Last Updated on 2 days by Sandip wankhade
राम की मृत्यु कैसे हुई, भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई, श्री राम की मृत्यु कैसे हुई, bhagwan ram ki mrityu kaise hui, shri ram ki mrityu kaise hui
हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे प्रतिष्ठित शख्सियतों में से एक, भगवान राम की कथा धार्मिकता, वीरता और भक्ति की कहानी है। भारत में भगवान राम को मानने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग है। जो भगवान राम के जन्म को किसी त्यौहार से कम नहीं मानता है। लेकिन फिर भी, भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई यह प्रश्न सदियों से जिज्ञासा और बहस का विषय रहा है। खास कर भगवान राम को मानने वाले लोगों में। राम भक्त अक्सर उनके मृत्यु के कहानी को लेकर जिज्ञासा से भरे रहते हैं कि, आखिर उनके उनके प्रिय भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई थी? आज हम इस ब्लॉग पोस्ट में, इसी विषय पर गहराई से चर्चा करेंगे और जानने का प्रयास करेंगे कि, सबके चहीते भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई थी। जिसके लिए हम इस स्थायी रहस्य पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे।
रामायण महाकाव्य: एक संक्षिप्त अवलोकन
इससे पहले कि हम भगवान राम की मृत्यु के दिलचस्प सवाल पर गहराई से विचार करें, रामायण की महाकाव्य कहानी को फिर से दोहराकर मंच तैयार करना महत्वपूर्ण है। ऋषि वाल्मिकी द्वारा रचित, रामायण में भगवान राम के जीवन, उनके वनवास, राक्षस राजा रावण से उनकी प्यारी पत्नी सीता की रक्षा और राजा के रूप में अपना सही स्थान ग्रहण करने के लिए उनकी विजयी अयोध्या वापसी का वर्णन है।
रामायण के अनुसार, भगवान राम ने समृद्धि, न्याय और धार्मिकता के युग की स्थापना करते हुए कई वर्षों तक अयोध्या पर शासन किया। उनके शासनकाल को धर्म (धार्मिकता) और सामंजस्यपूर्ण जीवन के अभ्यास द्वारा चिह्नित स्वर्ण युग के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि, यह उनके प्रस्थान के आसपास की घटनाएँ हैं जिन्होंने युगों-युगों से विद्वानों, भक्तों और कथाकारों को हैरान कर दिया है।
भगवान राम की मृत्यु की पहेली (bhagwan ram ki mrityu ki paheli)
विभिन्न ग्रंथों और परंपराओं में पाए जाने वाले कई खातों और व्याख्याओं के अस्तित्व से भगवान राम की मृत्यु का रहस्य और भी गहरा हो गया है। यहां कुछ सबसे प्रमुख और दिलचस्प दृष्टिकोण दिए गए हैं:
मूल रामायण में राम की मृत्यु का उल्लेख नहीं है
जी हां दोस्तों, मूल रामायण में भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई इसके बारे कोइ भी सटीक जानकारी नहीं मिलती है। मूल रामायण में हमे उनके मृत्यु के जानकारी को छोड़कर बाकी सभी जानकारी अच्छे से मिल जाती है। इसलिए रामायण के अनुसार उनकी मृत्यु कैसे हुई इसका कोई असरदार वर्णन उसमे नहीं है। जिसके चलते भगवान राम की मृत्यु का रहस्य और भी गहरा हो जाता है। परंतु बाकी ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है। जिसमें उनके मृत्यु की कथा का वर्णन है।
