मच्छर| machhar| मच्छर किसे ज्यादा काटते हैं|
————————————————————————–
इस चीज को आपने भी बहुत बार नोटिस किया होगा कि, कुछ लोगों को ही मच्छर ज्यादा काटते हैं। आखिर ऐसी क्या वजह होती हैं कुछ लोगों में कि, मच्छर उन्हे ही ज्यादा काटते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि, दुनिया में जितने भी अभी तक युद्ध हुए हैं। उनमें उतने लोग नही मरे जितने लोग मच्छर द्बारा फैलाए गए बीमारियों से मरे है।
मच्छर किसी भी अन्य जानवर से ज्यादा खतरनाक होते है। यह बात अभी तक के आंकड़ों से पता चली है। आपको शायद यकीन नहीं होगा कि, 2018 में केवल मच्छर के काटने से 7 लाख 25 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। उसके अलावा वर्ष 2020 में भी मच्छरों से होने वाली विभिन्न बीमारियों के कारण 6 लाख 27 हजार लोगों ने भी अपनी जान दी थी। आपको बता दें कि, इंसान के मृत्यु का पहला प्रमुख कारण मच्छरो द्वारा फैलाए गई बीमारियां है। इसके बाद नंबर आता है सांपों का इसके बाद कुत्ते, जहरीले कीड़े, मगरमच्छ, समुद्री घोड़े, हाथी, शेर, भेड़िए और शार्क का।
मच्छरों से होने वाली मौतों के इन भयावह आंकड़ों को देखते हुए 2017 में डबल्यू एच ओ ने ‘ग्लोबल वेक्टर कंट्रोल रिस्पांस 2017-2030’ (जीवीसीआर) को मंजूरी दी थी।
आपको बता दें कि, जीवीसीआर रोग वाहक कीटों के नियंत्रण के लिए और नीति का मार्गदर्शन करने के लिए एक कार्य कार्यक्रम है। जो रोगों की रोकथाम और संचारी रोग के प्रकोप के लिए शीघ्र प्रतिक्रिया में मदद करता है।
मच्छरों से होने वाली बीमारियों की एक लम्बी लिस्ट है। मच्छरों से वेस्ट नाइल फीवर, जीका, डेंगू, येलो फीवर, चिकनगुनिया, मलेरिया, सेंट लुइस इंसेफेलाइटिस, लिम्फेटिक फाइलेरिया, ला क्रॉस इंसेफेलाइटिस, पोगोस्टा डिजीज, ओरोपॉच फीवर, टैना वायरस डिजीज, रिफ्ट वैली, सेमलिकी फॉरेस्ट वायरस इन्फेक्शन, सैंडबिस फीवर, जापानी इंसेफेलाइटिस रॉस रिवर फीवर जैसी कई बीमारियां फैलती हैं।
कुछ लोगों को मच्छर ज्यादा काटते हैं। आंकड़ों को देखकर आपको भी लगता होगा कि, आख़िर ऐसी क्या खास बात होती हैं कुछ लोगों में कि, उन्हे ज्यादा मच्छर काटते है।
कार्बन डाइऑक्साइड के कारण काटते है मच्छर
आपको बता दें कि, नर मच्छर हो या मादा मच्छर दोनों को ही जिंदा रहने के लिए खून की जरूरत नहीं होती है। वे बिना खून चूसे भी बाकी चीजों का रसपान करके जीवित रह सकते हैं। लेकिन अपने अंडो को जरूरी पोषक तत्व मिले, इसके लिए केवल मादा मच्छर ही ना केवल इंसानों का बल्की बाकी जीवों का खून पीती हैं।
लगभग 100 साल पहले विज्ञानिको ने यह मान लिया था कि, मच्छरों को जानवरों द्वारा छोड़ा गया कार्बन डायऑक्साईड (CO2) अपनी तरफ खींचता है। अपने अंडो को जरूरी पोषक तत्व पाने के लिए मादा मच्छर कार्बन डायऑक्साईड के मदद से खून का पता लगाती है। लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड के मदद से ही मच्छर किसी इन्सान की तरफ आकर्षित होता इसका कोई भी ठोस आधार नहीं है।

इस वजह से काटते हैं मच्छर photo :- pixabay
किस वजह से मच्छर व्यक्ती के तरफ आकर्षित होते है ?
