जब भी हम अंडरवर्ल्ड की बात करते है, तब हमारे जुबान पर सबसे पहला नाम आता है दाऊद इब्राहिम का। आये भी क्यों ना क्युकी भारत समेत पूरी दुनिया का सरदर्द जो बना हुआ है और सबसे बड़ी बात तो ये है कि, हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी तो उसे शरण दी हुई है।
दाऊद इब्राहिम, मन्या सुर्वे, हाजी मस्तान ये नाम हमने कई बार सुने है। लेकिन क्या आप जानते है। दाऊद इब्राहिम और उसका गुरू हाजी मस्तान जैसे अंडरवर्ल्ड डॉन एक महिला के इशारे पर नाचते थे। यह पढ़कर आपको थोड़ा अजीब लगता होंगा। लेकिन यह सच है। उस माफिया क्विन का नाम जेनाबाई दारूवाला है।
आइए जानते है। इस माफिया क्विन के बारे में, जिसके इशारे पर माफिया जगत के बड़े बड़े डॉन नाचते थे।
जेनाबाई दारूवाला का जन्म :
जानेमाने पत्रकार और लेखक हुसैन जैदी की किताब “माफिया क्विंस ऑफ मुंबई“, जेनाबाई दारूवाला के जीवन पर काफी प्रकाश डालती है। इस किताब के अनुसार जैनब उर्फ जेनाबाई का जन्म सन् 1920 में हुआ। मुस्लिम मेनन हलाई परिवार मे पैदा हुई जैनब उर्फ जेनाबाई छह भाई बहनों मे से एक थी। इस किताब के अनुसार, जैनब उर्फ जेनाबाई का परिवार मुंबई के डोंगरी इलाके मे रहता था। परिवार की सारी जिम्मेदारी उसके पिता के कंधो पर ही थी। उस वक्त सवारिया ढ़ोने का काम उसके पिता किया करते थे।
आजादी के आंदोलन का हिस्सा बनी :
“माफिया क्विंस ऑफ मुंबई” इस किताब के मुताबिक, बताया गया है कि, जैनब उर्फ जेनाबाई 1930 के दशक में मुंबई के डोंगरी इलाके में हुए गांधीजी के आजादी के आंदोलन में उसने भाग लिया था। मतलब उसने इस आजादी के आंदोलन में शिरकस्त की थी।
पुलिस की गिरफ्त से हिंदू लड़के को बचाने पर पति ने पीटा था :
महज 14 साल की उम्र में जेनाबाई का विवाह उन्ही के बिरादरी के एक मुस्लिम लड़के से हुआ था। लेकिन पति का साथ उसे जिंदगी भर के लिए नसीब नहीं हो पाया। कहा जाता है कि, जैनब उर्फ जेनाबाई ने एक बार एक हिंदू को पुलिस की गिरफ्तारी से बचाया था। जब यह बात उसके पति को मालूम पड़ी। तो उसे यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आयी। एक हिंदू की मदत करने से उसे काफी गुस्सा आया था। जिसके कारण उसने जैनब उर्फ जेनाबाई को बुरी तरह से पिता था।
पति साथ छोड़कर पाकिस्तान चला गया :
जब भारत आजाद हुआ, तब 1947 के दौरान ही पाकिस्तान भी एक मुस्लिम देश के रूप मे आजाद हुआ था। अपना अलग मुस्लिम देश बनने से भारत से बड़ी संख्या में मुस्लिम भारत छोड़ पाकिस्तान जा रहे थे। मुंबई से भी बड़ी संख्या में मुस्लिम भारत छोड़ पाकिस्तान जा रहे थे। तब जैनब उर्फ जेनाबाई के पति ने भी उसे भारत छोड़ पाकिस्तान चलने को कहा था। पर उसने साफ मना कर दिया था और भारत में ही रहने की जिद पकड़ी। जेनाबाई के इस जिद के करण उसका पति नाराज होकर उसे और उसके पाँच बच्चों को यही भारत मे छोड़कर अकेला पाकिस्तान चला गया।
परिवार की पूरी जिम्मेदारी जेनाबाई के कंधों पर आयी :
कहा जाता है कि, पति के साथ छोड़ने के कारण अब परिवार की पूरी जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई थी। इस दौरान ही पूरे भारत में अनाज की काफी किल्लत पड़ गई थी। लोग भूके मरने लगे थे। महाराष्ट्र सरकार ने इस आपदा का प्रबंधन करने के लिए अपने राज्य में कम दाम पर गरीबों को अनाज देने का काम शुरू किया था।
चावल के कालाबाजारी से शुरुवात हुई थी माफिया क्विन बनने की :
अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण करने के लिए जैनब उर्फ जेनाबाई ने चावल की स्मगलिंग करनी शुरू की थी। वह ब्लैक से चावल बेचकर पैसे कमाती थी। लेकिन कुछ वक्त के बाद उसे इस धंधे में घाटा आने लगा। कहा जाता है कि, चावल की कालाबाजारी करते समय उसकी मुलाकात कुछ स्मागलरो से हुई। जिसके बाद उसने बाकी धंधों के स्मगलिंग मे खुद को आजमाना चाहा। सबसे पहले उसने दारू के धंधे में पैर रखा। उसने डोंगरी के इलाके में दारू बेचने का काम शुरू किया। धीरे धीरे वह दारू के धंधे में इतनी कामयाब बनी की, अब डोंगरी के इलाके में दारू बनाने में और उसे बेचने मे कोई भी उसका हाथ नहीं पकड़ता था। धीरे धीरे उसकी दारू पूरी मुंबई में बिकने लगी। दारू के धंधे में अब पूरे मुंबई में उसका ही सिक्का चलता था। ऐसा कहा जाता है कि, यही से ही उसके नाम के आगे दारूवाला जुड़ा और वह बन गई “जेनाबाई दारूवाला“।
