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क्या आप “हिंदुस्तानी जलपरी” के बारे में जानते है?

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Last Updated on 6 months by Sandip wankhade

Aarti saha

Photo credit:- twitter arati saha image

आरती साहा (आरती गुप्ता) यह वह भारत की पहली महिला तैराकी है जिन्हे भारत की जलपरी कहा जाता है। यह भारत के अलावा एशिया की पहली महिला है। जिसने अंग्रेज़ी चैनल को तैरकर इतिहास में अपना नाम दर्ज किया।

आरती साहा ने इस कारनामे को ऐसे वक्त मे कर दिखाया है। जब भारत को आजाद होने मे कुछ ही साल हुए थे। आरती साहा ने सन् 29 सितंबर 1959 को यह कारनामा कर भारत का नाम दुनिया में रोशन किया। आरती साहा के इस सफलता के लिए भारत सरकार ने उन्हे साल 1960 में पद्म श्री पुरस्कार देकर उनका गौरव किया। भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान कहे जाने वाला पद्म श्री पुरस्कार को प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला खिलाडी बनने का मान भी आरती साहा के नाम पर दर्ज है।

अर्थात भारत की जलपरी कहे जाने वाली आरती साहा, वह महिला तैराकी है जिसने अंग्रेज़ी चैनल मे तैरकर भारत की प्रथम महिला खिलाडी तथा एशिया की प्रथम महिला खिलाडी बनने का मान प्राप्त किया। इतना ही नहीं पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त करने का महिला खिलाडी का मान भी प्राप्त किया है।

आइए जानते है कि, कैसे बनी आरती साहा भारत की जलपरी?

arati saha birthday:-

आरती साहा का जन्म 24 सितंबर 1940 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में ब्रिटिश भारत के कोलकाता (बंगाल) में हुआ था। उनके परिवार में कुल पांच सदस्य थे। माता पिता, एक भाई और दो बहने। आरती साहा अपने भाई से छोटी और बहन से बड़ी थी। याने की आरती साहा उनके माता पिता की दूसरी संतान थी। आरती साहा के पिता सशस्त्र बल मे एक सिपाही थे और उनकी माता हाउसवाइफ थी। नौकरी के कारण उनके पिता हमेशा बाहर रहते थे। इसलिए आरती साहा और उनके भाई बहन की सारी जिम्मेदारी उनके माँ पर थी।

आरती साहा ढाई साल की थी, जब उनके माँ की मृत्यु हुई थी। बचपन में ही आरती साहा के उपर से उनके माँ का साया छिन जाने से और उनके पिता सशस्त्र बल मे एक सिपाही होने के कारण वे हमेशा बाहर रहने से। आरती साहा के बड़े भाई और छोटी बहन का लालन पालन उनके मामा ने किया, तो वही आरती साहा का लालन पालन उनके दादी ने किया।

आरती साहा कोलकाता में जहा रहती थी। वहा पास मे ही एक चंपतला नाम का घाट था। जहा आरती साहा के चाचा अक्सर नहाने जाते थे। जब आरती साहा चार साल की हुई, तब वह भी अपने चाचा के संग चंपतला घाट पर स्नान के लिए जाने लगी और यही पर ही आरती साहा ने अपने तैरने का अभ्यास किया। बेटी की तैराकी मे रुची को देखकर, उनके पिता ने उनके प्रतिभा को और निखारने के लिए उनका दाखिला पास के ही एक हटखोला स्विमिंग क्लब में कर दिया। इस स्विमिंग क्लब में आरती साहा ने तैराकी के और भी तोर तरीके सीखे। जब आरती साहा 1946 मे पांच साल की हुई, तब उसने शैलेंद्र मेमोरियल स्विमिंग नाम के एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता में आरती साहा ने महज पांच साल की उम्र में 110 गज के फ्रीस्टाइल में अपने जीवन का पहला स्वर्ण पदक जीता।

arati saha achievements:-

पांच साल की उम्र से ही प्रतियोगिता में भाग लेने वाली आरती साहा ने 1945 से लेकर 1959 तक लगभग 22 से ज्यादा प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की। 1950 का एक “अखिल भारतीय रिकॉर्ड” को भी आरती साहा ने अपने नाम किया।

आरती साहा को अंग्रेजी चैनल पार करने की प्रेरणा ब्रोजेन दास से मिली थी। आपको बता दे कि, ब्रोजेन दास भी एक उत्कृष्ट तैराकी थे। इन्होंने 1958 मे बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग रेस में हिस्सा लिया था। उन्होंने भी अपने जीवन में कई प्रतियोगिताएं जीती थी। आरती साहा के प्रेरणा स्त्रोत ब्रोजेन दास ने भी अंग्रेजी चैनल को पार करके भारतीय उपमहाद्वीप के पहले व्यक्ती बनने का बहुमान अपने नाम किया था।

