नई दिल्ली: पीछले कुछ सालों से भारत में बडी मात्रा में जलसंकट की स्थिति बन रही है। बड़े शहरों में जलसंकट की हालत तो और भी बदतर होती जा रही है। हल ही मे केंद्रीय भूजल आयोग (सीजीडब्ल्यूबी) ने एक ताजा रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट खासकर दिल्ली शहर से जुडे जलसंकट से जुड़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में उपलब्ध भूगर्भ जल का लगभग पूरी तरह से लोगों द्वारा दोहन किया जा चूका है। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में दिल्ली में 0.38 बिलियन क्यूबिक मीटर ग्राउंड वाटर रीचार्ज हुआ था। इसमें से लगभग 0.34 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी दिल्ली वाले निकाल चुके है। केंद्रीय भूजल आयोग (सीजीडब्ल्यूबी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली हर साल औसतन लगभग 0.2 मीटर भूजल खो रही है। इस लिहाज से हर दिन दिल्ली की जमीन के नीचे का पानी 0.05 सेंटीमीटर नीचे जा रहा है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि, दिल्ली के करीब 80 फीसदी स्त्रोत क्रिटिकल या सेमी क्रिटिकल स्थिति में आ चुके हैं।
इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि, दिल्ली -एनसीआर में बढ़ती कंक्रीट की सतह के चलते ज्यादातर बारिश का पानी जमीन में रीचार्ज नही हो पा रहा है और वह सीधे नदी नालियों में चला जा रहा है। TERI की ओर से भी किए गए एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में बढ़ती कंक्रीट की सतह के चलते ग्राउंड वाटर रीचार्ज आने वाले समय में तेजी से घटेगा। 2031 तक बारिश का 70 फीसदी से ज्यादा पानी बह कर नालों के जरिए नदियों में चला जाएगा।
आपको बता दें कि, सभी अध्ययन दिल्ली के अलग अलग हिस्सों में किए गए हैं। जानकारी के आधार पर ये अध्ययन यमुना रिवर बेसिन के तहत दिल्ली के अलीपुर, नजफगढ़, मेहरौली और ट्रांस यमुना में बांटकर किए गए है। अध्ययन में अलीपुर का लगभग 519.11 वर्ग किलोमीटर, नजफगढ़ का 482.69 वर्ग किलोमीटर, मेहरौली का 373.12 वर्ग किलोमीटर और ट्रांस यमुना का 127.39 वर्ग किलोमीटर एरिया शामिल किया गया था। इस अध्ययन के लिए कैलिब्रेटेड मॉडल का इस्तेमाल किया गया है। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य बढ़ती कंकरीट की सतह और ग्राउंड वाटर रीचार्ज था।
अध्ययन में शामिल TERI के वैज्ञानिक चंदर कुमार सिंह के मुताबिक़, तेजी से बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती कंक्रीट की सतह के कारण ग्राउंड वाटर रीचार्ज में भारी गिरावट आई है।
अध्ययन से यह बात सामने निकल कर आई है कि, 2005 से लेकर 2016 के बीच तक सबसे ज्यादा शहरीकरण ट्रांस यमुना वाले इलाके में हुआ है। और इसके चलते अब हर साल लगभग 65.69 फीसदी बारिश का पानी जमीन में रिसाव होने के बजाय नालों के जरिए नदी में बह जा रहा है। एसी कुछ हालत महरौली इलाके की भी है। यहां पर भी बारिश का लगभग 49.39 फीसदी पानी नालों में बह जा रहा है।
अध्ययन से यह दावा किया जा रहा है कि, यदी पानी जमीन में रिसाव नही हुआ और वह इसी तरह नाले में बहता गया तो आने वाले समय में दिल्ली को गंभीर पानी के संकट से जूझना पड़ सकता है। अध्ययन में यह भी दावा किया जा रहा है कि, 2016 से 2031 के दौरान के बीच ट्रांस-यमुना इलाके में बढ़ती कंक्रीट की सहत के चलते भूगर्भ जल के स्तर में और गिरावट आ सकती हैं।
पर्यावरणविद और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण इसको लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहती हैं कि,
“हमारे शहर रहने लायक तभी बने रहेंगे जब शहर में रहने वाले गरीब से गरीब व्यक्ति के लिए भी साफ पेय जल की उपलब्धता हो। पानी की बचत के लिए शहरों के सीवर में बह जाने वाले पानी के प्रबंधन पर भी विचार करना होगा। इसके लिए जल इंजीनियरों को जमीन पर उतरना होगा, फिर से काम करना होगा और फिर से सोचना होगा। यह आज जो दिल्ली और बेंगलुरु की कहानी है, ये कल किसी भी शहर की कहानी हो सकती है।”

बढ़ रहा है मिट्टी धंसने का खतरा
जमीन के अंदर से जिस तरह से हम पानी निकाल रहे हैं। उससे इलाके के 100 किलोमीटर के दायरे में जमीन धंसने का खतरा भी बढ़ गया है।
सैटलाइट डेटा के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के करीब 100 वर्ग किलोमीटर इलाके में जमीन धंसने का खतरा ज्यादा है। और इसकी वजह भूजल दोहन बताया जा रहा है।