दारू बेचते बेचते जेनाबाई दारूवाला बन गई स्मागलर क्वीन :
जेनाबाई दारूवाला की स्मागलर क्वीन बनने की कहानी काफी दिलचस्प है।पूरे मुंबई के दारू के धंधे पर राज करने वाली जेनाबाई दारूवाला, दारू के अवैध धंधे के बाद। अब वह धीरे धीरे बाकी धंधों मे भी अपने पैर जमाने लगी। और 70 के दशक के आसपास वह पूरे मुंबई पर राज करने लगी। अब स्मगलिंग के मामले में जेनाबाई दारूवाला अंडरवर्ल्ड की माफिया क्वीन बन चुकी थी।
उंडरवर्ल्ड की जगत में किसी भी काम को अंजाम देने से पहले लेनी होती थी जेनाबाई दारूवाला की परमिशन :
अवैध धंधों पर राज करने वाली माफिया क्वीन जेनाबाई दारूवाला के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, हाजी मस्ताना, करीम लाला, दाऊद इब्राहिम, वरदराजन मुदलियार जैसे बड़े से बड़े माफिया डॉन नागपाडा इलाके में स्थित उसके घर सलाह मशोहरा करने आया करते थे।
ये सभी उसके सलाह के बगैर किसी भी काम को अंजाम नही देते थे। दाऊद का गॉड फादर हाजी मस्ताना ने तो जेनाबाई दारूवाला को अपनी बहन तक मान लिया था। और वह हमेशा किसी भी काम को अंजाम देने से पहले उससे सलाह मशोहरा किया करता था।
अपने गुरु के नक्शे कदम पर चलने वाला दाऊद भी कोई भी काम करने से पहले जेनाबाई दारूवाला से जरूर बात करता था।
यू कहे तो, उंडरवर्ल्ड की जगत में जेनाबाई दारूवाला का दबदबा इस कदर था की, उससे सलाह मशोहरा किए बगैर उंडरवर्ल्ड में एक तिनका भी नही हिलता था।
अपनी पहुँच के चलते पुलिस भी कुछ नही बिगाड़ पायी जेनाबाई का :
सन् 1962 मे महाराष्ट्र पुलिस के एक टीम ने जेनाबाई को अवैध शराब बेचते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया था। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण थे। लेकिन कहा जाता है कि, जेनाबाई दारूवाला की पहुँच काफी उपर तक थी राजनेताओं से उसके काफी अच्छे संबंध होने के कारण पुलिस को उसे छोड़ देना पड़ा था।
पुलिस की मुखभीर भी थी जेनाबाई दारूवाला :
पुलिस की गिरफ्त से छुटने के बाद। जेनाबाई दारूवाला पुलिस के लिए खबरी का काम करने लगी थी। कहा जाता है कि, पुलिस भी उसके दिए गए खबर के मुताबिक ठिकानों पर छापेमारी किया करती थी। छापे में मिले माल का दस प्रतिशत पुलिस जेनाबाई को दिया करती थी।
हिंदू मुस्लिम एकता के लिए काम :
जेनाबाई के बारे में और एक दिलचस्प बात यह है कि, अपने जीवन के आखरी पड़ाव में वह काफी मजहबी हो गई थी। उसने अंत में धर्म का रास्ता चुना था। कहा जाता है कि, हिंदू मुस्लिम एकता के लिए भी उसने काफी प्रयास किया। उसने हिंदू मुस्लिम समुदाय मे से कुछ उन प्रभावशाली लोगों के गुट बनाए। जो हमेशा समाज़ मे जब भी सांप्रदायिक तनाव पैदा होता था, तब ये लोग अपने अपने लोगो के बीच जाकर उन्हें समझाते थे और तनाव दूर करने का प्रयास किया करते थे।
बेटे के कातिल को भी किया था माफ :
जेनाबाई का बड़ा बेटा जुर्म के रास्ते पर चल पड़ा था। एक दिन वह गैंगवार मे मारा जाता है। इसकी केस भी चल रही होती है। जब बेटे के कतिलो का पता जेनाबाई को चलता है, तब वह केस ये कहकर वापस ले लेती है कि, “इनको सजा मिलने से मेरा बेटा वापस नही आयेगा“।
जेनाबाई दारूवाला की मौत :
1990 के दशक तक मुंबई का डोंगरी इलाका स्मगलिंग के लिए जाना जाने लगा था। इसी समय दाऊद इब्राहिम जुर्म की दुनिया का एक ताकदवर शक्स बन चुका था। अब वह जेनाबाई दारूवाला से सलाह मशोहरा किए बगैर अपने कामों को अंजाम देने लगा था।
हुसैन जैदी की किताब के मुताबिक, जब मुंबई में 1993 मे जो सिलसिले वार बम धमाके हुए। इसका पता जेनाबाई दारूवाला को चलता है और उन्हे जब यह मालूम पड़ता है कि, ये धमाके दाऊद ने किए है, तब उसे इस बात का काफी गहरा सदमा लगता है। क्युकी दाऊद ने उससे कोई भी सलाह मशोहरा किए बगैर इतने बड़े काम को अंजाम दिया था।
कहा जाता है कि, इसी घटना के बाद माफिया क्वीन जेनाबाई दारूवाला हमेशा बीमार रहने लगी थी और इस बीमारी मे ही उसकी मौत हो गई।
दोस्तों ये थी, माफिया क्वीन जेनाबाई दारूवाला की पूरी कहानी। हुसैन जैदी की किताब “माफिया क्वीन ऑफ मुंबई” से प्रेरित।