जब ब्रोजेन दास ने अंग्रेजी चैनल को पार किया था, तब आरती साहा ने उन्हे, उनके जीत पर एक बधाई संदेश भेजा था। इस बधाई संदेश के रिप्लाय मे ब्रोजेन दास ने आरती साहा को कहा था कि, “आरती साहा आप भी एक दिन ऐसा करने मे जरूर सक्षम बनोगी”।

इस सारे घटनाक्रम के बाद अगले साल के बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग रेस के लिए ब्रोजेन दास ने आरती साहा के नाम का प्रस्ताव आयोजको को दिया था। आयोजकों ने भी ब्रोजेन दास के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया था।

जब आरती साहा को यह बात पता चली की, उनके प्रेरणास्रोत ब्रोजेन दास जी ने उनके नाम का प्रस्ताव बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग रेस के लिए आयोजकों को दिया है, तब वह इसे लेकर काफी गंभीर हुई। वह इस रेस के बारे में गंभीरता से विचार करने लगी थी। तो वही मिहिर सेन ने भी उनको कहा कि, यह तुम्हे एक अच्छा मौका मिला है। तुम इसे मत जाया करो। मिहिर सेन ने आरती साहा का इस प्रतियोगिता के लिए उनका हौसला बढ़ाने का प्रयास किया। उन्होंने आरती साहा को कहा था कि, तुम यह कर सकती हो। तुम्हारे प्रेरणास्रोत ब्रोजेन दास जी तुम्हारे नाम का प्रस्ताव आयोजकों को बहुत सोच समझकर कर ही दिया होंगा। तुम इस मौके को ऐसे ही मत जाया करो।

मिहिर सेन के बात पर जब आरती साहा इस प्रतियोगिता के लिए राजी हुई, तब हटखोला स्विमिंग क्लब के सहायक सचिव डॉ. अरुण गुप्ता ने उनके इस कार्यक्रम का पुरा आयोजन करने की जिम्मेवारी अपने सर पर ली। डॉ. अरुण गुप्ता ने उनके इस कार्यक्रम के लिए फंड जुटाने का कार्य भी कार्य किया। आरती साहा के इस कार्यक्रम के लिए जामिनिनाथ दास, गौर मुखर्जी और परिमल साहा (आरती साहा के पिता) ने भी फंड दिया। आरती साहा को उसके कई समर्थकों ने भी उनके कार्यक्रम के लिए उन्हे फंड दिया। सभी से आर्थिक सहायता मिलने के बावजूद भी कार्यक्रम के लिए राशी कम पड़ रही थी। इसके बाद आवश्यक धन को जुटाने के लिए आरती साहा के सहकारी  शंभुनाथ मुखर्जी और अजय घोषाल ने उस वक्त के पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय से सहायता राशि मांगी। मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय ने भी आरती साहा के कार्यक्रम के लिए 11000 रुपए की सहायता राशि दी। यही नही उस वक्त के भारत के तत्कालीन पंतप्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी आरती साहा को सहायता राशि प्रदान की।

समान्य लोगों से लेकर मुख्यमंत्री और पंतप्रधान तक ने सहायता प्रदान करने के बाद, आरती साहा अपने कार्यक्रम के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए जुट गई। आरती साहा रोज “देशबंधु पार्क तालाब” में आठ आठ घंटे लगातार बिना रुके अपना अभ्यास करने लगी। आरती साहा इस तालाब में प्रसिद्ध तैराकों और अपने समर्थको के मौजूदगी में सोलह घंटे रोज तैरने का अभ्यास करती रही।

अपने कड़ी मेहनत के बाद आरती साहा अपने मैनेजर के संग सन् 24 जुलाई 1959 को अंग्रेजी चैनल को पार करने की प्रतियोगिता के लिए इंग्लैंड के लिए रवाना हुई। 13 अगस्त 1959 को आरती साहा ने अपना अंतिम अभ्यास अंग्रेजी चैनल मे किया। इस अभ्यास के दौरान उनका मार्गदर्शन भारत के प्रसिद्ध तैराकी डॉ बिमल चंद्र ने किया। जो बटलिन इंटरनेशनल क्रॉस चैनल स्विमिंग रेस मे वहा भाग लेने आए हुए थे।