लोगों को मच्छर केवल कार्बन डाइऑक्साइड के कारण ही नहीं बल्कि और भी कई सारे कारणों के चलते आकर्षित होते है और काटते है।
नए अध्ययन के अनुसार मच्छर गर्मी, नमी, पसीना, शरीर और कपड़ो की दुर्गंध आदी कारणों से व्यक्ती के तरफ आकर्षित होते है। लेकिन इन्ही कारणों से मच्छर व्यक्ती के तरफ आकर्षित होते है, इसका भी कोई ठोस आधार आज तक पता नहीं चल पाया है।
लेकिन मच्छरों पर किए गए अध्ययन से यह तर्क निकाला गया है कि, मच्छरों के लिए इंडोल, नॉननॉल, ऑक्टेनॉल और लैक्टिक एसिड जैसे अणु अधिक आकर्षक करते हैं।
आपको बता दें कि, मच्छर इंसान के तरफ किन कारणों से आकर्षित होते है। इसका अध्ययन सालों से कई वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है। ऐसा ही एक मच्छरों से जुड़ा अध्ययन अमेरिका के फ्लोरिडा इंटरनॅशनल युनिव्हर्सिटी के एक रिसर्च टीम ने किया। इस टीम ने आयनोट्रॉपिक रिसेप्टर 8a (IR8a) नाम के एक गंध रिसेप्टर का पता लगाया। जो मच्छरों को जानवर के अंदर के लॅक्टिक अॅसिड को खोजने में उनकी मदद करता है।
जब वैज्ञानिकों ने मच्छरों के एंटीना पर पाए जाने वाले IR8a रिसेप्टर में कुछ बदलाव किए तो, उन्होंने पाया कि मच्छर मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित लैक्टिक एसिड और अन्य अम्लीय गंधों का पता नहीं लगा पा रहे थे।
मच्छरों को अपनी ओर खींचने वाला ‘परफ्युम’
हाल ही में किए गए एक अध्ययन से वैज्ञानिकों को यह पता चल पाया है कि, डेंगू और झिका वायरस मनुष्य के गंध में कुछ ऐसे परिर्वतन करते हैं जिसके चलते मच्छर उस व्यक्ती के तरफ या उस जानवर के तरफ जल्दी आकर्षित होते है।
हम इसे एक दिलचस्प रणनीति के तौर पर भी देख सकते हैं। क्योंकि इसमें मच्छर वायरस से संक्रमित जानवर को काटते हैं और उसका संक्रमित खून लेते हैं और फिर इंसान को काटते हैं। इस प्रक्रिया से होता यह है कि, ये जो वायरस मच्छरों के माध्यम से व्यक्ती तक पहुंचे है। वे मच्छरों को आकर्षित करने वाले सुगंधित कीटोन और एसिटोफैन के स्राव को व्यक्ती के अंदर बदल देते हैं। जिससे मच्छर आर्कषित होते है।
आपको बता दें कि, इंसानी त्वचा अॅन्टिमायक्रोबियल पेप्टाईड तयार करती है। जिसके मदद से इंसान की त्वचा जीवाणुओं की संख्याओं को बढ़ने से रोकती है और उसे कंट्रोल करती है। लेकिन डेंगू और झिका वायरस की बाधा होने पर हमारी त्वचा अॅन्टिमायक्रोबियल पेप्टाईड का निर्माण नही कर पाती है। लिहाजा डेंगू और झिका वायरस की संख्या हमारे शरीर में बढ़ती चली जाती है। जिसके चलते मच्छर को खून का पता लगाने में मदद मिलती है। वैज्ञानिकों ने इस बात का पता रोगी के पसीने के लिए नमूने से लगाया है।
पॉजिटिव बात यह है कि इसे ठीक किया जा सकता है। इसके लिए एक शोध किया गया था। जिसमें डेंगू से संक्रमित चूहों का इलाज आइसोट्रेटिनॉइन से किया गया। इन चूहों में एसिटोफेनोन का उत्सर्जन कम हो गया और इस तरह मच्छरों का आकर्षण कम हो गया।
👉 मच्छरों से कई बीमारीयां फैलती है फिर हम क्यों नही धरती से मच्छरों का खात्मा कर देते है?
