Last Updated on 2 months by Sandip wankhade
महात्मा अय्यंकालि की भूमिका और कार्य ठीक वैसा ही है, जैसा महात्मा ज्योतिबा फुले, डॉ बाबासाहब आंबेडकर और नारायण गुरु का था।
महात्मा अय्यंकालि का जन्म :-
दलितों और पिछड़ों के दिलों में मान सम्मान की ज्वाला जलाने वाले महात्मा अय्यंकालि का जन्म केरल के वेंगनुर में सन 28 अगस्त 1863 को हुआ। उनके पिता का नाम “अय्यन” था और उनके माता का नाम “माला” था। महात्मा अय्यंकालि अपने सभी आठ भाई बहनों में सबसे बड़े थे। वे “पुलायार” जाती से थे। जिसे “पुलाया” भी कहा जाता है। आपको बता दें कि, केरल में पुलायार जाती अछूत वर्ग में सबसे निचले पायदान पर मानी जाती है या मानी जाती थी।
इसके उलट “नायर” जाती उच्च वर्ग में आती थी। केरल में इस जाती के लोग आर्थिक मामले में भी काफी अच्छे थे। या फिर हम कह सकते हैं कि, नायर जाती के लोग केरल में जमींदार वर्ग था। इन्ही लोगों के खेतों पर पुलायार समाज काम किया करता था। बदले में जमींदार इन्हे मजदूरी के रूप में सला – गड़ा चावल देते थे और वो भी केवल 600 ग्राम ही देते थे।
महात्मा अय्यंकालि के घर की आर्थिक स्थिति की बात करे तो, उनके घर की आर्थिक स्थिति काफ़ी खराब थी। या फिर यू कहे कि, उनके परिवार की हैसियत एक भू – दास के समान ही थी।
बचपन के अपमान ने बनाया विद्रोही :-
एक बार महात्मा अय्यंकालि अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेल रहे थे। (उस दौर में जातिव्यवस्था इतनी कठोर थी कि, बच्चे भी केवल अपने ही जाती के बच्चों के साथ खेल सकते थे) फुटबॉल खेलते वक्त अय्यंकालि और उनके दोस्तों की गेंद एक नायर परिवार के घर पर जा गिरी। जिसे निकालने के लिए अय्यंकालि उस नायर परिवार के घर की तरफ बढ़े। अय्यंकालि को अपने घर की तरफ आते देख उस घर का मुखिया बाहर आया और अय्यंकालि को डाटने, धमकाने लगा। क्रोध में उस घर के मुखिया ने अय्यंकालि को यहां तक नसीहत दी कि, आगे वह उनके घर के आसपास ना दिखे और ना ही उनके समाज के बच्चो के साथ खेलें।
उस नायर गृहस्थ की बातों से महात्मा अय्यंकालि छोटी सी उम्र में ही काफ़ी दुखी हुए। पहले ही जाती व्यवस्था का अपमान सह रहे अय्यंकालि ने इस अपमान के बाद अपने मन में ही यह प्रण लिया कि, वह आज के बाद कभी भी और किसी भी सवर्ण समाज के बच्चे के साथ दोस्ती नहीं करेंगे और ना ही उनके साथ किसी भी तरह का संबंध रखेंगे।
लोकगीतों के जरिए समाज को जागरूक करने का काम किया :-
द प्रिंट मीडिया में छपे लेख के मुताबिक़, महात्मा अय्यंकालि को गाना गाने का और बजाने का काफी शौक था। उन्हे लोकगीतो में और मंच पर नाटक करने में काफ़ी रुची थी। पहले ही छुआछूत के कारण आहत हुए महात्मा अय्यंकालि ने इन्ही लोकगीतो के जरिए समाज में जनजागृती की और नाटकों के जरिए अपने समाज को यह अहसास दिलाने लगे कि, कैसे ऊंची जाती द्वारा उनका हर दिन शोषण किया जा रहा है, उन्हे अपमानित किया जा रहा है।
बैलगाड़ी से क्रान्ति की मशाल जलाई :-
दलितों के सामाजिक उत्पीड़न का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि, उस दौर में दलितों को गांव में खुला घूमना, अच्छे कपड़े पहनना आदी पर पाबंदिया थी। उच्च वर्ग द्वारा निर्मित इन नियमों पर चलने की और उनका पालन करने की आदत महात्मा अय्यंकालि को बचपन से ही नहीं थी। इसलिए वे इन नियमों का हर पल विरोध करते रहें।
25 साल के होने तक उन्होंने अपने ही जैसे विचार रखने वाले वाले युवाओ को इकट्ठा किया और एक संघटन बनाया, जो हमेशा इस प्रकार के नियमों का उल्लघंन करके अपने हक के लिए रास्तों पर उतरता था।
1889 मे जब सार्वजनिक रास्तों पर चलने का अधिकार प्राप्त करने के लिए अय्यंकालि और उनके साथी जब शांतीपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। तभी कुछ उच्च वर्ग के सवर्णों ने उनपर हथियारो से हमला किया था। जिसके चलते दोनों गुटों में काफ़ी संघर्ष हुआ और दोनों ही तरफ से खून बहा था।
अय्यंकालि किसी भी कीमत पर सार्वजनिक सड़कों पर चलने का अधिकार अपने समाज के लिए चाहते थे। पिछली बार हुए हंगामे के कारण इस बार मतलब 1893 को उन्होंने सार्वजनिक सड़कों पर चलने का अधिकार प्राप्त करने के लिए एक योजना बनाई।
योजना के तहत महात्मा अय्यंकालि ने दो ताकतवर बैल लिए और एक गाड़ी ली। इसके अलावा उन्होंने पीतल की दो बड़ी घंटियां भी ली। जिन्हें उन्होंने अपने दोनों ही बैलों के गले में बांधा और सजधज कर बैल गाड़ी पर सवार होके गांव के मुख्य रास्ते पर चल पड़े।
उन्हे इस बात का पुरा अंदेशा था कि, उच्चवर्णीय सवर्ण उन्हे रोकने के लिए ज़रूर आएंगे। इसलिए उन्होंने पहले ही अपने साथ एक धारदार हथियार भी लिया।
जैसे ही अय्यंकालि अपने बैलगाड़ी को लेकर रास्ते पर चलने लगे। बैलों के गले में बंधी घंटियां जोर जोर से बजने लगी। मुख्य सड़क पर बैलगाड़ी चलाते हुए एक अछूत को देख उच्च वर्ग के लोग काफ़ी आहात हुए। अय्यंकालि के इस कृत्य की खबर पूरे इलाखे में हवा की तरह फैल गई। जिसके बाद उच्च वर्ग द्वारा विरोध होना पक्का था। आखिरकार जिसकी आशंका थी वहीं हुआ। कुछ उच्च वर्ग के लोग उन्हें रोकने के लिए आगे आए। इन लोगों को देखते ही अय्यंकालि ने अपने पास रखें धारदार हथियार को बाहर निकाला और उसे हवा में लहराया। अय्यंकालि के हाथ में धारदार हथियार को देखकर उच्च वर्ग के लोग, जो विरोध करने आगे आए थे। वे पीछे हट गए।
25 साल के युवा अय्यंकालि द्वारा इस प्रकार से सदियों पुराने सामाजिक व्यवस्था को चुनौती देना और वो भी पूलायार समाज के एक व्यक्ती द्वारा, जिस समाज की हैसियत दास जैसी हो। अपने आप में एक बड़ी बात थी।
आज़ादी का जुलूस निकाला :-
दलितों में आत्मविश्वास की ज्वाला जलाने के लिए महात्मा अय्यंकालि ने एक और कदम उठाया। उन्होंने तिरुवनंतपुरम में दलित बस्ती से पुत्तन बाजार तक एक रोड मार्च निकाला। जिसे आज़ादी का जुलूस कहा गया। लेकिन जैसे ही उस जुलूस का काफिला मुख्य सड़क पर पहुंचा, वैसे ही कुछ विरोधीयो ने उन पर हमला कर दिया। अपने लोगों पर उच्च वर्ण के कुछ लोगों द्वारा हमला करते देख अय्यंकालि ने भी अपने लोगों को जवाब देने के लिए कहा। अय्यंकालि के इशारे पर सैकड़ो दलित युवक विरोधियों पर टूट पड़े। जिससे वहा पर काफ़ी हंगामा हुआ। इस हंगामे की खबर भी आसपास के गावों और कसाबो में आग की तरह फैल गई।
दलितों के हक के लिए अय्यंकालि द्वारा निकाले गए जुलुस से प्रेरित होकर बाकी गावों और कस्बों के दलित लोग भी, खासकर युवा वर्ग सड़कों पर अपने हक के लिए प्रदर्शन करने लगा।
अय्यंकालि की शिक्षा क्रांति :-
महात्मा अय्यंकालि ने अपने संघर्षरत जीवन में शिक्षा के लिए भी संघर्ष किया। द प्रिंट मीडिया में छपे जानकारी के मुताबिक़, 1904 में अय्यंकालि ने अपने समाज और बाकी दलित समाज के बच्चो के लिए वेंगनूर में एक स्कूल खोला। (उस समय दलित समाज को, या यू कहे अछूतो को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं था।) परंतु उच्च वर्ण के लोगों को वह बिलकुल बर्दाश्त नहीं हुआ। इन लोगों ने वक्त देखकर उस स्कूल को तहस नहस कर दिया। जैसे ही स्कूल को तहस नहस करने की खबर अय्यंकालि के पास पहुंची। उन्होंने बिना किसी देरी के उसी स्थान पर दुबारा नया स्कूल खड़ा किया।
महात्मा अय्यंकालि ने स्कूल तो बनाया, लेकिन स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक आने को तैयार नहीं था। क्योंकि वे डरते थे, कही उनको कोई जान से ना मार दे। अय्यंकालि ने इसपर भी एक हल निकाला। उन्होंने स्कूल में पढ़ाने आने वाले शिक्षकों को घर से स्कूल और स्कूल से घर तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए कुछ रक्षकों की नियुक्ती की। जो शिक्षकों के सुरक्षा में हमेशा तैनात रहते थे। लाख तनाव और आशंकाओं के बिच स्कूल फिर चलने लगा।
इसके बाद 1 मार्च 1910 को अंग्रेज सरकार ने शिक्षा निति पर एक आदेश निकाला और उसका सक्ती से पालन करने को कहा गया। उस समय ब्रिटिश शिक्षा निदेशक “मिशेल” खुद अपने द्वारा निकाले गए शिक्षा निति आदेश का ठीक से पालन हो रहा है या नहीं। ये देखने के लिए दौरे पर निकले। शिक्षा निदेशक मिशेल को देखकर सवर्ण काफ़ी उग्र हुए। वे सभी शिक्षा निति का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरे। आपको बता दें कि, मिशेल की शिक्षा निति दलितों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार देने से जुड़ी थी। जो सवर्णों को बिलकुल भी पसंद नहीं थी। मिशेल के शिक्षा निति से नाराज़ उग्रवादी सवर्णों ने गुस्से में दौरे पर निकले मिशेल के गाड़ी को आग हवाले कर दिया। कहा जाता है कि, जिस दिन यह वाकया हुआ उस दिन आठ पूलायार समाज के बच्चो ने स्कूल में प्रवेश लिया था।
श्री मूलम पॉपुलर असेंबली के सदस्य बने महात्मा अय्यंकालि :-
1910 के शिक्षा नीति के दो साल बाद, मतलब 1912 में महात्मा अय्यंकालि को “श्री मूलम पॉपुलर असेंबली” का सदस्य चुना गया। इस असेंबली के सदस्य बनते ही उन्होंने अपना पहला भाषण दलितों पर दिया। जानकारी के मुताबिक़, महात्मा अय्यंकालि राजा और दिवान के उपस्थिति में दलितों के संपत्ति अधिकार और राज्य सरकार मे दलितों को नौकरी के लिए विशेष आरक्षण की मांग की। जिससे दलित हजारों साल से वंचित थे। इसके अलावा उन्होंने राजा और दिवान के सामने बिगार से मुक्ती की भी मांग की थी।
दलितों के हक के लिए जी जान लगा दी महात्मा अय्यंकालि ने :-
महात्मा अय्यंकालि ने दलितों को उनके जन्मसिद्ध हक दिलाने के लिए काफी प्रयास किए। शिक्षा से जुड़ा कानून ब्रिटिश सरकार द्वारा तो बनाया गया था।
1907 की घटना है जब पूलायारो ने कहा कि, जब तक उनके बच्चों को स्कूल में प्रवेश और बाकी उच्च जाती के बच्चों को मिलने वाले अवसर उनके बच्चों को नही मिलते हैं, तब तक वे किसी भी जमींदार के खेतों में और उच्च वर्ग के लोगों के घर पर काम नहीं करेंगे। इस मांग के अलावा और भी कुछ मांगे पूलायार समाज की थी। जैसे अछूतो को नौकरी को करने का अधिकार, किसी दंड से पहले जांच का अधिकार, सार्वजनिक सड़कों पर चलने का अधिकार आदी। अपने इन मांगों के साथ पूलायार समाज हड़ताल पर बैठ गया। पूलायार समाज के इन मांगों का शुरूआत में जमींदारों ने काफ़ी मजाक उड़ाया। दिन बीतते गए और हड़ताल लंबी खींचती चली गई।