आरती साहा के अलावा इस प्रतियोगिता में अन्य 23 देशों की पांच महिलाओं समेत कुल 58 प्रतिस्पर्धी खिलाडी वहा भाग लेने आये हुए थे। इन सभी खिलाडी़यो की यह दौड़ 27 अगस्त साल 1959 को स्थानिय समयानुसार एक बजे होने वाली थी।

दुर्भाग्य की बात तो यह है कि, आरती साहा ठीक एक बजे प्रतियोगिता स्थल पर नही पहुँच पाई। आरती साहा की बोट प्रतियोगिता स्थल पर करीब 40 मिनट लेट पहुंची। जिसके कारण उन्हे अपनी दौड़ 1 बजकर 40 मिनट पर शुरू करनी पड़ी। लेकिन फिर भी आरती साहा अपनी दौड़ लेट शुरू करने के बावजूद भी सुबह के 11 बजे तक पानी में तैरती रही। आरती साहा सुबह के 11 बजे तक लगभग 40 मील की दूरी पार कर चूंकि थी। अब वह इंग्लैड के तटीय क्षेत्र में प्रवेश कर चूंकि थी। लेकिन खराब मौसम के चलते और तेज ठंडी हवाओं के लहरों के चलते, विपरीत बहने वाला पानी का बहाव उसके सामने चुनोती लेकर खड़ा हुआ। जिसके कारण आरती साहा सुबह के 11 बजे से लेकर श्याम के 4 बजे तक केवल 2 मील की दूरी ही काप पायी। नतीजन उसे इस प्रतियोगिता को ना चाहते हुए भी बिच में ही छोड़ना पड़ा।

arati saha english channel:-

अपने इस खराब वक्त और असफलता के बाद भी आरती साहा ने हार नही मानी। उसने दूसरे प्रयास के लिए और कड़ी मेहनत कर, खुदको तयार किया। आखिरकार आरती साहा ने अपने दूसरे प्रयास में वह सफलता हासिल की, जिसके लिए उसने दिन रात कड़ी मेहनत की थी। आरती साहा ने सन् 29 सितंबर 1959 को अपना यह दूसरा प्रयास किया था।

आरती साहा ने फ्रांस के केप ग्रीस नेज से अपने इस प्रतियोगिता को शुरू करके वह लगातार 16 घंटे 20 मिनट तक पानी में तैरती रही। इस 16 घंटे 20 मिनट मे आरती साहा ने फ्रांस के केप ग्रीस नेज से इंग्लैड के सेंडगेट तक की 42 मील की यानी 68 किमी का अंतर पार कर इतिहास रचा। अपने इस दौड़ को पुरा करके जब आरती साहा तट पर पहुची, तब आरती साहा ने तिरंगा लहाकर अपने जीत की सूचना केवल भारत को ही पूरी दुनिया को दी।

आरती साहा के इस उपलब्धी के बाद उन्हे कई प्रतिष्ठित लोगों से लेकर भारत के पंतप्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू तक ने बधाई दी और आरती साहा के इस उपलब्धि की सराहना की। आरती साहा को उनके उपलब्धि के लिए सबसे पहले बधाई विजयालक्ष्मी पंडित पहिली व्यक्ती थी। अगले दिन यानी 30 सितंबर को आॅल इंडिया रेडियो ने भी उनके सफलता की घोषणा की।

arati saha family:-

इस सफलता के बाद आरती साहा ने अपने मैनेजर डॉ अरुण गुप्ता के साथ कोर्ट में शादी रचाई। शादी के बाद उन्हे अर्चना नाम की एक बेटी भी हुई। जो बंगाल नागपुर के रेल मे नौकरी पर लगी थी।

arati saha death:-

बाद में इस भारत के महान बेटी की मृत्यु 4 अगस्त 1994 को पीलिया और इन्सेंफेलाटिस के बीमारी के कारण हुई।

आरती साहा के निधन के बाद भारत सरकार ने उनके नाम का एक डाक टिकट 1999 को जारी किया। इसके अलावा सरकार ने उनके घर के पास उनका एक स्टैच्यु भी बनवाया और स्टैच्यु के सामने वाले एक 100 मीटर के गली को उनका नाम देकर उन्हें हमेशा के लिए अजरामर कर दिया। आपको बता दे कि, गूगल ने भी  2020 में उनके 80 वे जन्मदिन के मौके पर उनके नाम का एक गूगल डूडल बनवा कर उन्हे बधाई दी थी।

भारत की जलपरी आरती साहा

Photo credit:- Google Doodle

दोस्तों यह थी संघर्षगाथा भारत के जलपरी की। आपको कैसी लगी हमें हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताए।

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