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भारतीय मुसलमानों की आबादी को लेकर किए जा रहे दावों में कितनी सच्चाई है? जाने इस लेख में

भारतीय मुसलमानों की आबादी को लेकर किए जा रहे दावों में कितनी सच्चाई है? जाने इस लेख में
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Last Updated on 5 months by Sandip wankhade

भारतीय मुसलमानों की आबादी को लेकर किए जा रहे दावों में कितनी सच्चाई है?

हाल ही में भारत के अर्थमंत्री निर्मला सीतारामन जी ने मुसलमानों की स्थिति के बारे में कई सारे दावे किए है। आपको बता दें कि, भारत की अर्थमंत्री निर्मला सीतारामन जी अमेरीका के दौरे पर हैं और इस दौरे में उनके सरकार पर आरोप लगे है कि, भारत में भाजपा के शासन के दौरान मुसलमानों की स्थिति बदतर हो गई है। भारत सरकार पर लगे इस आरोप का निर्मला सीतारामन जी ने पुरी तरह से खंडन किया है। इस प्रकार के दावे हमेशा भारत पर लगते रहते हैं। इस दावे में कितनी सच्चाई है इसको हम आंकड़ों के जरीए समझते हैं। आपको बता दें कि, (यह लेख पुरी तरह से BBC Marathi लेख से प्रभावित है)

आपको बता दें कि, “भारत की मुस्लिम आबादी दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी है।” इस बारे में ठीक से हम नही कह सकते हैं क्योंकि कोरोना महामारी के कारण भारत में 2021 की जनगणना नही हो पाई है और भारत में जाति पर आधारित जनगणना भी नहीं होती है। पर अमेरीका के प्यू रिसर्च इस संशोधन संस्था की बात माने तो, उन्होने किए रिसर्च के मुताबिक़ एक अंदाजा है कि, भारत में दुनिया में मुसलमानों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी रहती है। दुनियां में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी इंडोनेशिया में रहती है। अर्थात मुस्लिम आबादी के मामले में इंडोनेशिया दुनिया में पहले, भारत दूसरे और पाकिस्तान तीसरे नंबर पर है।

आपको बता दें कि, भारत को लेकर अमेरीका के प्यू रिसर्च यह संशोधन भारत और पाकिस्तान की पिछली जनगणना के आधार पर।  भारत में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी और पाकिस्तान में आखिरी जनगणना 2017 में हुई थी। वर्तमान में 2023 साल चल रहा है। अर्थात 12 साल पहले का यह संशोधन है।

विशेषज्ञों ने पाकिस्तान की जनगणना के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं

आपको बता दें कि, विशेषज्ञों ने पाकिस्तान की जनगणना के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। क्योंकि जब पाकिस्तान में 2017 की जनगणना की गिनती चल रही थी, तब कुछ प्रांतों और शहरों (सिंध, कराची, बलूचिस्तान) में कुछ कठिनाइयों का अनुभव होने की सूचना मिली थी। वही भारत में जाति पर आधारित जनगणना नही होती है। इस बारे में प्यू रिसर्च में धार्मिक मामलों के सहायक निदेशक कोनार्ड हैकेट कहते हैं, ”पाकिस्तान के आंकड़ों को लेकर अनिश्चितता है और भारत में जाति पर आधारित जनगणना नही होती है। इसलिए ”पाकिस्तान में भारत की तुलना में बड़ी मुस्लिम आबादी होने की भी संभावना है। ऐसा प्यू रिसर्च में धार्मिक मामलों के सहायक निदेशक कोनार्ड हैकेट का मानना है।

क्या भारत में मुस्लिम आबादी बढ़ रही है?

आपको बता दें कि, भारत के अर्थमंत्री निर्मला सीतारामन जी ने मुसलमानों की स्थिति के बारे में कई सारे दावे किए है। उनमें से एक दावा यह है कि, “भारत में मुस्लिम आबादी बढ़ रही है।” आपको बता दें कि, भारत के अर्थमंत्री निर्मला सीतारामन जी का यह बिलकुल सही है। पर तथ्य यह भी है कि, भारत में सिर्फ मुस्लिम आबादी ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के मानने वालों की आबादी बढ़ रही है।

लेकिन अगर हम पिछले कुछ दशकों में भारत में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि के आँकड़ों को देखें तो यह देखा जा सकता है कि 1991 के बाद से भारत में मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है। इसके अलावा, 1991 के बाद से भारत में समग्र जनसंख्या वृद्धि दर में भी कमी आई है। यहां एक बात स्पष्ट करनी चाहिए कि, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, प्रमुख धार्मिक समूहों में मुस्लिम आबादी की प्रजनन दर सबसे अधिक है। लेकिन जानकारी के मुताबिक पिछले दो दशकों में यह दर भी कम हुई है। आपको बता दें कि, वास्तव में प्रति महिला जन्म दर में यह गिरावट हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में अधिक है। ऐसा आंकड़े बताते हैं। आंकड़े बताते हैं कि, मुस्लिमों में 1992 में यह जन्म दर 4.4 था, और अब 2019 में यह 2.4 है।

