Last Updated on 6 months by Sandip wankhade
यह घटना तब घटी, जब भारत में हरित क्रांति सफल हुई। हरित क्रांति के सफल होने से भारत के कृषि उत्पादन में जबरदस्त बढ़ोत्तरी देखने को मिली। पर इस हरित क्रांति का फायदा केवल उन्ही लोगों को हुआ जिनके पास जमीनें थी। खेतों में काम करने वाला मजदूर तब भी हलाखी का ही जीवन व्यतीत किया करता था। हरित क्रांति से भलेही कृषि उत्पादन बढ़ा हो। लेकिन इसका फल मजदूरों को बिलकुल भी नही मिला। मजदूर तब भी भर पेट खाने के लिए तरसता था। कृषि उत्पादन के बढ़ने जमींदारों के आय मे कमाल का इजाफा हुआ था। लेकिन फिर भी मजूदरों की मजदूरी में कोई बढ़ोत्तरी जमींदारों नही की। ऐसे हालात पूरे भारत में थे। इसी हालात का शिकार भारत का किलवेनमनी गाव भी था और इसी गाव में ऐसे हालात के कारण एक घटना घटित हुई।
यह गाव भारत के तमिलनाडु राज्य के तंजावुर जिले में आता है। भारत के बाकी गाव के तरह ही यह भी एक सामान्य गाव था। लेकिन यहाँ घड़े एक नरसंहार के कारण आज यह गाव काफी विशेष और परिचित बना है। आइए जानते है इस गाव में घड़ित हुए उस नरसंहार के बारे में, जसके कारण यह गाव आज काफी प्रसिद्ध बना है।
भारत के बाकी हिस्सों में जिस तरह के हालात थे, वैसे ही हालात इस गाव के भी थे। गाव में जमींदारों का ही बोलबाला था। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जैसे अहम जगहों पर जमींदारों का ही दबदबा हुआ करता था। जिसके कारण यहाँ का गरीब मजदूर इनके दबाव में गुलामी का जीवन व्यतीत किया करता था। इन सभी मजदूरों का जीवन पूरी तरह से जमींदारों पर ही निर्भर था। किसी भी मजदूर की हिम्मत नहीं होती थी कि, जो इन जमींदारों के सामने आवाज उठा सके।
ऐसे हालातो के दरम्यान तमिलनाडु राज्य में कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव बढ़ने लगा। इस पार्टी के प्रभाव में किलवेनमनी गाव का सामान्य मजदूर भी आ गया। पार्टी के प्रभाव में आकर उन्हे एहसास होने लगा की उनके इस उत्पिडन को पूरी तरह से गाव का जमीनदार वर्ग ही दोषी है। तब गाव के मजदूरों ने अपने उपर होनेवाले अन्याय को रोकने के लिए पार्टी से प्रभावित होकर एक संघटना का गठन किया। अपने संघटना को चिन्हित करने के लिए इन किसान मजदूरों ने गाव में एक लाल ध्वज का अनावरण किया।
बाद में इस संघटना के मध्यम से किसान मजदूर अपनी मजदूरी बढ़ाने की मांग जमींदारों से करने लगे।
इन मजदूरों की मांग केवल इतनी सी थी कि, उन्हे जो पूरे दिनभर के मेहनत के लिए जो चार मुट्ठी अनाज मजदूरी मिलती है। उसे बढ़ाकर पांच मुट्ठी की जाए। पर जमींदारों ने मजदूरों के इस मांग को मानने से इंकार किया।
कहा जाता है कि, इस नरसंहार के पीछे की असल वजह यह नही थी कि, मजदूरों ने चार मुट्ठी अनाज मजदूरी की जगह पांच मुट्ठी अनाज मजदूरी मांगी। जिसके कारण यह नरसंहार हुआ। असल वजह यह थी कि, जो मजदूर उनके खेतों पर गुलामी किया करता था। आज वह उनके सामने अपना सर उठाकर बात करने लगा था। उनसे अपने हक की मांग करने लगा था। मजदूरों के इस हरकत को देखकर गाव का जमींनदार वर्ग अस्वथ हो गया था। जमींदारों को डर लगने लगा था कि, कहीं उनका प्रभाव कम तो नही हो रहा है।