इसके बाद समाज के कुछ ठेकेदार पूलायार लोगों को डराने धमकाने लगे। उनके साथ मारपीठ पर भी उतर आए। लेकिन पूलायार समाज फिर भी बिना डरे और बिना हिचकिचाए हड़ताल पर डटा रहा। हड़ताल वक्त के साथ लंबी चलने के कारण पूलायार लोगों के घर पर खाने के लाने पड़ने लगे। जैसे ही यह समस्या अय्यंकालि को पता चली। उन्होंने उसपर भी हल ढूंढ निकाला।
अय्यंकालि सीधे मछुआरों के पास गए और उनसे आग्रह किया कि, वे हर घर के एक एक पूलायार को अपने साथ मछली पकड़ने के काम पर रखे और बदले में उन्हें कुछ मजदूरी दे। अय्यंकालि के इस विनंती का मछुआरों ने स्वीकार किया और अपने साथ हर घर के एक एक पूलायार को अपने साथ काम पर रखा।
लेकिन जैसे ही यह खबर जमींदारों को लगी। उन्होंने गुस्से में पूलायार समाज के बस्ती को आग लगा दी। लेकिन फिर भी पूलायार समाज हड़ताल से पिछे नही हटा। आखिरकार जमींदारों को पूलायार समाज के साथ उनके मांगों पर समझौता करना पड़ा।
महिलाओं के स्तन ढंकने के अधिकार के लिए संघर्ष किया :-

महात्मा अय्यंकाली
उस दौर में दलित महिलाएं गले में केवल पत्थर के आभूषण ही पहन सकती थी और कानों में लोहे की बालियां। अछूत महिलाओं को तन ढकने का अधिकार ना होना जाती सत्ता का सबसे घिनौना उदाहरण और कही नही देखने को मिलेंगा। महिलाओ के साथ होने वाली इस ज्याती के विरोध में भी महात्मा अय्यंकालि ने त्रावनकोर में आंदोलन किया।
आंदोलन में शामिल सभी महिलाओं को महात्मा अय्यंकालि ने कहा कि, वे इस गुलामी के प्रतीक को त्याग कर वे भी बाकी उच्च जाती की महिलाओं की तरह ही सामान्य आभूषण और ब्लाउज धारण करे।
महिलाओं का समाज के क्रूर रूढ़ी के विरोध में किया गया विद्रोह भी सवर्णों को पसन्द नहीं आया। जिसके चलते त्रावनकोर में दंगे भड़के और आखिरकार यहां भी सवर्णों को पिछे हटकर दलितों के साथ समझौता करना पड़ा।
आदर्श जनप्रतिनिधी थे महात्मा अय्यंकाल :-
केरल का पूलायार समाज जमींदारों के खेतों पर किसी दास की तरह ही अपनी सेवाएं देते थे। इतना ही नहीं केरल का पुरा का पुरा पूलायार समाज भूमिहीन था।
महात्मा अय्यंकालि ने पूलायार समाज के अलावा सभी दलितों को दास प्रथा से मुक्ती दिलाने और उन्हे भूस्वामी बनाने के लिए भी संघर्ष किया। उन्होंने “मुलम प्रजा सभा” सदस्य के रूप में सभी सभा सदस्यों के सामने यह दलील रखी कि, दलितों को दास प्रथा से मुक्त किया जाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि, केरल के लाखों दलित बेघर है। इसलिए उन्हें आवास के लिए जमीन दी जाए। फलस्वरूप सरकार ने 500 एकड़ जमीन का आवंटन कर उसे हर एक पूलायार परिवार में एक एक एकड़ के रूप में बाटा। कहा जाता है कि, महात्मा अय्यंकालि की यह बड़ी जीत थी।
महात्मा अय्यंकालि की मृत्यु :-
महात्मा अय्यंकालि 1904 से ही दमे की बीमारी से जूझ रहे थे। जो वक्त के साथ बढ़ती चली गई। 24 मई 1941 को उन्होंने पुरी तरह से बिस्तर पकड़ लिया और आख़िरकार यह दलितों का मसीहा 18 जून 1941 को दुनियां छोड़ कर चला गया।
यह था महात्मा अय्यंकालि का जीवन परिचय। आपको कैसा लगा हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताए।
स्रोत :-महात्मा अय्यंकली : सामाजिक न्याय और सम्मान की लड़ाई के नायक (फेमिनिज्म इन इंडिया, June 22, 2021)
महिलाओं के स्तन ढंकने के हक के लिए आंदोलन करने वाले महात्मा अय्यंकालि (द प्रिंट, 17 June, 2019)