जन्म दर घटने के पिछे कई सारे कारण बताए जाते है। भारत के राजनेता इसके पिछे का कारण धार्मिक बताते हैं तो, वही विशेषज्ञ दूसरे कारण बताते हैं। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की संघमित्रा सिंह कहती हैं, ‘जन्म दर में बदलाव के आर्थिक और सामाजिक कारण हैं। इसे धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता है।” संघमित्रा सिंह आगे कहती हैं, “जन्म दर में कमी शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल तक बेहतर पहुंच का परिणाम है।”

मुसलमानों में जन्म दर में कमी के सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा आदी कारण होने के बावजूद, कुछ धार्मिक समूह और भारत के कुछ नेता मुसलमानों के उत्थान के बारे में भ्रमित करने वाले दावे करते रहते हैं। कभी-कभी वे हिंदुओं से और बच्चे पैदा करने का आग्रह भी करते हैं। (हम किसी भी धार्मिक संघटन और नेेता का नाम नहीं ले सकते है क्योंकि इससे किसी की भावनाए आहत हो सकती हैं)

क्या सच में एक दिन मुस्लिम आबादी हिंदुओ से ज्यादा होगी?

आपके मन में भी यह सवाल आया होगा कि, क्या सच में एक दिन मुस्लिम आबादी हिंदुओ से ज्यादा होगी? विशेषज्ञ इस दावे को खारिज करते हैं कि एक दिन मुसलमान भारत में हिंदुओं से अधिक हो जाएंगे। इसके पिछे का तर्क हिन्दू जनसंख्या है।वर्तमान में भारत की 80 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू हैं और 20 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम है।

प्रतिष्ठित न्यूज चैनल zee news में मिले आंकड़ों के मुताबिक देश में परिवारों की कुल संख्या 24.88 करोड़ है। साल 2011 की जनगणना के जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब 20.24 करोड़ हिंदू परिवार रहते हैं जबकि मुस्लिम परिवारों की संख्या सिर्फ 3.12 करोड़ है और ईसाइयों के परिवारों की संख्या 63 लाख है। अर्थात हिन्दू परिवार मुस्लिम परिवार से 6.48 गुना अधिक है। यदि हिन्दू  एक भी बच्चा नहीं पैदा करेगा सारे के सारे बिना बच्चे पैदा किए रहेंगे और मुस्लिम बच्चे पैदा करेगा तभी एक दिन मुस्लिम आबादी हिंदुओ से ज्यादा होगी। वरना यह संभव ही नहीं है।

दरअसल, राष्ट्रीय परिवार कल्याण कार्यक्रम समिति के पूर्व अध्यक्ष देवेंद्र कोठारी ने भविष्य की संभावना के बारे में बताया है। उनका कहना है कि, प्रजनन दर में कथित गिरावट को देखते हुए, अगली जनगणना में हिंदू आबादी मुस्लिम आबादी से अधिक बढ़ गई होगी।

भारत में मुसलमानों की स्थिति

“अगर मुसलमानों की स्थिति और खराब होती तो क्या 1947 की तुलना में मुसलमानों की आबादी बढ़ जाती? यह भी एक संशोधन का विषय है। “भारत में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती नफरत के बारे में एक सवाल का जवाब देते हुए, सीतारमण जी ने कहा था कि, भारत में मुसलमानों की स्थिति खराब है। अगर ऐसा होता तो क्या भारत में मुसलमानों की आबादी बढ़ जाती?

भारत में मुसलमानों की स्थिती खराब है इसको खारिज करते हुए सीतारमण जी आगे कहती हैं कि, ‘भारत में मुसलमान बिजनेस कर सकते हैं, बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकते हैं।  उन्हें सरकार से भी मदद मिलती है।” भारत में मुसलमानों सहित अन्य अल्पसंख्यक समूहों को भी निशाना बनाया जाता है, जब ऐसा कही भी देश में होता है, तो मानवाधिकार संगठनों द्वारा उसकी दखल भी ली जाती हैं।

लेकिन 2023 में जारी एक रिपोर्ट में, ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा, “भाजपा सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के साथ भेदभाव करना जारी रखती है।” यह बात पूर्ण रूप से सही भी नहीं है और गलत भी नहीं है। ऐसा हमारा मानना है। क्योंकि भारत में ना सिर्फ़ धर्म के नाम पर मुस्लिमों को टार्गेट किया जाता हैं बल्की जाति के नाम पर दलितों को और आदिवासियों को, ईसाइयों को भी टार्गेट किया जाता हैं और अभी आर्थिक, राजनीतिक, प्रांतिक तौर पर भी लोग टार्गेट हो रहे हैं। इसलिए ह्यूमन राइट्स वॉच का दावा पुरी तरह सही है ऐसा हम नहीं मान सकते है। इसे एक उदाहरण के जरीए समझते हैं।