अपने इसी प्रभाव को बनाए रखने हेतु जमींदारों ने मजदूरों के पांच मुट्ठी वाले मजदूरी की मांग को मानने से इंकार कर दिया और इतना ही नहीं अपना दबदबा मजदूरों पर दुबारा स्थापित करने के लिए उन्होंने मजदूरों को लाल झंडे को गाव से हटाने को कहा। पर मजदूर लाल झंडे को हटाने के लिए तैयार नही हुआ और उन्होंने ने जमींदारों के इस मांग मानने इंकार कर दिया। मजदूरों द्वारा अपना कहना ना मानने से गाव के जमींदारों ने गाव के सभी मजदूरों को चेतावनी दी कि, अगर वे अपने इस लाल झंडे को नही हटाएंगे तो इसका खामियाजा उन्हे ही भोगतना पड़ेंगा। जमींदारों द्वारा चेतावनी देने के बावजूद भी सभी मजदूर अपना ध्वज ना हटाने पर अड़े रहे।
मजदूरों के इस हट के कारण और जमींदारों ने मजदूरों के मांग को ठुकरा देने के कारण गाव के दोनों वर्गों में तनाव बढ़ा।
दिन प्रति दिन तनाव कम होने की जगह उल्टा बढ़ते ही जा रहा था। इसकी वजह थी दोनों वर्गों द्वारा लिए जाने वाले फैसले।
गाव का मजदूर इस बात पर अड़ा रहा कि, जब तक जमींदार उनकी मांग को नही मानता है, तब तक गाव का कोई भी मजदूर जमींदारों के खेतों पर काम करने नहीं जाएंगा। मजदूरों ने खेती के कामों पर बहिष्कार करने से जमींदारों मे गुस्सा और बढ़ा। उन्हे अपने खेती के कामो के लिए बाहर गाव से मजदूर लाना पड़ रहा था। इस काम मे जमींदारों का प्रतिनिधित्व करने वाला धान उत्पादक संघ उनकी सहायता करता था।
गाव में तनाव तब चरम पर पहुँचा, जब गाव के दो किसानों को जमींदारों के गुंडों ने रहस्यमय तरीके से अगवा किया। कहा जाता है कि, इन दोनों मजदूरों की लाशें कुछ दिनों बाद मिली।
जमींदारों द्वारा किए गए इस कृत्य के बाद गाव के मजदूरों ने भी जमींदारों के उन गुंडों को अगवा किया जिन्होंने उनके दो मजदूरों को अगवा करके मार दिया था। मजदूरों ने इन गुंडों को अपने पास बंधक बनाकर रखा। जब यह खबर जमींदारों तक पहुची तो उन्होंने अपने लोगों को छोड़ने को कहा। लेकिन मजदूर वर्ग इन गुंडों को छोड़ने को राज़ी नहीं हुआ। इसके बाद मजदूर वर्ग और जमीनदार वर्ग के लोगों के बीच एक झड़प हुई। जानकारी के अनुसार इस झड़प में जमींदारों का एक एजेंट मारा गया।
इस झड़प के बाद किलवेनमनी गाव में 25 दिसंबर 1968, यह वह काला दिन आया, जिस दिन इस गाव में नरसंहार को अंजाम दिया गया।
अपना प्रभुत्व गाव में दुबारा स्थापित करने के लिए, 25 दिसंबर 1968 को रात 10 बजे के दरम्यान जमींदारों ने अपने 200 गुंडों को लेकर बहुत ही प्लानिंग के साथ मजदूरों के घरों पर एकसाथ हमला किया। जमींदारों ने हमला करने से पहले इस बात का खास ध्यान रखा की हमले के वक्त कोई भाग ना सके। इसके लिए जमींदारों ने भागने के सारे रास्तों की अच्छे से पहले ही नाकाबंदी कर ली थी।
जमींदारों के सभी 200 हमलावर हथियारबंद थे। उनके पास कई तरह के हथियार थे। इस हमले में जमींदारों की तरफ से बंदूक का भी इस्तेमाल किए जाने के सबूत मिले हैं। तो वही मजदूरों के पास किसी भी प्रकार के हथियार नही थे। ना हमला करने के लिए और नाही बचाव के लिए। मजदूर अपने बचाव में केवल पत्थर फेंक सकते थे।
जमींदारों द्वारा किए गए इस हमले से कुछ मजदूर भागने में सफल हो सके। जो भागने में सफल हुए वे जंगल मे जाकर छुप गए। तो वही जो इन जमींदारों और उनके गुंडों के हाथ लगे। उनको जमींदारों और उनके गुंडों ने पिट पिट कर मारा। जमींदारों ने इस हमले में दो मजदूरों को गोली मारी। जिसमें वे दोनों मजदूर गंभीर रूप से जखमी हो गए।
इन जमींदारों के हैवानियत का अंदाजा हम इस कृत्य से लगा सकते है कि, जब जमींदारों ने इन मजदूरों पर हमला किया, तब इस हमले से अपनी जान बचाने के लिए मजदूरों की महिलाओं ने, बच्चों ने और बुजुर्गो ने एक 8 फीट * 9 फीट की झोपड़ी में शरण ली। ताकि अपनी जान बच सके। लेकिन जैसे ही जमींदारों को और उनके गुंडों यह मालूम पड़ा कि, कुछ लोग झोपड़ी में छिपकर बैठे है। तो उन्होंने अपने झुठी शान बचाने के लिए उस झोपड़ी को ही आग लगा दी। जिसमें बुजुर्ग लोग, बच्चे और महिला छिपी हुई थी। झोपड़ी को अच्छे से जलाने के लिए इन लोगो ने सुखी घास और लकड़ी का उपयोग किया।