इंसानी गंध को बदलने वाले वायरस
आपको बता दें कि, यह पहली बार नहीं है कि, इंसानी गंध को बदलने वाले वायरस अपने प्रसार के लिए मच्छरों और इंसानों के शरीर का इस्तेमाल करते हैं। इसे हम एक उदाहरण के जरिए समझते हैं। मलेरिया के लिए ज़िम्मेदार परिजीवी प्लाझमोडियम फॅल्सीपेरम नामक परजीवी का जब व्यक्ती को संक्रमण होता है, तब वह व्यक्ती बाकी निरोगी व्यक्ती से ज्यादा अॅनोफिलीस गॅम्बिया नामक मच्छर को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसके पिछे असल वजह क्या है। इसका पता अभी तक नहीं चल पाया है। लेकिन प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम ही इसके पिछे की असल वजह है। ऐसा अंदाजा वैज्ञानिकों ने लगाया है।
प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम एक आइसोप्रेनॉइड अग्रदूत पैदा करता है, जिसे HMBPP कहा जाता है। ये मच्छरों के खून के भोजन के व्यवहार के साथ-साथ संक्रमण की संवेदनशीलता को भी प्रभावित करता है।
HMBPP खासकर इन्सान के शरीर में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं ज्यादा मात्रा में सक्रिय करता है। जिसके चलते कार्बन डाइऑक्साइड, अल्डिहाइड्स और मोनोटेरपिंस के उत्सर्जन का प्रमाण बढ़ जाता है। जिस कारण मच्छर ऐसे व्यक्ती के तरफ ज्यादा मात्रा में आकर्षित होते है।
जब वैज्ञानिकों ने खून में HMBPP मिलाया तब उन्होंने पाया कि, ऐसे खून के तरफ़ रक्त के खोज में निकले अॅनोफिलीस कोलुझी, इडिस इजिप्ती जैसे मच्छर बड़ी संख्या में आकर्षित हुए। इस खोज से वैज्ञानिकों ने यही निष्कर्ष निकाला कि, जिस व्यक्ती के खून HMBPP की मात्रा ज्यादा होती हैं। उस व्यक्ती के तरफ मच्छर ज्यादा आकर्षित होते है।
ज्यादा मच्छर काटने के पिछे कुछ लोगों के जीन भी ज़िम्मेदार
इसके अतिरिक्त एक रिसर्च में शोधकर्ताओं ने ज्यादा मच्छर क्यों काटते हैं इसके पिछे की एक अलग ही वजह ढूंढ निकाली है। उनके मुताबिक ज्यादा मच्छर काटने के पिछे कुछ लोगों के जीन भी ज़िम्मेदार है। कुछ लोगों के जीन में ही कुछ ऐसी बात होती हैं। जो मच्छरों को अपनी ओर आकर्षित करती है। दुनिया के लगभग 20 प्रतिशत लोगों के जीन ऐसे है। जिसके चलते मच्छर उनकी ओर आकर्षित होते है।
ज्यादा मच्छर काटने के पिछे ब्लड ग्रुप भी है
कुछ लोगों को ज्यादा मच्छर काटने के पिछे की एक वजह ब्लडग्रुप भी है। ऐसा शोध से पता चला है। कहा जाता है कि, जिन लोगों का ब्लड ग्रुप ओ होता है। उन्हे बाकी ब्लड ग्रुप के लोगों से ज्यादा मच्छर काटते हैं। शोध से पता चला है कि, ओ ब्लड ग्रुप के लोगों को बाकी ब्लड ग्रुप के लोगों से दोगुने मच्छर काटते हैं।
ज्यादा मच्छर काटने के पिछे शरीर का तापमान भी जिम्मेदार
इसके अलावा ज्यादा मच्छर काटने के पिछे शरीर का तापमान भी जिम्मेदार है। शोधकर्ताओ का कहना है कि, कुछ लोगों का शरीर अन्य लोगों से हमेशा गर्म रहता हैं। जिस कारण उन्हें ज्यादा मच्छर काटते हैं।
गर्भवती महिलाओं को काटते हैं ज्यादा मच्छर
एक रिसर्च यह भी सामने आई है कि, गर्भवती महिलाओं को भी अन्य लोगों से ज्यादा मच्छर काटते हैं।
यह है असल वजह कुछ लोगों को ज्यादा मच्छर काटने के पिछे का। आपको यह जानकारी कैसी लगी हमे कमेंट बॉक्स में जरूर बताए।
नोट :- यह विश्लेषण बीबीसी मराठी में मिले जानकारी पर आधारीत है।