Last Updated on 2 years by Sandip wankhade
दरअसल जब भी होली का त्यौहार आता है, तब सबके नजरों के सामने आते हैं वह चेहरे जो अलग अलग रंगों से रंगे होते है। लेकिन हमारे देश में एक स्थल ऐसा भी है, जहा होली मनाने का तरीका काफ़ी अलग पाया जाता है। इस अनोखे होली को देखने के लिए देशभर से ही नहीं बल्कि दुनियां भर से लोग आते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं वाराणसी के मणिकर्णिका शमशान घाट पर मनाए जाने वाले होली की।
मणिकर्णिका शमशान घाट पर मनाई जाने वाली होली दुनियाभर में मनाए जाने वाले होली के त्यौहार से काफ़ी अलग है। मणिकर्णिका घाट पर मनाई जाने वाली होली रंगों से नहीं बल्कि चिताओं के राख से मनाई जाती हैं। यह सुनने में तो काफ़ी अजीब लगता है। लेकिन यह सच है। यहां मनाए जाने वाले होली में चिताओं के राख का इस्तेमाल किया जाता है। यहां मनाए जाने वाले होली का दृश्य काफ़ी अलग, अद्भुत, अकप्लनीय और बेमिसाल है।
View this post on Instagram
आख़िर क्यों मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेली जाती हैं? क्या है इस अलग, अद्भुत और अकप्लनीय होली के पीछे की वजह? आइए जानते हैं इन सवालों का जवाब इस लेख में।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, भगवान शिव और पार्वती के विवाह में जब भगवान शिव के प्रिय गण, भूत, प्रेत, पिशाच, चुड़ेल, डाकिनी – शाकिनी, सन्यासी, अघोरी, दृश्य – अदृश्य शक्तियां जब बाराती बनकर विवाह में सम्मीलित होते है, तब वे सभी आनंदित हो कर विवाह में काफी उपद्रव करते हैं। अपने बेटी (पार्वती) के शादी में इस प्रकार का उपद्रव देखकर भगवान शिव के ससुराल वाले काफी नाराज होते है।
इसके बाद जब भगवान शिव अपने ससुराल माता पार्वती का गौना (गौना मतलब शादी के बाद की जाने वाली एक रस्म) लेने जाते है, तब भी भगवान शिव के सभी प्रियजन उनके साथ चलते हैं। लेकिन इस बार भगवान शिव के ससुराल वाले उन सभी को बाहर ही रोक देते है। वे ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि जो हाल विवाह में हुआ था। उस प्रकार का हाल दुबारा ना हो।
भगवान शिव के ससुराल वालों की तरफ से उठाए गए इस कदम से भगवान शिव के भक्त काफी नाराज़ होते हैं। वे सभी भगवान शिव के ससुराल वालों से प्रार्थना करते हैं कि, उन्हे इस पावन अवसर का हिस्सा बनने दे। लेकिन बात नहीं बनती। जिसके बाद भगवान शिव अपने सभी भक्तों को इसके लिए मनाते हैं और वे उन सभी को एक वादा करते हैं कि, वे अगले दिन उन सभी के साथ मणिकर्णिका घाट पर होली खेलेंगे। भगवान शिव द्वारा दिए गए इस वचन के बाद वे अभी काफ़ी खुश होते है और वे भगवान शिव के गौना रस्म मे फिर सम्मिलित नहीं होते है।
उसके बाद अगले दिन यानी रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन वादे के मुताबिक़ बाबा विश्वनाथ अर्थात भगवान शिव अपने प्रिय गण, भूत, प्रेत, पिशाच, चुड़ेल, डाकिनी – शाकिनी, सन्यासी, अघोरी, दृश्य – अदृश्य शक्तियो संग यहां मणिकर्णिका शमशान घाट पर आते हैं और खूब होली खेलते हैं।
भगवान शिव को भस्म काफ़ी प्यारा है इसलिए यहां घाट पर होली में बाबा विश्वनाथ रंगो के बजाए चिताओं की राख का इस्तेमाल करते हैं।
मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि, बाबा विश्वनाथ जी ने रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिता की राख से अपने भक्तों संग यहां घाट पर होली खेली थी। तभी से मणिकर्णिका शमशान घाट पर चिता – भस्म की होली की शुरुआत हुई और अब यह हिंदू धर्म की परंपरा बन चुकी है।
View this post on Instagram
दोस्तों यह थीं वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर चिताओं की राख से होली खेलने की वजह।
स्रोत :-
खेले मसाने में होरी दिगंबर… : काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका पर खेली जाती है चिता-भस्म की अनोखी होली, तारक मन्त्र देने आते हैं महादेव ( ऑप इंडिया, 15 March, 2022)