जब पीएम मोदी ने पद्म पुरस्कार मिलने पर कादरी को बधाई दी तो बिदरी कलाकार ने पीएम से हाथ मिलाया और कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि बीजेपी किसी मुस्लिम को अवॉर्ड देगी। इसके अलावा सरकार द्वारा दीया जाने वाला संसद रत्न पुरस्कार जिसे सांसदों के लिए काफी प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता हैं। यह पुरस्कार बीजेपी सरकार के दौरान सबसे ज्यादा किसी हिन्दू सांसद को नही बल्की एक मुस्लिम सांसद को मिला है। जिनका नाम है असदुद्दीन ओवैसी। इसके अलावा निखत जरीन जो एक मुस्लिम लड़की है और भारत की ओलम्पिक खिलाड़ी है। जब इन्होंने भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता था तो, पीएम मोदी ने उन्हें फ़ोन करके बधाई दी थी। अब आप तो जानते ही होंगे कि, पीएम मोदी बीजेपी से आते हैं।  इसलिए बीजेपी सबसे ज्यादा मुस्लिमों को टार्गेट करती है यह तथ्य पुरी तरह से सत्य नही है।

आपको बता दें कि, धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराधों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।  लेकिन स्वतंत्र अनुसंधान और संगठनों ने घृणा से प्रेरित हिंसा के मामलों में वृद्धि की सूचना दी है।

“पाकिस्तान में सभी धार्मिक अल्पसंख्यक घट रहे हैं, वे गायब हो रहे हैं।”

मुस्लिमों के प्रति भारत का स्टैंड क्लियर करने के बाद निर्मला सीतारामन जी ने पाकिस्तान का भी उल्लेख किया था। निर्मला सीतारमण ने मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा का जिक्र करते हुए कहा था कि, यह वहां गैर-मुस्लिम आबादी को कम कर रहा है।

आपको बता दें कि, पाकिस्तान खुदको धर्मनिरपेक्ष देश बताता है। लेकिन पाकिस्तान मुस्लिम बहुल देश है। 2017 के आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान में 2.14 फीसदी हिंदू बचे हैं जो पहले काफी ज्यादा थे। 1.7 फीसदी ईसाई बचे हैं जिनकी संख्या पहले ज्यादा थी, 0.09 फीसदी अहमदिया हैं इनकी भी संख्या पहले ज्यादा थी। यहा हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि, यह जो आंकड़े बताते हैं यह सब पुराना डेटा है। इस बारे कोई भी नया डेटा उपलब्ध नहीं है।

यह एक सच्चाई है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा होती रही है और उन्हें बहुत प्रताड़ित किया जाता हैं। ऐसा हम नहीं बल्कि ह्यूमन राईट्स वॉच का डेटा कहता है। आपको बता दें कि, ह्यूमन राइट्स वॉच की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ हमले बढ़ गए हैं। पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून और अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ बने कानून उनका दमन करते हैं। हिंदुओं और ईसाइयों पर भी ईशनिंदा का आरोप लगाया जाता है। उन पर हमला किया जाता है। पाकिस्तान के सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के अनुसार, एक मानवाधिकार संगठन, 1987 और 2021 के बीच, ईशनिंदा कानून के तहत 1,855 लोगों पर आरोप लगाया गया था। आपको बता दें कि, सीतारामान जी ने जो तथ्य पकिस्तान में रह रहे गैर मुस्लिम के बारे में दिए हैं वे पुराने आंकड़ों पर आधारित है। अर्थात नए आंकड़े इस बारे में मौजुद नहीं है। जैसा कि सीतारमण कहती हैं, यह साबित करने के लिए कोई ताज़ा आंकड़े नहीं हैं कि अल्पसंख्यकों की संख्या में कमी आई है, या उनका सफाया भी हो गया है।

इससे पहले बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी में गिरावट को लेकर बीजेपी के दावे के मुताबिक कुछ आंकड़े सामने आए थे.

लेकिन ये आंकड़े भ्रामक थे। क्योंकि इसमें ऐसे अल्पसंख्यक भी शामिल थे, जो तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में थे।

प्रिय पाठक वर्ग आशा करता हूं आपको भारतीय मुसलमानों की आबादी को लेकर किए जा रहे दावों में कितनी सच्चाई है? इसको लेकर सटीक जानकारी आपको इस लेख से मिली होगी।

स्त्रोत:- बीबीसी मराठी

???? मोहम्मद रफीक साबिर एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंनेे जिन्ना पर अलग पाकिस्तान की मांग करने पर चाकू से हमला किया था

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