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स्वर्णरेखा, झारखंड की एक सोना उगलने वाली नदी। जिसका रहस्य आज तक नही सुलझा सके वैज्ञानिक

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Last Updated on 2 weeks by Sandip wankhade

स्वर्णरेखा, झारखंड की एक सोना उगलने वाली नदी। जिसका रहस्य आज तक नही सुलझा सके वैज्ञानिक

Photo credit:- patrika.com

झारखंड‘ एक खूबसूरत जंगलो, नदी, नालों और घाटियों से बना यह भारत का राज्य दिखने में जितना बाहर से खूबसूरत है उतना ही अंदर से ये कई सारे रहस्यों से भरा पड़ा है। यहाँ के ना केवल जंगल, स्थल और मंदिर रहस्यों से भरे हुए है बल्कि यहाँ की कुछ नदिया भी रहस्यों से भरी पड़ी हुई है। आपको बता दे कि, झारखंड में कुछ नदिया अपने साथ ना केवल पानी, बल्कि रहस्यों को भी लेकर बहती है।

आज इस लेख में हम झारखंड की एक ऐसे ही नदी के बारे मे जानेंगे। जो बरसो से सोना उगल रही है। लेकिन नदी में यह सोना आता कहा से है? यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।

नदी का नाम:-

पानी के साथ सोना लेकर बहनेवाली झारखंड की उस नदी का नाम “स्वर्णरेखा (Subarnarekha River) है। यह नदी बरसो से सोना उगलते हुए आई है और ये आज भी जारी है। अपने सोना उगलने के इस खासियत से ही इस नदी का नाम “स्वर्णरेखा” नदी पड़ा है। इस नदी का उद्गम नगड़ी के “रानिचुआ” से होता है। जो लगभग 474 किमी लम्बी है। यह नदी झारखंड के अलावा उड़ीसा और पश्चिम बंगाल से होकर बंगाल के खाडी मे जा मिलती है।

इस नदी की एक और खास बात यह है कि, यह नदी किसी भी दूसरे नदी से जाकर नही मिलती है। बल्कि बाकी नदिया स्वर्णरेखा से आकर मिलती है।

वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय:-

इस नदी के सोना उगलने के रहस्य के कारण ही, यह नदी हमेशा से ही भू वैज्ञानिकों के लिए रिसर्च का विषय बनी रही है। इस नदी के रेत में मिलने वाले सोने के कण दुनिया भर के वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते रहते है।

इस नदी पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक नदी के सोना उगलने के रहस्य का गूढ़ आज तक सुलझा नही पाए है। लेकिन उनके तर्क के अनुसार कहा जाता है कि, नदी के आसपास जरूर कोई सोने की खदान होंगी। जिसके कारण पानी के बहाव से उस खदान से सोने के कण बहकर इस नदी के रेत में घुल जाते होंगे।

तो वही एक तर्क ऐसा भी दिया जाता है कि, नदी चट्टानों से होकर बहती हुई आती है। जिससे चट्टानों की घर्षण पानी के बहाव से होती है और इसी वजह से शायद सोने के कण नदी के रेत में घुल जाते होंगे। लेकिन वैज्ञानिकों ने दिये यह तर्क कितने सच है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएंगा। क्युकी कोई भी वैज्ञानिक आज तक ना ही इस सोने के कण के पीछे की असल वजह को खोज पाया है और ना ही उस सोने के खदान को खोज पाया है।

स्वर्णरेखा नदी के आसपास के इलाकों में रहने वाले आदिवासी जानकार और बुजुर्गों का ऐसा कहना है कि, स्वर्णरेखा नदी की उपनदी “करकरी” नदी में भी उन्हे सोने के कण मिले है, तो संभवतः ऐसा भी हो सकता है कि, स्वर्णरेखा नदी में मिलने वाले यह सोने कण करकरी नदी से बहकर स्वर्णरेखा नदी में आते हो।

स्वर्णरेखा, झारखंड की एक सोना उगलने वाली नदी। जिसका रहस्य आज तक नही सुलझा सके वैज्ञानिक

स्वर्णरेखा नदी

आदिवासीयो के आय का स्त्रोत:-

लाखों आदिवासीयो के आय का प्रमुख स्त्रोत है यह नदी। स्वर्णरेखा के आसपास रहने वाले हजारों आदिवासी परिवार इस नदी से सोने के कण को इकट्ठा करने का काम करते है। परिवार के सभी सदस्य बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी जन इस नदी में बरसात के चार माह को छोड़कर बाकी माह में यह काम करते है। गाववासियों का कहना है कि, एक व्यक्ती एक माह में केवल 70 से 80 सोने के कण को इकट्ठा कर पाता है। कभी कभी यह संख्या घटकर 20 – 25 भी हो जाती है।

इन प्राप्त सोने के कण की किंमत बाजार में 300 से लेकर 400 रुपए प्रति कण तक होती है। लेकिन लालची सोनार और दलाल इन आदिवासीयो से इन कानों को केवल 100 रूपए प्रति कण के हिसाब से ही खरीदते हैं। आदिवासीयो के अनुसार एक सोने का कण लगभग एक गेहूँ के दाने इतना होता है।

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आपको बता दे की, सरकार ने भी अपने स्तर पर नदी के सोना उगलने के गूढ़ को सुलझाने की कोशिश की। लेकिन सरकार भी इस गूढ़ को सुलझा नही पाई।

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