चन्हूदड़ो|chanhudaro|chanhudaro in hindi| चन्हूदड़ो सभ्यता| चन्हूदड़ो किस नदी के किनारे है|चन्हूदड़ो कहाँ स्थित है|chanhudaro kahan per hai|chanhudaro kahan hai|चन्हूदड़ो की खोज|
“सिंधु घाटी सभ्यता” जो एक नगरीय सभ्यता है। इस सभ्यता मे कई नगरीय स्थल पाए गए है। जिनमें कुछ प्रमुख और मुख्य नगर है। तो वही कुछ गौण नगर भी है।
इस सभ्यता में पाए गए प्रमुख नगरों में शुमार एक नगर “चन्हूदड़ो” (Chanhudaro) भी है। यह मोहनजोदड़ो के स्थल से लगभग 130 किमी यानी की 81 मील दूरी पर खोजा गया है।
इस स्थल के खोजकर्ता “ननी गोपाल मजूमदार” है। जो एन. जी. मजूमदार के नाम से पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इन्होंने इस स्थल की खोज सन् 1931 में भारत के आजाद होने से पहले की थी। चन्हूदड़ो के खुदाई की बात करे तो, इस स्थल की खुदाई “जॉन हेनरी मैके” के नेतृत्व में पूरे एक टीम ने सन् 1935 – 1936 मे की। इस टीम में अमेरिकी स्कूल ऑफ इंडिक एंड इरानीयन तथा फाइन आर्ट्स के सदस्य शामिल थे।
मोहनजोदड़ो स्थल की तरह ही यह स्थल भी सिंधु नदी के तट पर स्थित है। यहाँ पर सिंधु नदी पश्चिम दिशा की ओर बहती है और यह स्थल सिंधु नदी के बाए तट पर बसा हुआ है। वर्तमान में सिंधु नदी चन्हूदड़ो से 20 किमी यानी 12.42 मील की दूरी पर से प्रवाहित होती है। इतिहासकारों के अनुसार यह अनुमान है कि, उस समय सिंधु नदी चन्हूदड़ो के पास से बहती होंगी।
आपको बता दे भारत विभाजन के बाद चन्हूदड़ो स्थल पाकिस्तान में चला गया। अब चन्हूदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत मे मुल्लन संध मे स्थित है। इतिहासकार इस स्थल का कार्यकाल 4000 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व के बीच का मानते है।

चन्हूदड़ो स्थल के क्षेत्रफल की बात करे तो, यह हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के इतना बड़ा नही पाया गया है। यह स्थल 4.7 हेक्टर (11.614 एकड़) क्षेत्रफल में फैला हुआ मिला है।
चन्हूदड़ो से केवल एक ही टीले की संरचना मिली है। इसके अलावा यहाँ बाकी स्थलों से प्राप्त सुरक्षा दीवार जैसी कोई भी संरचना नही मिली है। इसीलिए चन्हूदड़ो को सिंधु घाटी सभ्यता का बिना दुर्ग का एकमात्र सिंधु नगर भी कहते है। जिसकी किसी भी प्रकार की किलेबंदी नही की हुई है।
चन्हूदड़ो से खोजकर्ताओं को तीन सड़कें प्राप्त हुई है। यहाँ मुख्य सड़क की चौडाई 5.68 मीटर यानी 18.63 फीट है।
चन्हूदड़ो से खोजकर्ताओं को जो नालियों के अवशेष मिले है। वह बहुत ही खास प्रकार के है। इन नलियों का निर्माण करने के लिए मिट्टी के पाइप बनाए गए है और उनमे मजबूती लाने के लिए उन्हे भट्टी मे भुना गया है। अर्थात यहाँ नलिया बनाने के लिए मिट्टी के पाइप का उपयोग किया गया है।
सिंधु घाटी सभ्यता से कई प्रकार के साक्ष मिले है। लेकिन इन प्राप्त साक्षों मे कुछ साक्ष या प्रमाण ऐसे है, जो उन स्थानों को अलग पहचान देते है। ऐसे ही कुछ साक्ष या प्रमाण चन्हूदड़ो से भी मिले हैं, जो इस स्थल को अलग पहचान देते है। आइए जानते है इन साक्षो के बारे में।
चन्हूदड़ो से सौदर्य प्रसाधन की सामग्री बड़ी मात्रा में मिली है। इन सौदर्य प्रसाधन की सामग्री मे जो मिला है, वह है। शंख से निर्मित चुडिया, लिपिस्टिक (चन्हूदड़ो से लिपिस्टिक के साक्ष मिले हैं। लिपिस्टिक को रंजक शलाका भी कहते है।) इसके अलावा इस स्थल से कंघी भी मिली है। इसका उपयोग यहा के लोग शायद बाल सेट करने के करते होंगे। उसी प्रकार यहाँ से उस्तरा भी मिला है। जो दाढ़ी कटवाने के काम मे इस्तेमाल किया जाता है।
वजन माप के साक्ष चन्हूदड़ो से बड़ी मात्रा में मिले हैं। यहाँ से जो वजन माप मिले हैं, वह खासकर पत्थर के बने हुए है। इससे हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि, सिंधु घाटी के लोग तोलमाप से परिचित थे और वे इनका इस्तेमाल भी किया करते थे।
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सिंधु घाटी में कई प्रकार की इटे मिली है। उनमें हमें अलग अलग आकार के, कुछ स्थान से अलग अलग नक्क्षीदार इटे शामिल है। पर चन्हूदड़ो से जो ईटों के साक्ष मिले हैं वे अलग तरह के है। चन्हूदड़ो से वक्राकार इटे प्राप्त हुई है और यह सिंधु घाटी सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ से वक्राकार इटे मिली है।
चन्हूदड़ो के स्थल से कई मोहरे मिली है। इन मोहरों मे एक मोहर ऐसी है, जिसपर तीन घड़ियालो और दो मछलियों के चित्र बनी मोहर शामिल है।
चन्हूदड़ो में विभिन्न प्रकार के वस्तुओं का निर्माण किया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता का यह स्थल सामग्री निर्माण के गतिविधियों महत्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ के घरों से खोजकर्ताओं को बड़ी मात्रा में विभिन्न प्रकार का कच्चा माल मिला है। जिनमें अगेट यानी मूल्यवान पत्थर, कार्नेलियन अर्थात इन्द्रगोप मणि, क्रिस्टल आदि शामिल है। यहाँ पर कुछ घरों से पुर्णनिर्मित, अर्धनिर्मित मनके भी प्राप्त हुए है। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि, यहाँ खास तौर पर कारीगर बड़ी संख्या में रहते होंगे।
चन्हूदड़ो से प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण संरचना जो यहाँ से प्राप्त हुई है। वह है मनके बनाने का कारखाना। चन्हूदड़ो के इस कारखाने की खोज मार्शल और मैके ने की थी। इस स्थल को औद्योगिक नगर भी कहा जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता मे शंख शिल्प का यह मुख्य केंद्र भी है।
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यह नगर झुकर – झाकर संस्कृति का भी प्रमुख केंद्र रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया हुआ है। इस सभ्यता की जो तीसरी या अंतिम अवस्था है, ‘उत्तर हड़प्पा सभ्यता’ इस अवस्था को सिंध प्रांत में झुकर संस्कृति के नाम से जाना जाता है। तथा पंजाब में इसे सीमेंट्री – एच संस्कृति कहा जाता है।