कहा जाता है कि, जब झोपड़ी को आग लगा दी गई थी। तब झोपड़ी के अंदर बंद l माँ ओ ने अपने बच्चों की जान बचाने के लिए। उन्हे इस उम्मीद के साथ झोपड़ी से बाहर धकेला था। ताकि वे बच सके। किंतु जमींदारों ने उन बच्चों को दुबारा आग की लपेटो मे झोंक दिया।

किलवेनमनी नरसंहार
इस जलती झोपड़ी से कुछ लोग बाहर निकलने मे कामयाब हो तो गए थे। लेकिन बाहर खड़े जमींदारों और उनके गुंडों ने उन्हे मौत के घाट उतारा और दुबारा उनकी लाशों को आग के हवाले किया। इस हत्याकांड मे कुल 44 लोगों ने अपनी जान गवा दी थी।
अपने द्वारा किए गए इस जघन्य अपराध के बाद गाव का सभी जमींदार वर्ग और उनके साथी अपनी गाडियों मे बैठकर सीधे पुलिस थाने चले गए और बदले की कारवाई के डर से पुलिसवालों से अपनी सुरक्षा की मांग करने लगे। जानकारी के मुताबिक कहा जाता है कि, पुलिस ने उन्हे फिर सुरक्षा भी प्रदान की थी।
इस नरसंहार के बाद तामिलनाडु के राजनीति में जैसे भुकम्प आ गया था। विपक्ष सरकार को घेरने लगा था। इस नरसंहार के दौरान के तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री सी. अन्नादुराई थे। इन्होंने इस नरसंहार को लेकर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की और गाव के हालात का जायजा लेने के लिए और पीड़ितों का सात्वन करने के लिए अपने दो कैबिनेट मंत्रियो को किलवेनमनी गाव भेजा। कैबिनेट मंत्री एन. करुणानिधि और एस. माधवन मुख्यमंत्री के कहने पर किलवेनमनी गाव आये और उन्होंने पीड़ितों की मुलाकात की और पीड़ितों को भरोसा दिलाया कि, उनकी सरकार जल्द इस पर कारवाई करेंगी।
बाद में इस नरसंहार में शामिल सभी लोगों पर मुकदमे दर्ज कराए गए। निचली अदालत में सभी दोषियों पर सुनवाई चलाई गई। इस नरसंहार में शामिल 200 से ज्यादा लोग शामिल होने के बावजूद भी केवल 10 लोगों को ही दोषी करार दिया गया और बाकियों के खिलाफ कोई सबूत ना मिलने के कारण उन्हे छोड़ दिया गया। जिन दस लोगों को दोषी करार दिया गया उन्हे भी इतना बड़ा नरसंहार होने के बावजूद भी केवल दस साल की सजा मिली। कहा जाता है कि, बाद में ये सभी दोषी जमानत पर जेल से बाहर आये। बाहर आते ही इन सभी दोषियों ने बाद में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
इस सारे मामले में सबसे बड़ा चौकाने वाला फैसला तो उच्च न्यायालय ने सुनाया था। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले मे कहा कि, जो घटना घटीत हुई। वह काफी दिल दहला देने वाली थी। ऐसा नहीं होना चाहिए था। जो लोग इस झोपड़ी में आग लगने के कारण मरे है। उनके बारे में हम यह नही मान सकते है कि, उनको मारने के लिए ही झोपड़ी में आग लगाई गई हो। ऐसा कहकर उच्च न्यायालय ने सभी दोषियों को बरी कर दिया।
डॉक्युमेंटरी रामीयाविन कुदिसाई (द हट आॅफ रमैया) के अनुसार नीचे मृतकों के नाम, उनकी उम्र बताई गई है। इन मृतकों की कुल संख्या 44 है। जिनमें 5 वृद्ध, 16 महिलाए और 23 बच्चे शामिल है।
- नाम धमोदरन – उम्र 1 साल
- नाम कुनासेकरन – उम्र 1 साल
- नाम सेल्वी – उम्र 3 साल
- नाम वासुगी – उम्र 3 साल
- नाम रानी – उम्र 4 साल
- नाम नटरासन – उम्र 5 साल
- नाम थंगईयां – उम्र 5 साल
- नाम वासुगी – उम्र 5 साल
- नाम जयम – उम्र 6 साल
- नाम नटरासन – उम्र 6 साल
- नाम राजेंद्रन – उम्र 7 साल