भगवान राम की मृत्यु की पहली कहानी (bhagwan ram ki mrityu ki pahli kahani)
जब माता सीता की पवित्रता के बारे में संदेह पैदा हुआ, तो उन्होंने निडर होकर एक उल्लेखनीय अग्नि परीक्षण के माध्यम से अपनी पवित्रता साबित करने का फैसला किया। परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद सीता ने स्नेहपूर्वक अपने प्रिय पुत्रों कुश और लव को भगवान राम को सौंप दिया। और मार्मिक अनुग्रह के एक क्षण में, उन्होंने धरती माँ से विनती करते हुए कहा, “हे माँ, मुझे अपने आलिंगन में ले लो।” तुरन्त, पृथ्वी काँप उठी और पलक झपकते ही, धरती मां ने माता सीता को अपनें अंदर ढँक लिया। माता सीता के निधन से भगवान राम गहरे दुःख में डूब गए पत्नी का इस तरह से छोड़कर जाना उन्हें अंदर ही अंदर से खा रहा था। अंत में यमराज की अनुमति से उन्होंने भी पवित्र सरयू नदी के किनारे स्थित शांत गुप्तार घाट पर जल समाधि लेने का फैसला किया। इस प्रकार भगवान राम की मृत्यु हुई।
भगवान राम की मृत्यु की दूसरी कहानी (bhagwan ram ki mrityu ki dusari kahani)
जगतगुरु श्री रामदिनेशाचार्य कहते हैं कि, भगवान राम का जगत के कल्याण हेतु जन्म हुआ था। जब यह उद्देश पुरा हुआ और पूरे संसार में फिर शान्ति स्थापित हुई, तब वे इस धरती को छोड़कर वैकुंठ चले गए। रामदिनेशाचार्य इस बात पर जोर देते हैं कि किसी भी धर्मग्रंथ या पुराण में भगवान राम की दिव्य प्रकृति पर जोर देते हुए भगवान की “मृत्यु” का उल्लेख नहीं किया गया है। आगे भगवान राम की मृत्यु के बारे में जानकारी देते हुए रामदिनेशाचार्य कहते है कि, जन्म मृत्यु का चक्र सभी के लिए समान है। मृत्यु के बाद हम केवल शरीर का त्याग करते हैं और आत्मा ईश्वर में विलीन हो जाती है। लेकिन भगवान राम खुद नारायण का अवतार थे। उनका शरीर दिव्य था। उन्होंने देवताओं के आदेश पर त्रेता युग में अपने दिव्य निवास में सशरीर लौटने का विकल्प चुना।
रामदिनेशाचार्य की दृष्टि में, भगवान श्री राम की सांसारिक यात्रा तब समाप्त हुई जब देवताओं ने उनसे अपने दिव्य लोक में लौटने का आग्रह किया। इस बात पर जोर दिया गया है कि भगवान राम यूं ही गायब नहीं हुए थे; उन्होंने इस दुनिया से जानबूझकर शारीरिक प्रस्थान किया था। उनकी शिक्षाओं के अनुसार, इस महत्वपूर्ण घटना का अयोध्या पर गहरा प्रभाव पड़ा। जब भगवान राम सशरीर पृथ्वी छोड़कर चले गए, तो कौशलपुर की पूरी भूमि, जिसे अब अयोध्या के नाम से जाना जाता है, पानी में डूब गई थी। इस घटना ने भौतिक रूप से परिदृश्य को बदल दिया। आज यह पवित्र स्थल फैजाबाद में सरयू नदी के तट पर स्थित है, जो गुप्तार घाट के नाम से प्रसिद्ध है।

भगवान राम की मृत्यु photo: quora
भगवान राम की मृत्यु की तीसरी कहानी (bhagwan ram ki mrityu ki tisari kahani)
अंतिम और तीसरी कहानी जो मुझे भी पसंद आई वह कुछ इस प्रकार हैं:
कहा जाता हैं कि, एक दिन हनुमान जी अयोध्या से बाहर चले गए थे। हनुमान जी के अयोध्या से बाहर चले जाने का फायदा यमराज जी ने उठा लिया। क्युकी हनुमान जी होते हुए कोइ भी अयोध्या में घुस नही सकता था। यमराज जी शीघ्र अयोध्या एक साधू का भेष बदलकर पहुंचे और उन्होंने भगवान राम से शीघ्र और जरुरी मुलाकात की इच्छा जताई। साधु को देख राम ने भी उनसे मिलने की ईच्छा जताई। लेकिन साधु ने उनके सामने एक भेट का एक प्रस्ताव रखा की वे उनसे केवल अकेले में बात करना चाहते हैं और कोई भी उन दोनों के मध्य ना आए यदी कोई उनके बातचीत के मध्य बाधा उत्पन्न करता है तो, भगवान राम द्वारपाल को मृत्युदंड देंगे।
साधु की बात सुनकर राम तयार हुए और वे उन्हें लेकर महल के एक कक्ष में चले गए और अपने निष्ठावान भाई लक्ष्मण को द्वार पर खड़ा किया और लक्ष्मण से कहा कि, उन दोनों के मध्य कोई ना आए। इसके बाद लक्ष्मण जी कक्षा के बाहर खड़े रहें।
इसके बाद भगवान राम ने साधु से अकेले में मिलने का कारण पूंछा। राम को कक्ष में अकेला पाकर साधु मुस्कराए और अपने मूल रूप में अर्थात अपने यमराज के रुप में आए। उनको देख कर भगवान राम समझ गए। यमराज ने बाद में रामजी से कहा कि, वे वैकुंठ से यह संदेश लेकर आए है कि, पृथ्वी पर उनके रहने का समय अब समाप्त हो चुका है। अब उन्हें उनके मूल निवास वैकुंठ में लौट आना चाहिए। क्युकी उनके अवतार का उद्देश पुरा हो चुका है।
यह बातचीत भगवान राम और यमराज के बीच चल ही रही थी कि, उसी समय वहा पर ऋषि दुर्वासा उस कक्ष के पास आए जहां पर लक्ष्मण द्वारपाल बनकर पहरा दे रहे थे। उन्होंने भगवान राम से मिलने की ईच्छा लक्ष्मण से जताई। परंतु भाई का आदेश था कि, किसी को भी अंदर ना आने दे। इसलिए लक्ष्मण जी ने ऋषि दुर्वासा से कहा कि, रामजी का आदेश है, किसी को भी अंदर ना आने देने । इसलिए आप कुछ समय प्रतीक्षा करें । लेकिन प्रतीक्षा की बात सुनकर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो उठे और उन्होंने भगवान राम को श्राप देने की चेतावनी दी। उनके इस चेतावनी के बाद लक्ष्मण दुविधा में पड़ गए। “यदि ऋषि दुर्वासा को अंदर जाने से रोका तो वे भगवान राम को क्रोध में श्राप दे देंगे और यदि अंदर जाने दीया तो उन्हें मृत्यु दण्ड मिलेगा।”
अंत में लक्ष्मण जी ने यह तय किया कि, अपने भ्राता को ऋषि दुर्वासा के श्राप से बचाने के लिए खुद के प्राण देना ठिक है। अपने भ्राता से ज्यादा उनके लिए कुछ भी नहीं। यह सोचते हुए उन्होंने कक्ष में प्रवेश किया कि, ऋषि दुर्वासा उनसे मिलना चाहते हैं। लक्ष्मण द्वारा आज्ञा का उल्लंघन होने के कारण राम दुखी हुए क्युकी यमराज ने शर्त रखी थी कि, यदी कोई उनके बातचीत के मध्य खलल डालता है तो द्वारपाल को मृत्यु दण्ड दिया जाएगा। अपने भाई के प्रति प्रेम की भावना के चलते राम, लक्ष्मण को मृत्यु दंड नहीं दे पाते। यमराज रामजी से कहते है कि, समय समाप्त हो चुका है आप लक्ष्मण को हमेशा के लिए राज्य छोड़ने का आदेश दे। यमराज की बात सुन कर राम, लक्ष्मण को राज्य से निकाल देते हैं।
