जाने आखिर क्यों ऊंट को रेगिस्तान का जहाज क्यों कहा जाता है

ऊंट: यह सवाल कोरा पर बहुत ही पॉपुलर सवाल है कि, ऊंट को रेगिस्तान का जहाज क्यों कहा जाता है। आज के इस लेख में हम आपको ऊंट के उन अद्भुत क्षमताओं और अनुकूलन के बारे में बताएंगे जिसको जानकर आप समझ सकते है कि, इन वजहों के चलते कहा जाता है ऊंट को रेगिस्तान का जहाज।

जैसा कि आप जानते हैं कि, रेगिस्तान के विशाल रेत के टीलों और तपती धूप में, जहाँ पानी और भोजन की कमी एक आम समस्या है, वहां ऊंट एक अद्भुत प्राणी के रूप में उभरता है। इसकी अद्भुत क्षमताओं और अनुकूलन ने इसे सदियों से रेगिस्तान का जहाज बना दिया है।

ऊंट को रेगिस्तान का जहाज क्यों कहते हैं, unt ko registan ka jahaj kyon kaha jata hai

पानी का भंडारण:

ऊंट अपने पेट में पानी जमा करने की अद्भुत क्षमता के लिए जाना जाता है। आपको बता दें कि, ऊंट एक बार में 135 लीटर तक पानी पी सकता है, जो उसके शरीर के वजन का लगभग 25% तक होता है। यह पानी ऊंट को लंबे समय तक बिना पानी के जीवित रहने में मदद करता है। इस पानी के भंडारण से ऊंट महीनों तक बिना पानी पिए जीवित रह सकते है।

विशेष नाक:

ऊंट की नाक ऊंट को रेगिस्तान के तूफानों से बचाने में मदद करती है। उसकी नाक के बाल रेत के कणों को शरीर के अंदर जाने से रोकते हैं, और इसके अतिरिक्त ऊंट के पास नाक बंद करने की क्षमता भी क्षमता होती हैं। जो उसे धूल भरे वातावरण में सांस लेने में मदद करती है।

चौड़े पैर

आपने ऊँट के कभी ना कभी जरुर देखे होगे। रेगिस्तान में रहने वाले ऊँट पैर अक्सर गद्दीदार होते हैं, जिसके कारण रेगिस्तान में चलने और भागने में उन्हे कोई दिक्कत नहीं होती है, रेगिस्तान में जहाँ मानव द्वारा निर्मित आधुनिक गाड़ियां हार जाती हैं वहाँ ऊँट अपनी प्राकृतिक समान्य रफ्तार से दौड़ सकता हैं। ऊंट के मजबूत गद्दी दार पैर ना रेत में फंसते है और ना ही धोरों में थकते हैं।

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ऊंट को रेगिस्तान का जहाज क्यों कहते हैं

कूबड़ का फैट

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि, रेगिस्तान में पानी की अक्सर कमी रहती है, पर ऊँट रेगिस्तान में पानी की कमी से अपनी खास विशेषताओं के कारण नहीं जुझता हैं। कुछ लोग कहते हैं कि, ऊंट अपने कूबड़ में पानी जमा करके रखता है, लेकिन यह सरासर ग़लत बात है। वास्तव में ऊँट अपने कूबड़ में पानी नहीं बल्की फैट जमा करके रखता है, जिसका उपयोग ऊंट उस वक्त पर करते हैं, जब उन्हें कई दिनों तक खाना-पानी नहीं मिलता है, तब ऊंट अपने कूबड़ में जमा फैट का इस्तमाल ऊर्जा के रुप में करता है। आसान भाषा में कहे तो, कूबड़ में जमा फैट ही उन्हे भूखे समय पर ऊर्जा देती है। आपको बता दें कि, जैसे-जैसे कूबड़ में जमा यह फैट खत्म होता जाता है, वैसे-वैसे ऊंट का कूबड़ छोटा होकर एक तरफ झुक जाता है। लेकिन जब ऊंट भरपेट भोजन या पानी पी लेता है तो यह ऊंट का झुका हुआ कूबड़ फिर से बड़ा और खड़ा हो जाता है।

धूप सहने की क्षमता

रेगिस्तान में कितनी भी तेज धूप क्यों न हो फिर भी ऊंट वहा पर सरवाई कर जाते है। ऊंट की मोटी खाल और उनका शरीर उन्हे रेगिस्तान के चरम तापमान को सहन करने के लिए अनुकूलित करता है।

कम पसीना

रेगिस्तान में कितनी भी गर्मी क्यों न पड़े फिर भी ऊंट को ज्यादा पसीना नही आता। अर्थात ऊंट तेज गर्मी में कम पसीना बहाते हैं, जिससे पानी का कम नुकसान होता है और वे लंबे समय तक तेज गर्मी में टिक पाते है।

लंबे समय तक चलने की क्षमता

आपको जानकर हैरानी होगी कि, ऊंट बीना खाए – पिए 21 दिन तक लगातार चल सकते है। ऊंट अपनी मजबूत पीठ और सहनशक्ति के कारण भारी सामान ढोने में सक्षम होते हैं। सदियों से, वे व्यापारियों और यात्रियों द्वारा सामान ढोने के लिए उपयोग किए जाते रहे हैं, जिसके कारण उन्हें “रेगिस्तान का जहाज” नाम दिया गया है।

निष्कर्ष:

ऊंट एक अद्भुत प्राणी हैं जो रेगिस्तान के कठोर वातावरण में जीवित रहने के लिए अनुकूलित हैं। उनकी इन अनूठी विशेषताएं उन्हें खाने और पानी के बिना लंबे समय तक जीवित रहने, रेत में आसानी से चलने और भारी सामान ढोने की अनुमति देती हैं। यही कारण है कि उन्हें “रेगिस्तान का जहाज” कहा जाता है।अब आप समझ गए होंगे कि, ऊंट को रेगिस्तान का जहाज क्यों कहा जाता है।

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