कहानी द्रोणाचार्य की कैसे कटोरे में रखे वीर्य से हुआ द्रोणाचार्य का जन्म, एक पौराणिक घटना:
आज हम आपको महाभारत के एक ऐसे महान योद्धा के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका जन्म अत्यंत अद्भुत और रहस्यमय परिस्थितियों में हुआ था। एक ऐसा योद्धा जिसके जन्म के कहानी की चर्चा आज भी बहुत होती है। हाँ, हम बात कर रहे हैं महाभारत के द्रोणाचार्य की, जिन्होंने कौरवों और पांडवों को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण देकर उन्हें महाभारत के युद्ध के लिए तैयार किया था।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी व्यक्ति का जन्म कटोरे में रखे वीर्य से हो सकता है? ज्यादा तर लोग यहीं कहेंगे कि, उस समय टैस्ट ट्यूब बेबी टेक्नोलोजी थोडी ही थीं फिर यह कैसे हो सकता हैं? पर आपको कटोरे में या द्रोण में रखें वीर्य से गुरु द्रोणाचार्य का जन्म लेने की कहानी पढ़कर हैरानी होगी।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम द्रोणाचार्य के जन्म की पूरी कहानी, उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं प्रकाश डालेंगे। तो आइए बिना देर किए, इस अद्भुत योद्धा की जन्म कुंडली में गोते लगाते हैं! और जानते है कि, द्रोणाचार्य का जन्म कैसे हुआ? और उसके पीछे की कहानी क्या है?
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गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की कहानी
महाभारत के आदिपर्व में गुरु द्रोणाचार्य के जन्म की कथा का उल्लेख मिलता है। इस कथा के मुताबिक, द्रोणाचार्य के पिता महर्षि भारद्वाज एक बड़े व्रतशील व यशस्वी महापुरुष थे। जो गंगाद्वार नामक स्थान पर रहा करते थे। कथा के अनुसार एक बार वे कुछ महर्षियों के साथ मिलकर एक यज्ञ करने वाले थे। यज्ञ करने से पूर्व वे और सभी महर्षी गंगा स्नान करने के लिए गंगा नदी के तट पर पहुंचे। गंगा नदी के तट पर पहुंचने पर महर्षि भारद्वाज ने देखा कि, एक सुंदर अप्सरा पहले ही गंगा स्नान कर रही है। वह इतनी सुंदर थीं कि, मानो जैसे वह स्वर्ग से धरती पर गंगा स्नान के लिए आई हो। यह अप्सरा कोई और नहीं बल्की घृताची थीं। जो गंगा में नग्न होकर स्नान करने में मग्न थीं। कहा जाता है कि, अप्सरा घृताची के मंत्रमुग्ध करने वाले उसके शरीर को देखकर महर्षि भारद्वाज उसपर मोहित हो बैठे और उसको लेकर इनके मन में काम वासना जाग उठी। जिससे उनका वीर्यस्खलन हो गया।
महर्षि भारद्वाज ने उनके इस वीर्य को एक द्रोण (मिट्टी का कलश) में रख दिया। जिससे कुछ समय बाद एक बालक का जन्म हुआ। बालक का जन्म द्रोण में अपने वीर्य से होने के कारण महर्षि भारद्वाज ने उसका नाम द्रोण रखा।
महर्षि भारद्वाज के पुत्र द्रोण, जिनका जन्म द्रोण में रखें वीर्य से हुआ था। बड़े होकर एक जाने-माने विद्वान या आचार्य बने, तो उन्हें द्रोणाचार्य के नाम से जाना जाने लगा और समय के साथ वे गुरु द्रोणाचार्य के नाम से विख्यात हुए।
द्रोण से जन्म की दूसरी कहानी
द्रोणाचार्य के जन्म की एक और कहानी है जिसमें बताया जाता है कि, जब गंगा किनारे अप्सरा घृताची को गंगा में नग्न अवस्था में स्नान करते हुए देखकर जब महर्षी भरद्वाज मोहित हुए तो उन्होंने अप्सरा घृताची के साथ शारीरिक मिलन किया। जिससे उन्हे बेटा हुआ।अप्सरा घृताची के योनि का मुख द्रोण कलश के मुख के समान था, इसलिए बालक का नाम द्रोण रखा। वैसे द्रोण के नाम का अर्थ है बर्तन या बाल्टी या तरकश।
अश्वथामा इन्ही गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं जिनके बारे कहा जाता है कि वे आज भी जीवित है। इनके जन्म की कथा भी काफी रोचक है।