भाई के बिना रहना लक्ष्मण के लिए बिलकुल कठिन था। उन्हे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। लेकिन अंत में उन्हे सुझा की, शायद उनके जीवन का लक्ष पुरा हो चुका है। इसके बाद लक्ष्मण भी जल समाधी ले लेते हैं। (जल में पूरी तरह डूबकर नश्वर कुण्डली छोड़ने को जल समाधि कहा जाता है।)
इस घटना के बाद यमराज राम जी को सूचित करते हैं कि, उनके आगमन के लिए माता सीता और लक्ष्मण जी का पहले वैकुंठ चले जाना मतलब आपके आगमन के लिए खुद को तयार करना है। वे आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
पहले माता सीता का राम जी को छोड़कर जाना और बाद में लक्ष्मण जी का छोड़कर जाना। भगवान राम को बहुत दुख दे गया। अब उन्हें पृथ्वी पर रहने का कोई उद्देश नही दिख रहा था। उन्होंने एक भाई-बहन, माता-पिता और जीवनसाथी के साथ-साथ भगवान के एक अवतार के रूप में अपनी भूमिका पूरी की थी। भगवान राम ने यह सुनिश्चित करने के बाद कि उनके जाने के बाद सब कुछ सामान्य रूप से काम करेगा, उन्होंने फैसला किया कि अब उन्हें अलविदा कहने का समय आ गया है और अपने लोक वापस जाने का समय आ गया है।
इसके बाद भगवान राम ने अपने राज्य में यह संदेश भेजा की अब वे सिंहासन का त्याग करने वाले हैं और अपने भाइयों और उनके बेटों को सत्ता हस्तांतरित करने वाले है। उनके इस संदेश के बाद अधिकांश अयोध्या के निवासियों को लगा कि, भगवान राम का उन्हे छोड़कर जाना मतलब इस युग के अंत का समय है। इसी सोच के साथ अयोध्या निवासीयों ने भगवान राम से विनंती की की वे भी उनके साथ आएंगे जहा वे जाएंगे।
इसके बाद भगवान राम ने उन्हें काफी मनाने की कोशिश की लेकिन अधिकांश प्रजा नही मानी। अंत में कथा के अनुसार भगवान राम उन्हे साथ लेकर सरयू नदी के सबसे गहरे हिस्से में चले गए जहां पर उन सभी को उन्होने मोक्ष या मुक्ती दी और खुद भी इस संसार को छोड़कर अपने मूल निवास वैकुंठ में चले गए।
निष्कर्ष
भगवान राम की मृत्यु कैसे हुई यह प्रश्न एक स्थायी रहस्य बना हुआ है, जो व्याख्या और बहस के लिए खुला है। उनके प्रस्थान के आसपास के वृत्तांतों और संस्करणों की भीड़ हिंदू धर्म के भीतर मान्यताओं और परंपराओं की समृद्ध विविधता को दर्शाती है। हालाँकि, यह पहचानना आवश्यक है कि विशिष्ट कथा से परे, भगवान राम के जीवन और मृत्यु की कहानी दुनिया भर में लोगों को प्रेरित और मंत्रमुग्ध करती रहती है।
भगवान राम की शिक्षाओं, चरित्र और कार्यों की स्थायी विरासत उनके निधन के विवरण से परे है। अंततः, यह उनकी मृत्यु का तरीका नहीं है बल्कि उनके जीवन का गहरा प्रभाव है जो लोगों को धर्म, भक्ति और जीवन की नश्वरता के बारे में अमूल्य सबक सिखाता है। भगवान राम का रहस्यमय प्रस्थान हमें अस्तित्व के रहस्यों पर विचार करने और रामायण के पन्नों में निहित स्थायी ज्ञान को अपनाने के लिए आमंत्रित करता है।
(यहां दी गई जानकारी बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के धार्मिक मान्यताओं और लोकप्रिय परंपराओं पर आधारित है। सामान्य रुचि और सांस्कृतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे यहां प्रस्तुत किया गया है।)