आईआईटी बॉम्बे, जर्मन रिसर्च सेंटर ऑफ जियोसाइंसेस और अमेरिका की कैंब्रिज और साउदर्न मेथडिस्ट यूनिवर्सिटी के संयुक्त अध्ययन में यह जानकारी सामने निकल कर आई है कि, दिल्ली के एयरपोर्ट के आसपास जिस तेजी से जमीन धंस रही हैं, उससे लगता है कि जल्द ही दिल्ली एयरपोर्ट इसके जद में आ जाएगा। आंकड़ों से पता चला है कि, वर्ष 2014-2016 के दौरान, जमीन धंसने की दर लगभग 11 सेमी प्रति वर्ष थी जो अगले दो वर्षों में लगभग 50 फीसद बढ़कर लगभग 17 सेमी प्रति वर्ष हो गई। वैज्ञानिकों ने इसके अध्ययन के लिए उपग्रह सेंटिनल- से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली थी। इसमें फेज-1 में 2014 से 2016, फेज-2 में 2016 से 2018 और फेज-3 में 2018 से 2019 के बीच विश्लेषण किया था।
कंक्रीट की बढ़ती सतह से बढ़ा खतरा
आपको बता दें कि, मुंबई से जुड़ा एक अध्ययन वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (वीजेटीआई), माटुंगा ने भी किया था। वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (वीजेटीआई), माटुंगा ने अपने एक अध्ययन में पाया कि कंक्रीट की सतहों में 70% से ज्यादा की बढ़ोतरी के चलते मुंबई में मानसून के दौरान बाढ़ की स्थिति बदतर हो जाती है, इससे बारिश के पानी को अवशोषित करने की मिट्टी की क्षमता कम हो गई है। शोधकर्ताओं ने कहा कि पिछले 45 वर्षों में, कंक्रीटीकरण और बाढ़ अवशोषक के रूप में काम करने वाली वेटलैंड को भरने से नालों में जाने वाले बारिश के पानी में 40% की वृद्धि हुई है। पानी के इस बढ़े हुए प्रवाह की तुलना में नालों को चौड़ा और गहरा नहीं किया गया है। जिससे शहर में बाढ़ का खतरा बढ़ा है।
पेड़ों के लिए घातक साबित हो रही है कंक्रीट की सतह
एनजीटी ने पेड़ों के लिए घातक साबित हो कंक्रीट के लिए एक आदेश भी जारी किया था। जिसमे एनजीटी ने कहा था कि, दिल्ली में जहां कहीं भी पेड़ दिखे उस पेड़ के करीब एक मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार की कंकरीट या सख्त सतह नहीं बनाई जाए। इसके अतिरिक्त आगे एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि, सार्वजनिक निकायों को यह भी ध्यान रखना होगा कि, पेड़ों की देखभाल करने और उनके लिए भविष्य में उचित सावधानी बरतने के लिए प्रयास किए जाए। क्युकी एक मीटर के दायरे में कोई कंक्रीट या निर्माण या मरम्मत कार्य करने से पेड़ को नुकसान पहुंच सकता हैं।
आपको बता दें कि, दिल्ली यमुना बायोडाइवर्सिटी पार्क के प्रभारी और पर्यावरणविद फैयाज खुदसर पेड़ो को लेकर कहते हैं कि, कंकरीट की सतह बनाया जाना पेड़ों के लिए बेहद घातक है। बारिश के मौसम में जमीन के अंदर मौजूद पेड़ों की जड़ें पानी में भीगी रहती हैं। ऐसे में पेड़ों को पोषण ऊपरी जड़ों से मिलता है। लेकिन कंक्रीट की सतह से ढ़क जाने पर पेड़ों की जड़ें धीरे धीरे सूख जाती हैं और पेड़ कमजोर हो जाता है। ऐसे में तेज हवा या ज्यादा बारिश में पेड़ उखड़ जाता है। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि विकास कितना और किस कीमत पर करना है। ये पेड़ पौधे हमें सिर्फ साफ हवा ही नहीं देते बल्कि जमीन को बांध के रखने और पानी के स्तर को बनाए रखने में भी मदद करते हैं।
सबको मिलकर करने होंगे ये प्रयास
आपको बता दें कि, अलग अलग अध्ययन से यह साफ तौर पर पता चल रहा है कि, बढ़ती शहरी आबादी के चलते हरित क्षेत्र में भारी कमी आई है और शहरों में बढ़ते अनियोजित विकास के कारण जमीन की कंकरीट सतह में भारी बढ़ोतरी हुई है। जल संकट का गंभीर परीणाम देखने को मिल रहा है, देश में बढ़ती कंक्रीट की सतह भूजल घटा रही हैं, और बारिश का 70 फीसदी पानी बर्बाद हो जा रहा है। इसे रोकने के लिए सबको मिलकर करने की जरूरत है। हमे कंक्रीट की जगह पानी पारगम्य सतहों का उपयोग करना चाहिए। वर्षा जल को इकट्ठा करने और भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए हमें छतों और जमीन से बहने वाले पानी को इकट्ठा करने के लिए जल संचय तंत्र का उपयोग करने की जरूरत है। इसके साथ ही वृक्षारोपण कार्यक्रम को बडी मात्रा किया जाना चाहिए। क्युकी पेड़ मिट्टी में पानी को अवशोषित करने और भूजल स्तर को बढ़ाने में मदद करते हैं। पानी के कुशल उपयोग और रिसाव को कम करके जल संरक्षण के तरीकों को अपनाया जाना चाहिए।
स्त्रोत: दैनिक जागरण