Last Updated on 4 weeks by Sandip wankhade
देश के हर एक व्यक्ति ने कभी ना कभी रेल से यात्रा जरूर की होंगी और हर किसी ने रेल के शौचालय का यूज भी कभी ना कभी किया होंगा। लेकिन क्या आप जानते है रेल के हर एक डिब्बे में लगे ये जो शौचालय हम यूज करते है। वह किसके बदौलत है। आइए जानते है। रेल के हर डिब्बे मे लगे इन शौचालय से जुड़ी रोचक घटना के बारे में। आइए जानते है ऐसा क्या हुआ था कि, रेल प्रशासन को रेल के हर डिब्बे में शौचालय को बनाना पड़ा।
यह घटना सन् 1909 के दरम्यान घटित हुई। उस से पहले रेल के केवल फर्स्ट क्लास के डिब्बे में ही शौचालय बने हुए थे। रेल के बाकी डिब्बे बिना शौचालय के ही होते थे। उस दौरान अगर कोई यात्री यात्रा करता और अगर उसे यात्रा के दौरान शौच या फिर पिशाब आती, तो यात्री को अगला स्टेशन आने तक इंतजार करना पड़ता था। जब रेल अगले स्टेशन पर आ के रुकती थी, तब ही यात्री शौच के लिए या पिशाब के लिए जा सकता था। इस समस्या का सामना हर यात्री को सफर करने के दौरान करना पड़ता था।
इसी समस्या का सामना एक बंगाली बाबू ओखिल चंद्र सेन जी को भी एक बार करना पड़ा था और इन्ही के बेदौलत आज रेल के हर डिब्बे में शौचालय मौजूद है।
घटना के अनुसार एकबार ओखिल चंद्र सेन रेल से यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान गर्मी का मौसम था और गर्मी के कारण उनका स्वास्थ अचानक से खराब हो जाता है। काफी लंबे समय तक एक ही स्थान पर बैठने के कारण उनको पेटदर्द होने लगता है। पेटदर्द के कारण ओखिल चंद्र सेन को यात्रा के दौरान काफी समस्या होतीं हैं। वे अगला स्टेशन आने का बेसब्री से इंतेजार करते है। काफी इंतजार करने के बाद उनकी गाड़ी अगले स्टेशन यानी अहमदपुर रेल स्थानक पर आ कर रुक जाती है। पेटदर्द से परेशान ओखिल चंद्र सेन जी की गाड़ी जैसे ही अहमदपुर रेल स्थानक पर आ कर रुक जाती है, वैसे ही वे तत्काल गाड़ी से उतरकर स्थानक के बाहर पानी से तौलिया भरकर शौच के लिए बैठ जाते है। लेकिन शौच पूरी करने से पहले ही उनके गाड़ी का गार्ड हॉर्न बजाता है। हॉर्न बजते ही उनकी गाड़ी अपने अगले सफर के लिए निकल पड़ती है। गाड़ी को निकलते देख ओखिल चंद्र सेन बिना अपनी शौच पूरी करे, अपने एक हाथ में लौटा और एक हाथ में धोती पकड़कर गाड़ी के ओर दौड़ने लगते है। इस हड़बड़ी मे ओखिल चंद्र सेन गाड़ी में चढ़ते समय नीचे गिर जाते है और उनकी धोती खुल जाती है। नीचे गिरने से वहा फ्लेटफोर्म पर मौजूद बाकी यात्रियों के सामने उन्हे काफी शर्मिंदा होना पड़ता है। उन्हे यात्रियों के हसी का सामना करना पड़ता है।
अपने हाथ से गाड़ी छुटने के कारण ओखिल चंद्र सेन जी को ना चाहते हुए भी अहमदपुर रेल स्थानक पर रुकना पड़ता है। उनके साथ घटित हुए इस घटना के कारण ओखिल चंद्र सेन जी काफी अस्वस्थ होते है। उन्हे गाड़ी के गार्ड पर काफी गुस्सा भी आता है। बाद में वे रेल मंडल को एक पत्र लिखते है और अपने साथ हुए हादसे की सविस्तर जानकारी वे रेल मंडल को अपने पत्र के मध्यम से देते है।
इस पत्र के मध्यम से ओखिल चंद्र सेन, रेल मंडल को जवाब मांगते है कि, अगर कोई यात्री रेल स्थानक पर शौच के लिए जाए तो क्या रेल का गार्ड उस यात्री के लिए पांच मिनट भी गाड़ी रोक नही सकता क्या?
आगे उन्होंने इस पत्र के मध्यम से रेल मंडल को पूछा कि, अगर गाड़ी रोक सकता था, तो फिर आप उस गार्ड को इस भूल के लिए दंडित करे , उस गार्ड पर जुर्माना लगाये।
इतना ही नहीं ओखिल चंद्र सेन ने इस पत्र के मध्यम से रेल मंडल को इशारा भी दिया कि, अगर उन्होंने उनके पत्र की दखल नही ली, तो वे इस सारे घटनाक्रम को और रेल मंडल के लापरवाई वाले व्यवहार को लेकर देश के तमाम अखबारों में खबर चलाएंगे।
पत्र के मध्यम से दिये ओखिल चंद्र सेन के इशारे के बाद रेल मंडल ने उनके पत्र की गंभीरता से दखल ली और उनके साथ हुए दुर्व्यवहार के लिए रेल मंडल ने क्षमा भी मांगी।
ओखिल चंद्र सेन के इशारे वाले पत्र के बाद रेल प्रशासन ने अगले दो साल के भीतर ही रेल के हर एक बोगी या डिब्बे में शौचालय की व्यवस्था की।

Train toilet
इस प्रकार रेल के प्रत्येक बोगी मे सन् 1911 – 1912 मे शौचालय का निर्माण हुआ और तब से लेकर आज तक रेल के हर बोगी मे शौचालय बनाए जाने लगे। आज ओखिल चंद्र सेन जी के बदोलत शौचालय रेल का एक अभिन्न हिस्सा बना हुआ है।
आपको बता दे कि, ओखिल चंद्र सेन जी के द्वारा रेल प्रशासन को लिखे इस पत्र को भारत सरकार और रेल प्रशासन ने आज भी दिल्ली में स्थित रेल के म्युजियम मे संभालकर रखा हुआ है।
दोस्तो ये थी रेल के प्रत्येक बोगी मे बने शौचालय की कहानी। कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताए।