हें “मातृत्व की कवयित्री” के रूप में भी जाना जाने लगा। उन्होंने  महिलाओं को एक शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में चित्रित किया, जो केवल एक सामान्य इंसान बनी रहती थी। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में अम्मा मतलब माँ (1934), मुथस्सी मतलब दादी (1962) और मजुविंते कथा (1966) जिसे सामान्य भाषा में कुल्हाड़ी की कहानी कहा जाता है आदी शामिल हैं।

लेखिका कमला दास की मां है बालामणि अम्मा :-

बालमणि अम्मा कई पुरस्कारों की प्राप्तकर्ता थीं और कविता, गद्य और अनुवाद के 20 से अधिक संकलन प्रकाशित किए। आपको बता दें कि, बालमणि अम्मा लेखक कमला सुरैया जो कमला दास के नाम से भी मशहूर है इनकी मां थीं। जिन्हें 1984 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। अम्मा को कमला दास के अलावा और एक बेटी थी जिसका नाम सुलोचना है, इसके अलावा उन्हें एक श्याम सुंदर नाम का बेटा भी था। उनकी बेटी कमला दास ने अपनी माँ बालमणि अम्मा की एक कविता, “द पेन” का अनुवाद किया था, जो एक माँ के अकेलेपन का वर्णन करती है।

बालामणि अम्मा का निधन :-

बालमणि अम्मा का निधन 29 सितंबर 2004 को अल्जाइमर रोग के कारण हुवा। अम्मा के अंतिम संस्कार में पूरे राजकीय सम्मान के साथ भाग लिया गया था। बच्चों और पोते-पोतियों के प्रति उनके प्रेम का वर्णन करने वाली उनकी कविताओं ने उन्हें मलयालम कविता की अम्मा (माँ) और मुथस्सी (दादी) की उपाधि दी।

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साहित्यिक सम्मान और पुरस्कार :-

बालामणि अम्मा को कई साहित्यिक सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें मुथस्सी के लिए केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार (1963), मुथस्सी के लिए केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार (1965), आसन पुरस्कार (1989), वल्लथोल पुरस्कार (1993), ललिताम्बिका अंतरजनम पुरस्कार (1993), सरस्वती सम्मान शामिल हैं। निवेद्यम के लिए सम्मान (1995), एज़ुथाचन पुरस्कार (1995), और एनवी कृष्णा वारियर अवार्ड (1997) मिले। अम्मा को 1987 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।

उनके प्रति आदर सम्मान के चलते, कोच्चि अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव समिति ने लेखकों के लिए नकद पुरस्कार के साथ, बालमणि अम्मा पुरस्कार निर्माण किया।

बालमणि अम्मा

गूगल डूडल द्वारा अम्मा का सम्मान

बालमणि अम्मा की कविताओं का संग्रह(balamani amma poems) :-

बालमणि अम्मा द्वारा रचित कविताओं का संग्रह कुदुम्बिनी (1936), धर्ममार्गथिल (1938), श्रीहृदयम् (1939), प्रभांकुरम (1942), भवनायिल (1942), ओंजलिनमेल (1946), कलिककोट्टा (1949), वेलीचथिल (1951), अवार पादुन्नु (1952), प्रणाम (1954), लोकंतरंगलिल (1955), सोपानम (1958), मुथास्सी (1962), मजुविंते कथा (1966), अम्बालाथिलेक्कू (1967), नागरथिल (1968), वेयिलारुंबोल (1971), अमृतमगमाया (1978), संध्या (1982), निवेद्यम (1987), मातृहृदयम् (1988), मेरी बेटी के लिए (मलयालम), कुलक्कडविलीम, हावीर। ये हैं balamani amma poems

यह लेख विकिपीडिया और गूगल डूडल पर मिले जानकारी के आधार पर बनाया गया है । आपको यह कैसा लगा हमें ज़रूर बताएं।

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