- नाम असैथांबी – उम्र 10 साल
- नाम जयम – उम्र 10 साल
- नाम ज्योति – उम्र 10 साल
- नाम नटराजन – उम्र 10 साल
- नाम वेथावल्ली – उम्र 10 साल
- नाम करुणानिधि – उम्र 12 साल
- नाम सैंड्रा – उम्र 12 साल
- नाम सरोजा – उम्र 12 साल
- नाम शनमुगम – उम्र 13 साल
- नाम कुरुसामी – उम्र 15 साल
- नाम पूमायिल – उम्र 16 साल
- नाम रंजीतामल – उम्र 16 साल
- नाम आंडल – उम्र 20 साल
- नाम कनकमल – उम्र 25 साल
- नाम मथम्बल – उम्र 25 साल
- नाम वीरम्मल – उम्र 25 साल
- नाम सेतु – उम्र 26 साल
- नाम चिन्नापिल्लई – उम्र 28 साल
- नाम आचिअम्मल – उम्र 30 साल
- नाम कुंजाम्बल – उम्र 35 साल
- नाम कुप्पम्मल – उम्र 35 साल
- नाम पक्कियम – उम्र 35 साल
- नाम पप्पा – उम्र 35 साल
- नाम रथिनम – उम्र 35 साल
- नाम करुप्पयी – उम्र 35 साल
- नाम मुरुगन – उम्र 40 साल
- नाम श्रीनिवासन – उम्र 40 साल
- नाम अंजलाई – उम्र 45 साल
- नाम सुंदरम – उम्र 45 साल
- नाम पट्टू – उम्र 46 साल
- नाम करूपयी – उम्र 50 साल
- नाम कावेरी – उम्र 50 साल
- नाम सप्पन – उम्र 70 साल
उपर दिए गए सभी नाम उन पीड़ित लोगों के है। जो इस नरसंहार के शिकार हुए है। यह सारे नाम विकिपिडिया से लिए गए है।
इस नरसंहार के बाद, इसे जिंदा रखने के लिए नारीवादी कार्यकर्ताओं ने अपना अहम योगदान दिया। इस नरसंहार के कुछ सालों बाद लोकतांत्रिक महिला संघ ने यहा एक सभा का भी आयोजन किया था।
इसी तरह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की नेता और अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ की सह संस्थापिका मैथिली शिवरामन ने इस नरसंहार के बारे में विस्तृत जानकारी अपने निबंधों और लिखों के जरिए लोगों को दी है। अपनी पुस्तक “हांन्टेड बाय फायर” में किलवेनमनी गाव के इस नरसंहार का विस्तृत विवरण देने का प्रयास मैथिली शिवरामन ने किया है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, इस नरसंहार में मारे गए सभी 44 लोगों की याद मे हर साल यहाँ वेनमनी शहीद दिवस का आयोजन करती है।

Photo credit : ptparty.org
यहाँ एक स्मारक का भी निर्माण किया जा रहा है। 2006 मे मार्क्सवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने यहाँ एक स्मारक बनाने की घोषणा की थी और 2014 में स्मारक निर्माण का काम भी शुरू हुआ था। इस स्मारक मे 44 ग्रेनाइट के स्तंभों का निर्माण शामिल है। जो प्रत्येक मृतकों का प्रतिनिधित्व करते है। इसके अलावा यहाँ एक संग्रहालय और स्मारक की इमारत का भी निर्माण शामिल है।
इन 44 ग्रेनाइट के स्तंभों का रूप उठाई गई मुट्ठी के स्वरूप में बनाया गया है। जो प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति की याद दिलाता है। जिन्होंने व्यवस्था के सामने अपनी आवाज ऊठाई थी।

किलवेनमनी नरसंहार शहीद स्मारक प्रतिक चिन्ह
किलवेनमनी गाव के इस नरसंहार को 25 दिसम्बर 1968 से वर्तमान तक 50 वर्ष से ज्यादा का समय हो चुका है। इन 50 सालों में हमारा समाज कितना बदला है। इसकी कल्पना हम सभी को है। इस नरसंहार को 50 साल से ज्यादा होने के बावजूद भी यह आज भी लोगो के रोंगटे खड़े करता है।
यह थी किलवेनमनी गाव के इस नरसंहार की पूरी जानकारी। आपको कैसी लगी हमें कमेंट्स करके जरूर बताए।
Note : इस लेख में दी गई सारी जानकारी विकिपिडिया और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठीत वेबसाइट्स से ली गई है। हमारा सुझाव है कि, किसी भी नतीजों पर पहुँचने से पहले आप इस घटना के बारे में और अच्छे से जान ले।